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चंद्रयान-2 के लिए आज का दिन बेहद खास, ऑर्बिटर से अलग होगा लैंडर

सात सितंबर को चंद्रयान-2 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरेगा.

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भारत
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भारत के चंद्रयान-2 ने अपनी मंजिल, यानी चांद की सतह तक पहुंचने के लिए एक और अहम पड़ाव को पार कर लिया. रविवार को इसरो के वैज्ञानिकों ने शाम छह बजकर 21 मिनट पर चंद्रयान-2 को चंद्रमा की पांचवीं और अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कराया. अब सोमवार को यान के ऑर्बिटर से लैंडर और रोवर को अलग करने की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा. इस अहम प्रक्रिया को कामयाबी के साथ पूरा करने के लिए इसरो पूरी तरह तैयार है. सात सितंबर को चंद्रयान-2 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरेगा.

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'विक्रम' को ऑर्बिटर से अलग करने की चुनौती

इसरो ने कहा कि उसका अगला कदम चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से लैंडर ‘विक्रम' को अलग करना है जो दो सितंबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट से 1 बजकर 45 मिनट के बीच किया जायेगा. ‘विक्रम' लैंडर सात सितंबर को तड़के डेढ़ बजे से ढाई बजे के बीच चंद्रमा की सतह पर पहुंचेगा. इसरो के चेयरमैन के सिवन के मुताबिक दो सितंबर को होने वाला लैंडर सेपरेशन काफी तेज गति से होगा. यह उतनी ही गति से होगा जितनी गति से कोई सैटलाइट अपने लॉन्च व्हीकल से अलग होता है. इसलिए इस प्रक्रिया का कामयाब होना मिशन की कामयाबी के लिए बेहद अहम है.

इंटिग्रेटेड स्पेसक्राफ्ट को अलग-अलग करने के लिए जरूरी कक्षा सोमवार को स्थिर करने के बाद इसरो कमांड देगा, जो ऑनबोर्ड सिस्टम अपने आप एग्जिक्यूट करेगा. इस तरह ऑर्बिटर से लैंडर अलग होकर चंद्रमा की ओर बढ़ जाएगा, जबकि ऑर्बिटर चांद की कक्षा में चक्कर काटता रहेगा.

स्पेसक्राफ्ट की सभी गतिविधियां सामान्य

इसरो ने रविवार को कहा कि उसने चंद्रयान-2 को चंद्रमा की पांचवीं और अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कराया और वह दो सितंबर को लैंडर को ऑर्बिटर से अलग करने की तैयारी कर रहा है. इसरो ने इस प्रक्रिया (मैनुवर) के पूरा होने के बाद कहा कि स्पेस क्राफ्ट की सभी गतिविधियां सामान्य हैं.
इसरो ने एक अपडेट में कहा, “ऑनबोर्ड प्रोपल्शन सिस्टम का प्रयोग करते हुए चंद्रयान-2 स्पेस क्राफ्ट को चंद्रमा की अंतिम और पांचवीं कक्षा में आज (एक सितंबर, 2019) सफलतापूर्वक प्रवेश कराने का काम योजना के मुताबिक छह बजकर 21 मिनट पर शुरू किया गया. चंद्रमा की पांचवीं कक्षा में प्रवेश कराने की इस पूरी प्रक्रिया में 52 सेकेंड का समय लगा.”

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7 सितंबर को इसरो के लिए ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की 'अग्निपरीक्षा'

चंद्रयान-2 को चांद की पांचवीं कक्षा में रविवार को प्रवेश कराना भारत के इस मिशन के लिए एक बड़ी परीक्षा थी, लेकिन ‘सबसे बड़ी’ परीक्षा सात सितंबर को तब होगी जब इसरो कुछ ऐसा करेगा जो उसने पहले कभी नहीं किया है. भारत के चंद्रयान-2 मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण चरण सात सितंबर को आएगा जब इसरो चांद की सतह पर लैंडर 'विक्रम' की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराएगा. इसरो ने अब से पहले इस तरह के काम को कभी अंजाम नहीं दिया है. इसरो के वैज्ञानिक चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में सात सितंबर को होने वाली ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ को मिशन की सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं, लेकिन उनका जोश ‘हाई’ है.
लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके अंदर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और अपने छह पहियों पर चलकर विभिन्न तरह के वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा. वह एक चंद्र दिन (पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर) तक अपना काम करेगा. वहीं, ऑर्बिटर चांद की कक्षा में चक्कर लगाकर अपने अध्ययन का काम करेगा.

ऑर्बिटर और रोवर अपने अध्ययन और प्रयोग कार्य की जानकारी धरती पर बैठे इसरो वैज्ञानिकों को भेजेंगे. ऑर्बिटर एक साल तक अपने मिशन को अंजाम देता रहेगा.

‘सॉफ्ट लैंडिंग’ अगर कामयाब हो जाती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. वहीं, ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बाद भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाले पहले देश का दर्जा भी हासिल कर लेगा. लैंडर के चांद पर उतरने से पहले यह देखने के लिए तस्वीरें ली जाएंगी कि जहां ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराई जानी है, उस जगह पर कोई खतरा तो नहीं है.

बता दें कि भारत ने अपने हेवी लिफ्ट रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क 3 (जीएसएलवी एमके 3) की मदद से 22 जुलाई को चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया था. स्पेसक्राफ्ट के तीन सेगमेंट हैं-ऑर्बिटर (वजन 2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड्स), लैंडर 'विक्रम' (1,471 किलोग्राम, चार पेलोड्स) और एक रोवर 'प्रज्ञान' (27 किलोग्राम, दो पेलोड्स).

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