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भोपाल: 4 अस्पतालों ने लौटाया, 8 महीने की गर्भवती महिला की मौत

एक के बाद एक अस्पताल ने वापस लौटाया

Published
भारत
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आठ महीने की गर्भवती और दर्द से कराहती 23 वर्षीय अंबरीन भोपाल में सुल्तानिया जनाना अस्पताल के बाहर तीन घंटे बैठी रहीं. वो और उनके पति एजाज अस्पताल के गार्ड से उन्हें अंदर जाने देने की गुहार लगाते रहे. अंबरीन को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और वो अपनी और बच्चे की जिंदगी के लिए परेशान थीं.

सुल्तानिया जनाना अस्पताल पहुंचने से पहले अंबरीन को तीन अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया था.

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एक के बाद एक अस्पताल ने वापस लौटाया

26 मई की सुबह अंबरीन ने छाती में दर्द और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की. एजाज ने प्राइवेट मानसी अस्पताल को संपर्क किया क्योंकि वो उनके ऐशबाग स्थित घर के पास था. अस्पताल ने बताया कि डॉक्टर 26 मई की शाम से पहले उपलब्ध नहीं हो पाएंगे. अंबरीन ने शाम 7 बजे तक दर्द बर्दाश्त किया लेकिन उनकी हालत बिगड़ने पर वो अस्पताल गईं.

ECG करने के बाद और एक पेनकिलर देकर डॉक्टर ने उन्हें वापस भेज दिया.

जब अंबरीन की हालत और खराब हुई तो एजाज उन्हें जेपी अस्पताल ले गए, जहां उनका इलाज करने से मना कर दिया गया क्योंकि उनमें कोरोना वायरस जैसे लक्षण (सांस लेने में तकलीफ) थे. अस्पताल ने जोड़े को इंदिरा गांधी वीमन एंड चिल्ड्रन हॉस्पिटल रेफर कर दिया. 

अंबरीन को वहां 27 मई को करीब रात 12:45 पर एम्बुलेंस में ले जाया गया. अस्पताल ने डॉक्टर के ड्यूटी पर न होने का कारण बताकर उन्हें वापस भेज दिया. एजाज फिर अपनी पत्नी को सुल्तानिया जनाना अस्पताल ले आए, जहां वो चार घंटे तक गेट पर खड़े रहे और गार्ड से अंदर जाने देने की गुहार लगाते रहे.

27 वर्षीय एजाज ने बताया, "सुबह करीब 4 बजे अस्पताल के गार्ड ने गेट खोला और अंबरीन को भर्ती किया गया." दोनों की शादी 2018 में हुई थी.

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भर्ती करने के बाद नर्स ने मुझे तो ब्लड सैंपल दिए और मुझसे Complete Blood Picture (CBP) और Erythrocyte Sedimentation Rate (ESR) टेस्ट रिपोर्ट हमीदिया अस्पताल से लाने को कहा. सुबह के करीब 4:15 हो रहे थे. इसलिए सरकारी लैब में कोई नहीं था. अस्पताल के गार्ड ने मुझे प्राइवेट लैब जाने की सलाह दी. 1,800 रुपये देकर मुझे एक घंटे में रिपोर्ट मिली. 
एजाज, अंबरीन के पति

रिपोर्ट देखकर सुल्तानिया जनाना अस्पताल के डॉक्टर ने अंबरीन को हमीदिया सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा क्योंकि उनकी हालत तेजी से बिगड़ रही थी. एजाज को बताया गया कि बच्चा ठीक है और सांस ले रहा है.

दुखद घटनाक्रम

27 मई को सुबह करीब 8:30 बजे जोड़ा एम्बुलेंस में हमीदिया अस्पताल गया, जहां अंबरीन को ICU में भर्ती किया गया. वहां नर्स ने ब्लड सैंपल लिया और एक्स-रे किया. जिस डॉक्टर ने अंबरीन का चेकअप किया, उसने परिवार को बताया कि अंबरीन के सीने में 'पानी भर गया है' और इसी वजह से उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है.

दोपहर 1 बजे अस्पताल ने अंबरीन को वेंटीलेटर पर रखने की इजाजत मांगी. लेकिन तीन घंटे बाद अस्पताल ने उन्हें COVID वार्ड में शिफ्ट कर दिया, अंबरीन की मां रेशमा ने दावा किया, "डॉक्टर ने बिना रिपोर्ट का इंतजार किए उसे COVID वार्ड में शिफ्ट कर दिया."

शाम करीब 6 बजे एक नर्स ने हमें बताया कि बच्चे की मौत हो गई है और वो लोग ऑपरेशन कर रहे हैं. रात करीब 3 बजे उन्होंने हमें एक नवजात लड़की की लाश थमा दी.
अंबरीन की मां रेशमा

कुछ देर बाद परिवार ने अंबरीन को देखने की मांग की लेकिन डॉक्टर ने कथित रूप से मना कर दिया. परिवार ने वीडियो कॉल के जरिए देखने को कहा लेकिन ये भी नहीं माना गया.

अगले दिन 28 मई को अस्पताल ने परिवार को बताया कि अंबरीन की मौत हो गई. एजाज ने कहा, "अस्पताल ने उसके मरने की खबर दोपहर 1:30 दी थी लेकिन डेथ सर्टिफिकेट में समय सुबह 10:11 का लिखा है." एजाज ने बताया कि सर्टिफिकेट में नाम भी गलत लिखा है, जब हमने इसे ठीक करने को कहा तो स्टाफ ने पैसा और हलफनामा मांगा.

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भोपाल सरकार और अस्पताल की प्रतिक्रिया

अंबरीन के परिवार के आरोपों को नकारते हुए इंदिरा गांधी वुमन एंड चाइल्ड हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट ने दावा किया कि परिवार झूठ बोल रहा है.

कोई सबूत नहीं है जिससे साबित होता है कि वो अस्पताल आए थे और उन्हें लौटा दिया गया. असल में वो कभी नहीं आए. कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है. वो झूठ बोल रहे हैं.
डॉ सुनील गुप्ता, इंदिरा गांधी वुमन एंड चाइल्ड हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट

भोपाल डिस्ट्रिक्ट चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर (CMHO) डॉ प्रभाकर तिवारी ने कॉल का जवाब नहीं दिया.

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि वो घटना से अंजान हैं. मिश्रा ने कहा, "अगर अस्पताल के खिलाफ लापरवाही की शिकायत होगी तो हम इन्क्वायरी करेंगे और जरूरत एक्शन लेंगे."

हमीदिया अस्पताल के डीन डॉ अरुणा कुमार ने कहा, "मुझे घटना की जानकारी नहीं है. लेकिन क्योंकि ये गंभीर लापरवाही का मामला है, मैं इसकी रिपोर्ट मांगूंगा."

इसी तरह भोपाल कमिश्नर और अस्पताल के चेयरपर्सन कवींद्र कियावत ने भी कहा कि उन्हें घटना की जानकारी नहीं है और कहा कि वो रिपोर्ट लेंगे.

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