नवंबर 2019 से 40 किसान संगठन (Farmers Protest) दिल्ली के दर पर केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों (farms laws) का विरोध करने के लिए बैठे हैं. बीते 10 महीनों में किसानों ने बदलते मौसम के साथ आंदोलन के रंग भी बदलते देखे हैं. याद कीजिए नवंबर का वक्त, जब किसान सबसे पहले पंजाब की ओर से दिल्ली की तरफ बढ़े तो हरियाणा की बीजेपी सरकार ने उन्हें रोकने के लिए सड़कें तक खोद दी थीं. लेकिन उनमें एक भी गड्ढा ऐसा नहीं था जो किसानों के बुलंद हौसले को डिगा सकता. यही हौसला किसानों को गर्मी, सर्दी और बरसात में हिम्मत दे रहा है और इसी हौसले से वो सरकार को झुकाने की मंशा रखते हैं.
अपनी इसी मंशा को पूरा करने के लिए किसान नेताओं ने एक बार 27 सितंबर को भारत बंद बुलाया, और ये भारत बंद ऐसे वक्त में बुलाया गया था जब भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकारों के नुमाइंदे भी ये कहने लगे थे कि, किसान आंदोलन में अब दम नहीं रहा और ये चंद नेताओं का आंदोलन मात्र रह गया है.
लेकिन सितंबर के आखिरी सोमवार को किसानों के भारत बंद ने एक बार फिर साबित किया कि किसान ना थके हैं, ना रुके हैं और ना पीछे हटे हैं. इस भारत बंद को ज्यादातर विपक्षी पार्टियों से लेकर कई ट्रक यूनियनों से लेकर व्यापार संगठनों तक का समर्थन हासिल था.
किसान आंदोलन का देशभर में दिखा असर
किसान आंदोलन का असर कैसा रहा इसका लोग अपने-अपने हिसाब से विवरण कर सकते हैं, लेकिन आपको अगर भारत बंद का असर समझना है तो दोपहर में आई दिल्ली-गुरुग्राम की हाइवे की तस्वीरें देख लीजिए. इसके अलावा दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे, कुंडली-मानेसर एक्सप्रेसवे, नेशनल हाइवे-9, और 24 को भी किसानों ने जाम कर दिया था.
गाजीपुर बॉर्डर भी पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया गया था जिसकी वजह से दिल्ली पुलिस ने एहतियात के तौर पर लाल किले की तरफ जाने वाले रास्ते रोक दिए थे. केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भी किसानों के भारत बंद का व्यापक असर रहा. हरियाणा-पंजाब में किसानों ने रेलवे लाइन को ब्लॉक कर दिया था, वो बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन के ट्रैक पर बैठ गए थे.
दरअसल जब-जब सरकार ने किसानों के आंदोलन को कमजोर बताया या समझा, तब-तब किसानों ने अलग-अलग तरीके से अपनी ताकत दिखाई. फिर चाहे वो गाजीपुर बॉर्डर का राकेश टिकैत के रोने के बाद उमड़ा जन सैलाब हो या करनाल में किसानों के सिर फोड़ने के आदेश देने वाले एसडीएम के खिलाफ किसानों की घेराबंदी, हर बार किसानों ने लोहा मनवाया.
लेकिन केंद्र सरकार को किसान अभी झुका नहीं पाए हैं. बहरहाल एक बार फिर आज के भारत बंद पर आते हैं जिसे लेकर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि भारत बंद सफल रहा, अब आगे की रणनीति बनाई जाएगी. राकेश टिकैत का ये बयान बताता है कि वो पीछे हटने के मूड में नहीं हैं और यही वो हमेशा कहते रहे हैं.
विपक्ष ने भारत बंद पर क्या कहा ?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किसानों के भारत बंद को समर्थन करते हुए ट्वीट किया और इसे 'अहिंसक सत्याग्रह' बताया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी किसानों का समर्थन करते हुए कहा कि अगर भारत में नहीं तो किसानों की बात कहां सुनी जाएगी. इनके अलावा भी तमाम विपक्ष के नेताओं ने भारत बंद का समर्थन किया. कई पार्टियों ने अपने कार्यकर्ताओं से किसान आंदोलन में शामिल होने की अपील भी की.
भारत बंद पर सरकार का रुख?
किसानों के भारत बंद पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कुछ विपक्षी दल गिने-चुने किसानों को गुमराह करके राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं. लेकिन बड़ी संख्या में किसान सरकार की नीतियों के साथ हैं और इन राजनीतिक दलों के बहकावे में नहीं आ रहे.
बता दें कि अगले कुछ ही महीनों में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में इन चुनावों पर कहीं न कहीं किसान आंदोलन का असर पड़ सकता है. इसीलिए तमाम विपक्षी दल भी किसानों के साथ भारत बंद के दौरान सड़कों पर उतरे और प्रदर्शन किया.
राजनीति से दूर रहना चाहते हैं किसान
तमाम राजनीतिक दल भले ही किसानों का समर्थन कर रहे हों, लेकिन वो अभी भी राजनीति से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. इसकी बानगी भारत बंद में भी देखने को मिली जब दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी गाजीपुर जाकर किसानों के समर्थन में बैठ गए. यहां किसानों ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष से ये कहते हुए उठने को कहा कि हमारा ये आंदोलन गैर राजनीतिक है.
बता दें कि किसानों ने तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पहली बार भारत बंद नहीं किया है वो पहले भी 26 मार्च को भारत बंद कर चुके हैं. उसे भी किसनों ने सफल बताया था और पूरे भारत में बंद का व्यापक असर देखने को मिला था.
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