वॉशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक फॉरेंसिक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के खिलाफ सूबतों को मालवेयर के सहारे लैपटॉप में प्लांट किया गया था. बाद में यही लैपटॉप पुलिस ने सीज कर लिए.
आर्सेनल कंसल्टिंग अमेरिका की डिजिटल फॉरेंसिक पर काम करने वाली कंपनी है. इस फर्म ने अपनी जांच में पाया है कि एक्टिविस्ट रोना विल्सन की गिरफ्तारी के पहले ही अटैकर्स ने उनके लैपटॉप में मालवेयर के जरिए छेड़छाड़ की और कम से कम 10 डॉक्यूमेंट हिडेन फाइल बनाकर सेव कर दिए.
इसके बाद पुलिस ने जब ये लैपटॉप सीज किया तो इसमें मिलने वाले इन डॉक्यूमेंट को भीमा कोरेगांव केस में चार्जशीट के प्राथमिक सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया गया.
इसी डॉक्यूमेंट में वो लेटर भी शामिल है जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया है कि विल्सन ने ये लेटर माओवादी मिलिटेंट्स को लिखा था और प्रतिबंधित संगठन से निवेदन किया था कि वो पीएम मोदी की हत्या कर दें. रिपोर्ट में ये पता चला है कि विल्सन के लैपटॉप में ये लेटर हिडेन फोल्डर में सेव किए गए थे और तो और विल्सन ने इन्हें कभी खोला तक नहीं था.
कई लोग हुए इस अटैक का शिकार
रिपोर्ट में सेंधमारी करने वाले अटैकर का पता तो नहीं चल पाया है लेकिन ये बात पुख्ता तौर पर सामने आई है कि इस तरह के अटैक के शिकार सिर्फ विल्सन ही नहीं थे. अटैकर ने इसी तरह के सर्वर्स और आईपी एड्रेस को दूसरे आरोपियों तक पहुंचाया था और ये सब 4 साल तक होता रहा. भारत के दूसरे हाईप्रोफाइल मामलों में भी आरोपियों को इसी तरह से टारगेट किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक विल्सन के लैपटॉप पर करीब 22 महीनों तक सेंधमारी होती रही. अटैकर्स का प्राथमिक लक्ष्य था कि लैपटॉप का सर्विलांस किया जाए और कुछ डॉक्यूमेंट को सेव किया जाए.
डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल का कहना है कि- फर्म ने टेंपरिंग के जितने भी मामलों का अध्ययन किया है, उसमें से ये अब तक का सबसे गंभीर केस था.
आर्सेनल को कैसे मिला लैपटॉप
विल्सन के वकील के निवेदन पर लैपटॉप की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी मिली. इसके बाद फर्म आर्सेनल ने इसका विश्लेषण किया. बुधवार को विल्सन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में इस रिपोर्ट को शामिल किया और निवेदन किया कि उनके क्लाइंट के खिलाफ मामलों को निरस्त किया जाए. सुदीप पासबोला ने वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में कहा कि आर्सेनल की रिपोर्ट से साबित होता है कि उनके क्लाइंट निर्दोष हैं.
ये खबर आने के बाद ट्विटर पर कई सारे रिएक्शन देखने को मिले हैं.
भीमा कोरेगांव गिरफ्तारी केसः क्या है मामला
भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक गौतम नवलखा, वारवारा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालवेस को गिरफ्तार किया था. पुणे पुलिस के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में यलगार परिषद की सभा के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके चलते जिले में अगले दिन (एक जनवरी 2018) को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी.
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