चुपचाप अपना काम करो, काम तो अपना शोर खुद ही मचा देगा. कुछ इसी तरह की फिलॉसफी पर चलते हैं बीजेपी महासचिव और गुजरात के प्रभारी भूपेंद्र यादव. और अब जिस तरह से बीजेपी ने गुजरात में 22 साल की एंटी-इन्कंबेंसी को धता बताते हुए सत्ता बरकार रखी है, उसने भूपेंद्र यादव को दहलीज पर खड़ी जीत का हीरो बना दिया है. लोग उनकी बात कर रहे हैं. पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह वो चेहरे थे जो सामने रहे लेकिन भूपेंद्र यादव ने गुजरात में पार्टी का सारा कामकाज संभाला.
आठ महीने में ‘खिला दिया कमल’
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भूपेंद्र यादव को गुजरात का प्रभार करीब 8 महीने पहले, अप्रैल में सौंपा था. तब से अब तक साबरमती में बहुत सारा पानी बह चुका है और इस दौरान भूपेंद्र ने पार्टी के पक्ष में रणनीतियों की झड़ी भी लगा दी. जिसमें सबसे खास रहा जातिगत समीकरणों को साधना. भूपेंद्र यादव ने पार्टी में अपनी जगह प्रदर्शन के दम पर हासिल की है. 2013 में वो उन्हें राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी प्रभारी बनाया गया. साल 2014 में उनके कंधों पर झारखंड और अगले ही साल बिहार की जिम्मेदारी सौंपी गई. राजस्थान में बीजेपी को बंपर जीत मिली. 200 में से 163 सीट. झारखंड में बीजेपी गठबंधन को 82 में से 47 सीटें मिलीं.
प्लानिंग शाह की, जमीन पर उतारने का काम यादव का
चुनाव दर चुनाव, शाह ने यादव पर भरोसा जताया. बीजेपी अध्यक्ष ने कागज पर प्लान तैयार किया और भूपेंद्र यादव ने उस प्लान को कागज से बाहर निकालकर अमली जामा पहनाया. बूथ मैनेजमेंट को लेकर भी यादव ने जमकर काम किया.
वैसे तो गुजरात में खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ही गूंज रहती है. इन दोनों के सामने कोई और चेहरा गुजरात में आपको याद नहीं आता. लेकिन भूपेंंद्र यादव वाकई चुपचाप रहना पसंद करते हैं. यही वजह है कि राजनीति को करीब से देखने, जानने और समझने वालों के अलावा लोग उन्हें कम ही जानते हैं. स्थानीय स्तर पर मुद्दों, नेताओं, ताकत और कमजोरियों को आंक कर काम करना यादव का ट्रेडमार्क है.
अमित शाह की एक चुनावी रणनीति की अक्सर चर्चा होती है. वो है- वोटर लिस्ट पर हर पन्ने तक का मैनेजमेंट. यानी, उस पन्ने पर जिन भी वोटरों के नाम दर्ज हैं. जानकार बताते हैं कि भूपेंद्र यादव ने करीब-करीब हर चुनाव में उनके पन्ना मैनेजमेंट को जमीन पर उतारा है.
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