भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को तीखी बहस हुई. अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को जांच की केस डायरी पेश करने का निर्देश दिया है. साथ ही पुलिस और एक्टिविस्ट दोनों पक्षकारों को 24 सितंबर तक अपने लिखित नोट दाखिल करने के लिये कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
केस डायरी पेश करने का आदेश
गुरुवार को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश अडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि पूरी केस डायरी कोर्ट के सामने पेश करे. वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने तुषार मेहता से सवाल किया कि मीडिया के पास वह लेटर कहां से आया. फिलहाल कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
इससे पहले सोमवार को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट में और सबूत पेश करने के लिए वक्त मांगा था. जिसके बाद कोर्ट ने 19 जुलाई तक सुनवाई को टाल दिया था.
भीमा कोरेगांव गिरफ्तारी केसः क्या है मामला
भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में पुणे पुलिस ने बीती 28 अगस्त को देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक गौतम नवलखा, वारवारा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालवेस को गिरफ्तार किया था.
इसके बाद 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक हिरासत में लिये गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा.
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