कोविड की दस्तक भ्रम है या सच्चाई?
तवलीन सिंह ने जनसत्ता में लिखा है कि कोविड के लौटने की खबर ने हर किसी को चौंका दिया है. स्वास्थ्य मंत्री ने देश के बजाए राहुल गांधी को इस बारे में इत्तिला किया और कहा कि कोविड नियमों का पालन नहीं हुआ तो भारत जोड़ो यात्रा रोक दी जानी चाहिए. संयोग से तब लेखिका दिल्ली हवाई अड्डे पर थीं जब यह खबर मिली. आसपास कोई मास्क नहीं पहना था, न सैनिटाइजर देते प्लास्टिक सूट पहने लोग ही मिले. जब एअर इंडिया का विमान जोधपुर के लिए रवाना हुआ तो अंदर भी किसी ने मास्क नहीं पहन रखा था. कई विदेशी पर्यटक भी थे. महामारी के बाद पहली बार जोधपुर में पर्यटक लौटने लगे हैं.
लेखिका जोधपुर के एक होटल में शाम को एक बर्थडे पार्टी में गयीं. होटल मालिक ने बताया कि बीते तीन साल उसके लिए कितने मुश्किल भरे रहे थे. पर्यटकों को लौटता देखकर सब खुश हैं. स्वास्थ्यमंत्री की घोषणा इसलिए अजीब लगी क्योंकि वास्तव में अगर ऐसा होता तो प्रधानमंत्री ने खुद इसकी घोषणा की होती.
ऐसे में लेखिका का सवाल है कि क्या ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को रोकने के मकसद से ऐसी घोषणा की गयी है? अभी ज्यादा दिन नहीं हुए है जब विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं. बड़ी-बड़ी रैलियां हुई हैं और कोविड नियमों की कोई जरूरत नहीं दिखी थी. चीन में जरूर स्थिति खराब है लेकिन यह उनकी नीतियों के कारण है.
भारत में प्रधानमंत्री खुद दावा कर चुके हैं कि सबसे सफल टीकाकरण अभियान उनके नेतृत्व में हुआ है और इसकी वजह से कोविड को हराया जा सका है. भारत सरकार की तरफ से अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है. लेकिन यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्री को इस तरह की घोषणा नहीं करनी चाहिए.
‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मुकाम मिलेगा?
भानु प्रताप मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि अक्सर लोकतंत्र का भविष्य विपक्ष की गुणवत्ता पर निर्भर करता है. ऐसा खासकर तब और होता है जब सरकार विभिन्न सांस्थानिक शक्तियों का इस्तेमाल विपक्ष के खिलाफ कर रही हो. ऐसे में विपक्ष अपने लिए जगह कैसे बनाता है? यह एक परिप्रेक्ष्य है जिससे भारत यात्रा को जोड़कर देखा जाना चाहिए. निस्संदेह भारत जोड़ो यात्रा नये सिरे से राजनीतिक रूप से जगह बनाने का प्रयास है.
यात्रा राजनीतिक अभिव्यक्ति का आदर्श तरीका है. यह राष्ट्रीय आंदोलन के व्याकरण के हिसाब से तीर्थ और तपस्या का मिला-जुला रूप भी है. सच यह भी है कि यह यात्रा समग्र रूप में एक व्यक्ति राहुल गांधी के प्रभाव में है. सही या आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता की कमी है.
भानु प्रताप मेहता सवाल उठाते हैं कि क्या इस यात्रा से कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी मजबूत होंगे? इससे वे राजनीतिक रूप से अधिक स्वीकार्य नेता हो पाएंगे? इस यात्रा से राहुल गांधी के लिए सहानुभूति पैदा हो सकती है. क्या यह मतदाताओं को रिझा पाएगी और क्या यह खुद कांग्रेस को विश्वास दिला पाएगी कि प्रधानमंत्री पद की लड़ाई में वे इलेक्टोरल एसेट हैं? मेहता मानते हैं कि तीन बातें महत्वपूर्ण हैं. एक वैचारिक तौर पर राहुल गांधी विपक्ष के चुनिन्दा नेता हैं जो आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं. मगर, भारत धर्मनिरपेक्षता पर बंटा हुआ है. एकसमान नागरिक संहिता जैसे राजनीतिक मुद्दों पर भारत जोड़ो यात्रा की परीक्षा होने जा रही है.
दूसरी बात है कि इस यात्रा ने कितने लोगों का दिल और दिमाग बदला है? संपन्न वर्ग इससे प्रभावित नहीं हुआ है. राजनीतिक लोगों का व्यवहार यात्रा की सफलता पर निर्भर करता है. कुछ राज्यों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इस यात्रा ने उत्साह भरने का काम किया है. तीसरी बात यह है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्ष में एकता महत्वपूर्ण है. इस यात्रा से जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ घटित होता नहीं दिख रहा है. नफरत की सियासत के बीच भारत जोड़ो यात्रा महत्वपूर्ण है लेकिन यह राजनीतिक रूप से आशा पैदा नहीं करता.
नौसेना के पास बड़ी है चुनौती
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि नौसेना में डिस्ट्रॉयर आईएनएस मोरमुगाओ हाल में शामिल हुआ है तो कुछ समय पहले 45 हजार टन वजन वाले स्वदेश निर्मित विमान वाहक युद्धपोत विक्रांत को शामिल किया गया था. नौसेना दूसरी परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आईएनएस अरिघात को अपने बेड़े में शामिल करने की योजना पर काम कर रही है. पांचवीं स्कॉर्पिन पनडुब्बी आईएनएस वागिर नौसेना को सौंप दी गयी है. ऐसा पहली बार है जब नौसेना को इतने कम समय में इतने छोटे-बड़े जहाज एवं पनडुब्बियां मिली हैं. एक डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट या कॉर्वेट के निर्माण में 7 से 9 वर्ष का समय लग रहा है जो चीन की तुलना में दुगुना है.
एक रिपोर्ट के हवाले से नाइनन लिखते हैं कि बीते दो वर्षों में विमानवाहक पोत पर एक भी विमान नहीं उतरा है. फिर भी धीरे-धीरे भारत अपनी नौसेना को धार दे रहा है. आने वाले समय में नौसेना में 6600 टन के सात फ्रिगेट शमिल किए जाने वाले हैं. इन सबके बावजूद युद्धपोत एवं सेना के लिए साजो-सामान बनाने में चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं दिख रहा है भारत.
चीन ने कुछ समय पहले तीसरा विमानवाहक युद्धपोत अपनी नौसेना के बेड़े में शामिल किया था. इस युद्धपोत का आकार भारत के दोनों युद्धपोतों के संयुक्त आकार से भी बड़ा था. भारत की नौसेना के सामने सीमित बजट, ऑर्डर देने में देरी और इसके बाद धीमी गति से निर्माण जैसी चुनौतियों के अलावा आपूर्ति में देरी बड़ी चुनौतियां हैं. इसके अलावा चीन से मिल रही चुनौती भी नौसेना की परेशानी बढ़ा रही है. इस विषय पर गंभीरता से विचार की जरूरत है.
अतीत के साये में जिन्दगी तलाशते दुलत- एक खुफिया अफसर
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि दो बातें किसी संस्मरण को दिलचस्प बना देती हैं- मशहूर लोगों के बारे में यादगार उपाख्यान और तीखी टिप्पणियां. जब लेखक ने जीवन भर रॉ जैसे इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए काम किया हो तो ऐसे अनुभव दुर्लभ हो जाते हैं. एएस दुलत की किताब ‘ए लाइफ इन द शैडोज’ इन्हीं कारणों से मूल्यवान है. 80 के दशक में दुलत दिल्ली आने वाले विशिष्ट मेहमानों के लिए लाइजनिंग ऑफिसर थे. एक बार प्रिंस चार्ल्स आए इंदिरा गांधी के घर लंच पर. “लंच कैसा रहा, महामहिम” पूछने पर चार्ल्स ने कार में बैठते हुए बताया, “पूछो मत”. “यह महिला आपको फ्रीज कर सकती है. आप जानते हैं दुनिया भर के नेताओं से मैं मिला हूं, लेकिन यह महिला एक शब्द भी नहीं बोलती.”
करन थापर किताब के हवाले से लिखते हैं कि मार्ग्रेट थैचर अलग संदेश छोड़ती हैं. आयरन लेडी बहुत ख्याल रखने वाली बॉस बनकर उभरीं. आगे दुलत लिखते हैं कि जब थैचर ने देखा कि उनके सिक्योरिटी अफसर गॉरडॉन कॉथरॉन उनके कमरे के बाहर ठंड में रात बिताने की सोच रहे हैं तो उन्होंने पूछा, “गॉरडॉन क्या सही में तुम यहां रात बिताओगे?” उसने जवाब दिया, “हां, मैम, बेशक.” प्रधानमंत्री ने कहा, “एक मिनट रुको. यहां ठंड है. एक डेनिश स्वेटर मैं लाकर देती हूं.’
उसी दौरे में थैचर की कार जाम में फंस गयी. तब थैचर ने दुलत से लिफ्ट मांगा. वह पीछे की सीट पर विनम्रता से तीन लोगों के साथ बैठीं. दुलत ने अपनी किताब में ज्ञानी जैल सिंह से लेकर अर्जुन सिंह तक से जुड़े अपने संस्मरणों का जिक्र अपनी किताब में किया है. अपने समकालीन अजित डोवाल के बारे में उन्होंने लिखा है कि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण डोभाल के सभी मित्र हैं, लेकिन वे किसी के भी मित्र नहीं हैं. कभी लालकृष्ण आडवाणी के वे करीबी हुआ करते थे, आज नरेंद्र मोदी के करीबी हैं. कभी पाकिस्तान से बातचीत के पैरोकार थे, आज इससे उलट उनका रुख है.
फीफा को भूल जाओ, कौन होगा क्रिकेट वर्ल्ड कप चैंपियन?
डेक्कन क्रोनिकल में शोभा डे लिखती हैं कि बहुत राहत है कि फीफा वर्ल्ड कप बीत गया. मेसी या एम्बाप्पे के बारे में एक पंक्ति भी पढ़ने का जी नहीं चाहता. अब चार साल बाद यह सब दोहराया जाएगा. अब दाल-चावल पर लौटें. किसी ने इस बार परवाह नहीं की कि गोल्डन बूट, गोल्डन ग्लोव, गोल्डन ट्रॉफी...किसने जीती? हृदय गति सामान्य गति से चलती रही. केवल फुटबॉल के अंधभक्त ही सांस रोक देने वाले शूट आऊट के बारे में बातें कर रहे हैं. मेसी का उन्माद कुछ ऐसा है कि उसे लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है.
लोग कह रहे हैं कि उसने मैदान में 611 करोड़ की कमाई की है, कि उसने मैदान से बाहर 448 करोड़ कमाए हैं, कि केवल इंस्टाग्राम पोस्ट से उसे 15 करोड़ रुपये की कमाई हुई है. 300 करोड़ की फेरारी समेत कई लक्जरी कार हैं मेसी के पास! उसने दुनिया भर में गरीबों के लिए झोपड़ी बनाई है, दुनिया में सबसे बड़ा दानदाता है मेसी, 9 हजार से ज्यादा स्कूल बनाए हैं उसने. लेखिका पूछती हैं कि भारत को क्यों छोड़ दिया मेसी ने? यहां भी कुछ स्कूल बना देते.
शोभा डे लिखती हैं कि अर्जेंटीना समर्थक बक्सम ब्लॉन्ड ने अपनी खुली छाती दिखलायी और वह भी बड़े बोल्ड तरीके से, उसमें हमारी दिलचस्पी ज्यादा है. इसको कहते हैं गट्स. हमारी उर्फी जावेद भी इतना गट्स नहीं दिखा सकी हैं. कतर में ऐसा कैसे हुआ, यह रियो, ब्यूनस आयर्स नहीं था. यहां क्लीवेज नहीं दिखा सकते, टाइट कपड़े नहीं पहन सकते. दीपिका तक को चमड़े वाली भोंडी पोशाक पहनकर आना पड़ा. पता नहीं बक्सम ब्लॉन्ड का क्या हुआ? उसे वापस भेज दिया गया या कि वह जेल भेज दी गयीं.
इस बीच हमारे देसी स्पोर्ट्स लीजेंड सचिन तेंदुलकर ने 2011 क्रिकेट विश्वकप की ट्रॉफी ट्वीट किया है. चूंकि वे भी मेसी की तरह ही अपनी टीम के लिए 10 नंबर की जर्सी पहनते हैं, इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण है कि 2023 में क्रिकेट का वर्ल्ड कप चैंपियन कौन होगा? इस बीच हमारी महिला हॉकी टीम स्पेन को हराने और एफआईएच वीमेन नेशन्स कप 2022 जीतने के बाद नाचती-थिरकती हुई लौट आयी है. फीफा फाइनल से ठीक एक दिन पहले. क्या किसी ने ध्यान दिया?
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