भीमा कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद सम्मेलन मामले में वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को पुलिस ने एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया है. उन्हें 6 नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है. बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शुक्रवार को पुणे की एक अदालत ने तीन सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोनजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
जिसके बाद पुणे पुलिस ने उन्हें यहां गिरफ्तार किया था. सुधा पर नक्सलियों से संबंध रखने का आरोप है. इसी को देखते हुए पुणे सेशन कोर्ट ने उन्हें पुलिस 6 नवंबर तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया है.
पुणे पुलिस ने तीनों को कवि पी वरवर राव और गौतम नवलखा के साथ 31 दिसंबर को हुए यलगार काउंसिल कॉन्फ्रेंस से कथित संबंध के मामले में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था. इस कॉन्फ्रेंस के बाद ही भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़की थी.
पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं. डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज (स्पेशल जज) केडी वडाणे ने भारद्वाज, गोनजाल्विस और फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी.
इसके बाद 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक हिरासत में लिए गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा था.
क्या है पूरा मामला?
साल 1818 में हुई भीमा- कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एल्गार परिषद कार्यक्रम के सिलसिले में जून में गिरफ्तार पांच लोगों में एक के घर पुलिस की तलाशी के दौरान कथित तौर पर जब्त एक पत्र में राव के नाम का जिक्र था.
विश्रामबाग थाना में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक, कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ टिप्पणी करने के बाद जिले के भीमा- कोरेगांव गांव में हिंसा हुई थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)