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भगत सिंह का आखिरी खत- 'मैं कैद होकर जीना नहीं चाहता'

भगत सिंह को 23 मार्च 1931 में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी, लेकिन उनके विचार आज भी आजाद भारत की फिजाओं में जिंदा हैं

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आजादी के परवाने और भारत मां के दीवाने शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) को आज ही के दिन 1931 में फांसी दे दी गई थी. उनके साथ में सुखदेव (Sukhdev) और राजगुरू (Rajguru) को भी अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था. जिस वक्त शहीद भगत सिंह को फांसी दी गई तब उनकी उम्र महज 23 साल थी. भगत सिंह के विचार और इरादे उनकी उम्र से कहीं बड़े थे. इसकी झलक उनके लेखों और पत्रों में भी मिलती है. जो उन्होंने जेल में रहते हुए लिखे. ये शहीद-ए-आजम भगत सिंह के विचार ही थे, जिन्होंने असेंबली में बम फेंकने और किसी को नुकसान ना पहुंचाने का प्लान बनाया.

भगत सिंह के विचारों की बुलंदियों और पहाड़ जैसी उनकी शख्सियत को याद करने के लिए चलिए उनके आखिरी दो पत्रों को पढ़ते हैं.
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22 मार्च, 1931 अपने साथियों को लिखा पत्र

साथियों,

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता. लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं,कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता.

मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है- इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता.

आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.

हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.

आपका साथी

भगतसिंह

भगत सिंह का भाई के नाम आखिरी खत

महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह अपने भाई को बहुत प्रेम करते थे. उन्होंने अपने अंतिम वक्त में अपने भाई कुलबीर सिंह को भी एक पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने लिखा था-

लाहौर सेंट्रल जेल,

3 मार्च, 1931

प्रिय कुलबीर सिंह,

तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. मुलाकात के वक़्त खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा. कुछ अल्फाज लिख दूं, बस- देखो, मैंने किसी के लिए कुछ न किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं. आजकल बिल्कुल मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूं. तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा? गुजारा कैसे करोगे? यही सब सोचकर कांप जाता हूं, मगर भाई हौसला रखना, मुसीबत में भी कभी मत घबराना. इसके सिवा और क्या कह सकता हूं. अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता, मगर अब तो यह भी नामुमकिन मालूम होता है. आहिस्ता-आहिस्ता मेहनत से पढ़ते जाना. अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा, मगर सब कुछ पिता जी की सलाह से करना. जहां तक हो सके, मुहब्बत से सब लोग गुजारा करना. इसके सिवाय क्या कहूँ?

जानता हूं कि आज तुम्हारे दिल के अन्दर गम का सुमद्र ठाठें मार रहा है. भाई तुम्हारी बात सोचकर मेरी आंखों में आंसू आ रहे हैं, मगर क्या किया जाए, हौसला करना. मेरे अजीज, मेरे बहुत-बहुत प्यारे भाई, जिन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बे-मुरव्वत. सब लोग बड़े बेरहम हैं. सिर्फ मुहब्बत और हौसले से ही गुजारा हो सकेगा. कुलतार की तालीम की फिक्र भी तुम ही करना. बड़ी शर्म आती है और अफ़सोस के सिवाय मैं कर ही क्या सकता हूं. साथ वाला ख़त हिन्दी में लिखा हुआ है. ख़त ‘के’ की बहन को दे देना. अच्छा नमस्कार, अजीज भाई अलविदा… रुख़सत.

तुम्हारा खैर-अंदेश

भगत सिंह

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शहीद भगत सिंह के यही क्रांतिकारी विचार आगे चलकर एक ज्वाला बने, जिन्होंने भारत में कई वीरों को प्रोत्साहित किया. अनेकों अनेक बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में भगत सिंह का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है और हमेशा लिखा रहेगा. क्योंकि उन्हीं की बदौलत आज हम आजाद हैं और खुली हवा में सांस ले रहे हैं. उनके जैसे क्रांतिकारी और दूरदर्शी विचारों का ही निचोड़ है जो आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है.

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