भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग को बॉम्बे हाईकोर्ट से राहत मिली है. उन्हें हाईकोर्ट ने टेंपररी (अस्थायी) बेल दे दी है. गाडलिंग को ये जमानत 13 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक दी गई है. दरअसल सुरेंद्र गाडलिंग की मां का एक साल पहले निधन हो गया, जिसके बाद उनकी बरसी और इससे जुड़े बाकी कामों के लिए गाडलिंग को जमानत दी गई है.
2020 में खारिज कर दी गई थी याचिका
गाडलिंग ने स्पेशल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा था कि पिछले साल अगस्त में उनकी मां का निधन हुआ था, जिसके बाद अब वो अपने परिवार के साथ उनकी बरसी में शामिल होना चाहते हैं. इससे पहले सितंबर 2020 में जब उन्होंने अपनी मां के निधन के बाद जमानत की याचिका दायर की थी तो जज ने इसे खारिज कर दिया था.
सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि जब गाडलिंग की मां का निधन हुआ था तो जमानत के लिए याचिका दायर की गई थी. 15 अगस्त 2020 को उनकी मां का निधन हुआ था, लेकिन गाडलिंग की याचिका पर जवाब देने का वक्त मांगते हुए एनआईए ने अपना जवाब 28 अगस्त को जाकर दाखिल किया. उन्होंने इस दौरान एनआईए पर आरोप लगाते हुए कहा कि, सुनवाई में देरी उसी की वजह से हुई.
NIA ने किया था जमानत का विरोध
हालांकि इस बार भी एनआईए की तरफ से इस जमानत याचिका का विरोध किया गया. एनआईए ने हाईकोर्ट में कहा कि, जो याचिका दायर की गई है, उसका कोई कारण नहीं है. क्योंकि उनकी मां का निधन एक साल पहले ही हो चुका है. एनआईए ने ये भी कहा कि जो काम करने के लिए वो जमानत मांग रहे हैं, उसे उनके परिवार का कोई भी अन्य सदस्य कर सकता है. हालांकि हाईकोर्ट ने फैसला गाडलिंग के वकील के पक्ष में सुनाया और इस टेंपररी जमानत को मंजूरी दे दी.
भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार लोगों का ये कहना है कि एनआईए ने उन्हें फंसाने के लिए सबूत प्लांट किए. सुरेंद्र गाडलिंग को लेकर कुछ दिन पहले अमेरिका की डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग (Arsenal Consulting) ने एक बड़ा दावा किया था. इस कंपनी ने दावा किया था कि इस मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर से भी छेड़छाड़ हुई थी और सबूत प्लांट किए गए थे.
16 लोगों के खिलाफ NIA के संगीन आरोप
बता दें कि सुरेंद्र गाडलिंग उन 16 लोगों में से एक हैं जिन्हें भीमा-कोरेगांव केस का आरोपी बनाया गया है. इन तमाम लोगों के खिलाफ कई संगीन धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. इनमें से कई लोगों को जमानत तक नहीं दी गई. कुछ दिन पहले लगातार जमानत की याचिका दायर करते-करते झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (Stan Swamy) का 84 साल की उम्र में निधन हो गया. वो कोर्ट से लगातार मांग कर रहे थे कि उन्हें अपने जिले में भेज दिया जाए, लेकिन हर बार उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया.
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