कोरोना और लॉकडाउन के बीच तीन महीने से बिना सैलरी के गुजारा कर रहे बिहार के चार लाख शिक्षकों के लिए थोड़ी राहत की खबर है. बिहार सरकार ने राज्य के नियोजित शिक्षकों और नियमित शिक्षकों को बकाया सैलरी देने का निर्देश जारी किया है. हालांकि इसमें हड़ताल कर रहे शिक्षकों को सिर्फ जनवरी की सैलरी देने की बात कही गई है.
बता दें कि बिहार के करीब 4 लाख नियोजित शिक्षक 'समान काम, समान वेतन’ की मांग को लेकर 25 फरवरी से हड़ताल पर थे.
अब बिहार शिक्षा विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रट्री आरके महाजन ने शनिवार को निर्देश जारी किए कि जो टीचर हड़ताल में शामिल थे उन्हें सिर्फ जनवरी महीने की सैलरी दी जाएगी. वहीं जो टीचर हड़ताल में शामिल नहीं थे और जिन लोगों ने एग्जाम के बाद कॉपी चेक करने का काम किया था उन्हें जनवरी और फरवरी दोनों महीने की सैलरी दी जाएगी.
आरके महाजन के नाम से जारी लेटर में लिखा है, “क्लास एक से 12वीं तक काम करने वाले सभी नियमित और नियोजित शिक्षकों को जनवरी 2020 तक कार्यरत अवधि का वेतन भुगतान किया जाए.”
बिना सैलरी घर का गुजारा मुश्किल
बिहार सरकार के इस फैसले पर बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडे ने क्विट से बात की. उन्होंने कहा,
“बिहार के शिक्षक दो तरफा मार झेल रहे हैं, एक तरफ कोरोना का डर और दूसरी तरफ सैलरी का ना आना. हालांकि सरकार ने अब जाकर हड़ताल कर रहे नियोजित शिक्षकों को सैलरी देने की बात कही है, लेकिन ये सैलरी सिर्फ जनवरी तक की होगी. जबकि समान वेतन और बाकी मांगों को लेकर टीचर 25 फरवरी से हड़ताल पर थे. फिर सरकार 25 दिनों की और सैलरी क्यों नहीं देती है.”केदारनाथ पांडे, अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ
बता दें कि कोरोनावायरस के प्रकोप को देखते हुए देशभर में लॉकडाउन का आदेश दिया गया है. ऐसे में लॉकडाउन के आदेश से नियोजित शिक्षकों की परेशानी और बढ़ गई थी. कई हजार के कर्ज में डूबी सारन के रहने वाले टीचर कुमार अर्नज बताते हैं कि उनकी सैलरी तीन महीने से नहीं आई है. हमने जनवरी और फरवरी दोनों में ही काम किया है. मेरी सैलरी सिर्फ 28 हजार रुपए है, इसी पैसे से अपने बीमार माता-पिता का इलाज कराना होता है, इसी पैसे में बच्चों की पढ़ाई और घर चलाना होता है.” एक और टीचर कंचन कहती हैं,
तीन महीने से सैलरी नहीं मिलने से मेरी आर्थिक हालत चरमरा गई है, किराए के मकान में रहते हैं, कर्ज लेकर मकान मालिक को पैसे दिया, किराने की दुकान से उधार सामान लेते हैं, अब उसने भी ऐसे हालात में सामान देने से मना कर दिया है. अब एक महीने की सैलरी आएगी, फिलहाल कुछ तो होगा लेकिन हमारी पूरी सैलरी आनी चाहिए, साथ ही सरकार को हमारी जायज मांगों को मानना चाहिए.”
बता दें कि 2015 से बिहार के नियोजित शिक्षक समान वेतन, प्रोमोशन, ट्रांसफर जैसी कुछ मांग उठाते रहे हैं, लेकिन जब सरकार ने इन लोगों की मांग नहीं सुनी तब ये लोग 25 फरवरी 2020 से हड़ताल पर चले गए थे.
2006 में सरकार ने नियोजन नियमावली बनाई थी जिससे स्थाई पदों को समाप्त करके नियोजित शिक्षकों को पंचायती राज व्यवस्था से नियुक्ति कराई जाती है. इस पंचायती राज व्यवस्था से जो नियुक्त होकर शिक्षक आते हैं उनको नियोजित शिक्षक कहा जाता है. राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा भी नहीं देती है.
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की पहली मांग है कि उन्हें पंचायती राज व्यवस्था से अलग करा दीजिए और राज्य कर्मी का दर्जा प्रदान कर दीजिए. राज्य कर्मी का दर्जा जैसे ही नियोजित शिक्षकों को मिल जाएगा वैसे ही इनकी ऐच्छिक स्थानांतरण और इनका अपना सेवा शर्त ईपीएफ की सुविधा जैसी तमाम सुविधाएं जो नियमित शिक्षकों को मिलती है वो सभी मिलनी शुरू हो जाएंगी.
नीतीश ने कहा था- सब कुछ शिक्षकों को ही दे देंगे, तो क्या सड़कें नहीं बनाई जाएं?
यही नहीं अभी हाल ही में बिहार विधान परिषद में राज्यपाल के अभिभाषण पर सवालों का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने टीचरों को हड़ताल पर कहा था कि “छात्रों की परीक्षा होने वाली है और आप हड़ताल करोगे? क्या ये शिक्षकों का काम है? हम आपको नियमित शिक्षकों के बराबर वेतनमान नहीं दे सकते हैं, क्योंकि बिहार में और भी काम करने है. सब कुछ शिक्षकों को ही दे दिया जाए, तो क्या सड़कें नहीं बनाई जाए? क्या अस्पताल नहीं बनाए जाए? लोगों को सुविधाएं नहीं दी जाए?”
बता दें कि बिहार में कई बार टीचर हड़ताल कर चुके हैं और पुलिस की लाठी का शिकार भी. ऐसे में सरकार का सैलरी देने का आदेश इस महामारी में थोड़ी राहत जरूर देगा.
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