भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का एक और बयान अब चर्चाओं का विषय बन गया है. दरअसल कैमूर जिले में एक सभा को संबोधित करते हुए बिहार की नीतीश सरकार में कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा कि, कृषि विभाग में कोई डिपार्टमेंट ऐसा नहीं है जो चोरी नहीं करता. ऐसे में हम चोरों के सरदार ही न कहलाएंगे. कृषि मंत्री अगर कहते हैं कि उनके प्रदेश में कृषि विभाग चोरी करता है तो प्रदेश के किसानों की हालत में सुदार कैसे होगा. वो भी तब जब प्रदेश सूखे की मार झेल रहा है. लेकिन बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार मानी जाने वाली कृषि और किसानों की प्रदेश में आखिर हालत कैसी है. इस आर्टिकल में यही समझने की कोशिश करेंगे.
इस रिपोर्ट की शुरुआत से पहले कुछ तथ्यों से रुबरू होते हैं-
गंगा के मध्य मैदानी भाग में स्थित भारत का पूर्वी राज्य है बिहार.
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यहां के भौगोलिक क्षेत्र की 60 फीसदी भूमि खेती के अधीन है, करीब 77 फीसद कार्यबल कृषि पर आश्रित है और राज्य की जीडीपी का लगभग 24.84 फीसद उत्पादन कृषि कार्यों से होता है.
भूगोल की किताबों में पढ़ने को मिलता है कि बिहार की कृषि भूमि गहन खेती के लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि यहां के भूमि क्षेत्र के बड़े हिस्से में खादर (हाल ही में जमा जलोढ़) और बांगर (पुरानी जमा जलोढ़) की प्रचुरता है.
बिहार (Bihar) के बारे में यह भी कहा जाता है कि साल 2000 में बंटवारे के बाद यहां की सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपत्ति उपजाऊ मिट्टी ही बची रह गई, बाकी सारे खनिज और खान झारखंड के हिस्से चले गए.
मोटे तौर पर कहें तो कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है. यह राज्य पूरी तरह कृषि पर आश्रित है.
लेकिन, अब आपको यह जानकर विडंबना लगेगा कि जिस राज्य का जीवन खेती पर टिका है वह खेती के मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल है.
फसल उत्पादन और उत्पादकता के मामले में राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे यह राज्य हाल के वर्षों में बढ़ती उत्पादन लागत, आधारभूत संरचना (सिंचाई,बीज,खाद की अनुपलब्धता) का संकट, किसानों को उनके उत्पाद का वाजिब मूल्य नहीं मिलने, एमएसपी पर सरकारी खरीद नहीं होने, साल दर साल आ रही प्राकृतिक आपदाओं (बाढ़-सुखाड़) और पूंजी की कमी जैसी समस्याओं से जूझता नजर आया है.
सूखे की मार और बाढ़ की त्रासदी एक साथ
इस साल की बात करें तो एक तरफ जहां आधा से अधिक बिहार सूखे की चपेट में है, वहीं दूसरी तरफ बाकी के हिस्से बाढ़ की त्रासदी झेल रहे हैं.
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में इस साल के मानसून सीजन (एक जून से एक सितंबर तक) में सामान्य से काफी कम (-38%) बारिश हुई है. इसमें भी 38 में से तीन जिले सुपौल, अररिया और किशनगंज को छोड़ अधिकांश जिलों में 50 से 90 फीसद तक कम वर्षा हुई है.
कम बारिश के कारण बिहार में खरीफ की फसल लगभग पचास फीसद बर्बाद हो चुकी है. और मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि बाकी बचे सीजन में भी सामान्य से कम वर्षा होने वाली है.
राज्य में खरीफ की मुख्य फसल धान है. रोहतास को “धान का कटोरा” कहा जाता है. लेकिन इस साल रोहतास में सामान्य से 44 फीसद कम बारिश हुई. जिले के किसान त्राहिमाम कर रहे हैं.
वर्षापात का यह आंकड़ा हाल के दिनों में तो थोड़ा सुधरा भी है, लेकिन जब धान की रोपनी का समय (जुलाई-अगस्त) था तब राज्य में सामान्य से 75 फीसद तक कम बारिश हुई थी. लिहाजा इस साल धान की रोपनी भी लक्ष्य की आधी से थोड़ी ही ज्यादा (57%) हो पाई.
अब किसानों के सामने चुनौती है कम वर्षा पूर्वानुमान के बीच अपनी फसल को बचाने की. क्योंकि राज्य में सिंचाई की सुविधाओं का अभाव पहले से है. वैसे भी अगर फसल बच भी गई तो इस साल उत्पादन में काफी गिरावट देखने को मिल सकता है.
मसला केवल सूखा ही नहीं है. एक ओर जहां राज्य का तीन चौथाई हिस्सा सूखे की चपेट में है, वहीं दूसरी ओर नेपाल और उत्तर प्रदेश से सटे सीमावर्ती इलाके हर साल की भांति इस साल भी बाढ़ की चपेट में हैं जहां खरीफ की खेती संभव ही नहीं दिखती.
कुल मिलाकर कहें तो बिहार इस साल कृषि के क्षेत्र में दोहरी मार झेल रहा है. एक तो यहां पहले से कृषि की उन्नत व्यवस्था नहीं है, दूसरे में सूखे और बाढ़ ने किसानों को लाचार बना दिया है.
जुलाई और अगस्त में जब पूरा प्रदेश बारिश की बूंदों के लिए तरस रहा था, तब यहां सरकार बनाने और बिगाड़ने की कवायदें चल रही थीं.
नई सरकार के नए मंत्री पर पहले से गबन का आरोप
अब जबकि बिहार में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने बीजेपी का साथ छोड़ लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और महागठबंधन की अन्य पार्टियों के साथ मिलकर नई सरकार बना ली है, कृषि मंत्री भी बदल गए हैं.
BJP के वरिष्ठ नेता अमरेन्द्र प्रताप सिंह की जगह सुधाकर सिंह नए कृषि मंत्री बने हैं, लेकिन उनके मंत्री बनाए जाने के साथ ही विवादों ने भी तूल पकड़ लिया है.
बीजेपी के सीनियर लीडर और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सुधाकर सिंह पर यह आरोप लगाया है वे मंत्री बनने के पहले ही धान खरीद में घोटाला कर चुके हैं, तथा इन आरोपों में जेल भी जा चुके हैं.
बकौल सुशील कुमार मोदी,
“सुधाकर सिंह ने साल 2013 में अपनी दो राइस मिलों के जरिए एफसीआई से धान खरीद में 5.31 करोड़ रुपए का गबन किया था. गबन की यह राशि बाद के वर्षों में ब्याज सहित बढ़कर 12 करोड़ रुपए हो गई है.”सुशील कुमार मोदी, पूर्व उप मुख्यमंत्री, बिहार
मोदी आगे कहते हैं, “क्या यह सच नहीं है कि सुधाकर सिंह के खिलाफ रामगढ़ थाने में धारा 420, 406 के तहत गबन का मामला दर्ज है? क्या यह सच नहीं है कि इस मामले में वे जेल गए? कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी! बाद में 60 लाख रुपये मुचलका देने पर जमानत मिली.“
सुशील मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ऐसे सवाल पूछे,
“जिस मंत्री पर राज्य सरकार का 12 करोड़ रुपया बकाया हो क्या उसे मंत्री बनाए रखना उचित होगा? अब मंत्री कह रहे हैं कि नीतीश सरकार की नीति गलत थी और वे उसे बदलवाएंगे. क्या नीतीश कुमार लालू प्रसाद और जगदानंद सिंह के दबाव में आकर नीति में बदलाव कर सुधाकर सिंह को राहत देंगे? “
नहीं हुआ गबन, मामला कॉन्ट्रेक्ट के उल्लंघन का था- कृषि मंत्री
बिहार में खेती की लचर हालत और साथ ही सुशील कुमार मोदी के तमाम आरोपों को लेकर हमने बात की नए कृषि मंत्री सुधाकर सिंह से.
सबसे पहले सुशील कुमार मोदी के आरोपों का जवाब देते हुए सुधाकर सिंह कहते हैं,
“सुशील कुमार मोदी को यह भी बताना चाहिए कि साल 2013-14 के दरम्यान जब मुझपे ये आरोप लगे थे, तब मैं बीजेपी में था और तब मोदी जी मुझसे मिलना भभुआ जेल भी आए थे. उनका तब का बयान था कि नीतीश सरकार मेरे साथ गलत कर रही है. और अब जबकि हम आरजेडी के साथ हैं तो उन्हें लगता है कि मैंने गबन कर लिया. यही मोदीजी की दोहरी नीति है.”
सुधाकर सिंह आगे कहते हैं, “रही बात जेल जाने की तो हां मैं जेल गया. सिस्टम का फायदा उठाकर किसी को भी जेल भेजा जा सकता है. लेकिन रही बात 60 लाख रुपए मुचलके पर जमानत मिलने की तो यह सरासर गलत है. मुझे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली है.”
धान खरीद का घोटाला आखिर था क्या और किस आधार पर सुधाकर सिंह पर गबन के आरोप लगे थे, इसके बारे में कृषि मंत्री बताते हैं,
“सरकार ने हमें धान दिया ताकि हम उससे प्रोसेस करके चावल बना सकें. इसके बाद सरकार की ड्यूटी थी कि तैयार चावल को एफसीआई के गोदाम में रखवाना. जब हमने धान से चावल तैयार कर लिया तो उसके बाद भी सरकार को 11 बार चिट्ठी लिखी की चावल को ले जाया जाए. फिर भी सरकार नहीं ले गई वह चावल. इन सबका साक्ष्य है हमारे पास.”
कृषि मंत्री आगे कहते हैं, “सरकार ने उसके बाद हमारे गोदाम की जांच करवाई जहां उनका सारा चावल मिला भी. अगर वो चावल नहीं रहता तब न घोटाला होता. हालांकि, फिर भी वो चावल नहीं ले जाया गया हमें यह बताकर कि उसकी गुणवत्ता खराब है. अरे भाई मैं पूछता हूं कि आपने हमें खराब धान दी तो चावल भी वैसा ही मिलेगा न.”
सुशील मोदी के घोटाले का आरोपों पर कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह मामला “अनुबंध के उल्लंघन” (breach of contract) का है, “विश्वासघात” (breach of trust) का नहीं है. और अनुबंध के उल्लंघन के मामले में सिविल सूट (दीवानी मुकदमा) हो सकता है, जबकि सरकार की ओर से थाने में फौजदारी मुकदमा करा दिया गया.
कैसे निपटेंगे सुखाड़ और बाढ़ से?
ये जवाब तो सिर्फ उन आरोपों पर थे जो सुशील कुमार मोदी ने कृषि मंत्री पर लगाए. लेकिन, कृषि मंत्री के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती इस साल के सूखे और बाढ़ से निपटने की है जिसने इस सीजन की खरीफ की फसल को लगभग तबाह कर दिया है.
सुधाकर सिंह कहते हैं,
“मेरे अनुमान में यह समय खेती के लिहाज से पिछले 100 वर्षों में सबसे भयावह है. हमारी आधी फसल तो पहले ही मारी जा चुकी है, जो बची है वो भी कितनी बच पाएगी, कहना मुश्किल है क्योंकि आगे भी कम बारिश के आसार जताए जा रहे हैं. अगर आगे थोड़ी बारिश होती भी है तो वह अभी लगी फसल को भले बचा पाए या न बचा सके, लेकिन यदि नहीं हुई तो रबी की फसल की बुवाई पर भी इसका असर पड़ेगा. हमारे खेतों से नमी गायब हो जाएगी, ग्राउंड वाटर लेवल भी काफी नीचे चला जाएगा."सुधाकर सिंह, कृषि मंत्री, बिहार
सूखे की स्थिति का जैसा अंदेशा बिहार के कृषि मंत्री जता रहे हैं, वो डर यहां के किसानों में भी पैठा है.
भोजपुर के किसान उदय पासवान मझोले किसान की श्रेणी में आते हैं. दो बीघा धान रोपने के लिये बिचड़ा डाला था. लेकिन पानी के बिना नहीं रोप सके. कहते हैं, “हमारी चिंता केवल ये नहीं कि धान नहीं हुआ तो अगले साल चावल कैसे खाएंगे, बल्कि उससे बढ़कर चिंता इस बात की है कि यदि अब भी बारिश नहीं होती है तो गेहूं, दलहन और तिलहन कैसे बोएंगे. ऐसे में अनाज का संकट होजाएगा. भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.”
क्या अनाज का संकट भी होगा?
क्या सच में यह सूखा अनाज का संकट लेकर आ सकता है? कृषि मंत्री इसके जवाब में कहते हैं, “निश्चित ही यह संकट पैदा हो सकता है. क्योंकि रबी के पिछले सीजन में पहले आ गई गर्मियों के कारण हमारी फसल मारी गई थी. फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अनाज का सप्लाई चेन प्रभावित हुआ है. और अब खरीफ के सीजन में गंगा के समूचे तटीय क्षेत्र (42 फीसद) में सामान्य से काफी कम बारिश होने के कारण केवल बिहार ही नहीं बल्कि उत्तराखंड से लेकर बंगाल की खाड़ी तक की खेती खराब हुई है.”
सुधाकर सिंह आगे कहते हैं, “कम वर्षा के कारण निश्चित तौर पर उत्पादकता घटेगी और यदि उत्पादकता घटी तो अनाज का संकट पैदा होना लाजिम है. क्योंकि हमारे देश में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता न्यूट्रि़शन के आधार पर नहीं ब्लकि न्यूनतम जरूरतों के आधार पर तय होती हैं.”
पिछले कुछ दशकों के दरम्यान देखें तो सूखा और बाढ़ बिहार के किसानों की नियति का हिस्सा बन चुका है. लेकिन इसके अलावा भी उन्हें बीज से बाजार तक का सफर तय करने में बहुत से पापड़ बेलने पड़ते है.
किसानों का बीज से बाजार तक का मुश्किल सफर
बीज और उर्वरक की किल्लत की खबरें यहां अब आम हो गईं हैं. पहले तो किसानों को सही और उन्नत किस्म का बीज नहीं उपलब्ध हो पाता और अगर जैसे-तैसे बुआई कर भी दिए तो खाद की किल्लत का सामना करना पड़ता है. अगर आप बिहार के अखबारों के जिला संस्करणों की खबरें देखेंगे तो पाएंगे कि हर जिले में खाद (मुख्य रूप से यूरिया) की किल्लत है, उसके लिए किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. बीज एक उर्वरक सही से नहीं मिले तो उत्पादकता घटनी स्वाभाविक है.
औरंगाबाद के किसान अजीत कुमार अपने धान की फसल में समय से उर्वरक इसलिए नहीं डाल पाए क्योंकि उनके प्रखंड गोह के तमाम पैक्सों के चक्कर लगाने के बाद भी उन्हें यूरिया नहीं मिला.
अजीत बताते हैं,
“सरकार कहती है कि पैक्स (PACS) के जरिए ही उर्वरक भी उचित कीमत पर दिए जाएंगे. लेकिन पैक्स वाले खाद की कालाबाजारी कर दे रहे हैं. स्थानीय दुकानों से सांठ-गांठ कर उन्हें बेच रहे हैं और फिर वे दुकानदार जमाखोरी करने के बाद उसी उर्वरककी अधिक कीमत किसानों से वसूल कर रहे हैं. पहले तो हर किसान पैक्स के चक्कर लगाते हैं, उसमें कुछ दिन निकल जाता है, अंत में मजबूर होकर दुकानदारों से ज्यादा कीमत पर खरीदते हैं.”
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह से जब हमने यह सवाल किया कि किसानों के लिए बीज से बाजार तक के सफर को सुगम बनाने के लिए उनकी क्या योजना है? जवाब में वे कहते हैं , “राज्य के किसानों के पास उत्तम किस्म के बीज की उपलब्धता हो यह सुनिश्चित करने के लिए हमने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच यानी बुआई के पहले सभी केंद्रों पर बीज पहुंच जाएगा. देरी करने वालों को दंडित किया जाएगा. इस बार के रबी सीजन में बीज की कमी नहीं होने दी जाएगी."
उर्वरकों की कमी के सवाल पर सुधाकर सिंह ने कहा,
“उर्वरकों को बांटने की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी है. आवंटन केंद्र सरकार करती है. इस साल 10 प्रतिशत कम ही आवंटन हुआ इसलिए संकट बढ़ गया है. हालांकि, मैं यह जरूर स्वीकार करूंगा कि हमारे यहां उर्वरकों के वितरण में समस्या है. लेकिन हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि हमारे यहां उर्वरकों का डिमांड मॉडल 1960 का है, जिसमें अब बदलाव की जरूरत है. फसलों का पैटर्न और उनका प्रकार बदला है मगर उर्वरक उस तरह से नहीं बदले गए. फिर भी यदि डीबीटी (डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर) के जरिए इसे कंट्रोल किया जाए तो हो सकता है. पर वो भी तो केंद्र सरकार को ही करना है.”
एक प्रतिशत किसानों को भी नहीं मिल पा रहा MSP
एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का जहां तक सवाल है तो बिहार में केवल पैक्स के जरिए ही एमएसपी पर बिक्री की सुविधा है.
धान खरीद करने वाली संस्था एफसीआई के आंकड़ों के मुताबिक खरीफ मार्केटिंग सीजन 2021-22 में अब तक 44.9 लाख मिट्रिकटन धान की खरीद की जा चुकी है. एमएसपी पर धान बेचने से 6,42,175 किसान लाभान्वित हुए हैं.
यहां एमएसपी की हकीकत का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस राज्य की करीब 11 करोड़ आबादी कृषि कार्यों में लगी है उनमें से सिर्फ 0.58 प्रतिशत किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल सका.
बात बाजार की करें तो बिहार के किसानों के लिए बाजार की कोई सुविधा ही नहीं है. क्योंकि नीतीश कुमार की सरकार ने साल 2006 में ही बिहार में एपीएमसी एक्ट (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी) को समाप्त कर राज्य में मंडी सिस्टम को खत्म कर दिया था. एपीएमसी की जगह पैक्स (PACS) का सिस्टम चालू हुआ जिसके तहत अभी केवल धान की खरीद होती है.
एमएसपी और मंडियों के सवाल पर कृषि मंत्री कहते हैं, “हम आने वाले दिनों में 2700 करोड़ रुपए की योजना के साथ पूरी कृषिव्यवस्था का कायाकल्प करने जा रहे हैं. इसमें बिहार की सभी 54 मंडियों को फिर से चालू करने की योजना भी है. साथ ही नई मंडियां भी खोली जानी हैं. मेरा व्यक्तिगत मत है कि मंडी और बीज के बिना हम किसानों का भला नहीं कर सकते. पिछली सरकारों ने इसे बर्बाद किया है, हम पुनः बहाल करने का प्रयास करेंगे."
सुधाकर सिंह इसे उदाहरण के साथ समझाते हुए बताते हैं, “हमारे यहां मार्केटिंग ही सबसे बड़ी समस्या है. हम भारत में सबसे अधिक चालीस लाख टन मक्का उपजाते हैं लेकिन चाल लाख टन की भी मार्केटिंग नहीं कर पाते. यही हाल गन्ना समेत दूसरी अन्य फसलों का भी है.”
भ्रम पैदा करने वाले पहले के आंकड़े
सुधाकर सिंह से हमने बात की राज्य में फसलों के उत्पादन और उत्पादकता पर भी जिसमें हाल के वर्षों में गिरावट नजर आई है. सिंह कहते हैं, “इसपर विभेद है. एक ओर जहां कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में उत्पादन और उत्पादकता घटी है, जबकि विधानसभा में सरकार की ओर से ये कहा जाता है कि हमारे यहां रिकार्ड बढ़ोतरी हो रही है. ये आंकड़ों में भरमाने की काम हो रहा है. आखिर ये कैसे हो सकता है जब आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जोत उस हिसाब से कम होता जा रहा है."
कृषि मंत्री कहते हैं, “हमने अपने विभाग के अधिकारियों को पूर्व के आंकड़ों को जांच करने के आदेश दिए हैं. जांच के बाद ही सही आंकड़ों का पता चल पाएगा. और केवल हमारे विभाग के आंकड़े ही नहीं, यहां तक कि आईएमडी (भारतीय मौसम विभाग) के आंकड़े भी भ्रम पैदा करने वाले हैं. उदाहरण के लिए आईएमडी के मुताबिक गया में इस सीजन वर्षापात सामान्य से सिर्फ 37 फीसद कम हुई है, लेकिन हमारे जमीनी आंकड़े कहते हैं कि वहां सत्तर फ़ीसद तक कम बारिश हुई है. जिसके कारण धान की रोपनी भी लक्ष्य की एकतिहाई हो पायी है."
बिहार की जलवायु बदल चुकी है- कृषि वैज्ञानिक
जाहिर है नए कृषि मंत्री के सामने कृषि के क्षेत्र में बहुत सारी चुनौतियां हैं जिनसे पार पाना कतई भी आसान नहीं होगा. लेकिन जब हमने बात की कृषि विशेषज्ञों से और यह जानना चाहा कि बिहार की खेती इतनी खराब क्यों हो गई है तो जवाब चौंकाने वाला मिला.
राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक अब्दुस सत्तार कहते हैं,
“बिहार में जलवायु परिवर्तन बहुत तेजी से हुआ है और यह अब स्थापित हो चुका है. इसलिए यहां की खेती हाल के सालों में खराब से खराब होती गई.”
अब्दुस सत्तार के मुताबिक बिहार कृषि के क्षेत्र में मुख्य रूप से दो-तीन समस्याओं से जूझ रहा है. उनमें पहला तापमान का अचानक बढ़ते चले जाना और फिर अचानक एकदम से घटते चला जाना है. पिछले रबी के सीजन में हम यह झेल चुके हैं. दूसरा है वर्षा के दिनों में कमी. हाल के सालों में वर्षा के दिन बहुत कम हुए हैं. तीसरा है कि उत्पादकता में लगातार गिरावट होती जा रही है. इसके भी तमाम कारण हैं जैसे उन्नत बीज की कमी, सिंचाई की कमी, उर्वरक की कमी आदि.
अब्दुस सत्तार कहते हैं, “यदि हमें यहां की खेती को ठीक करना है तो पहले जलवायु परिवर्तन का अध्ययन और उसपर शोध जरूरी है. पहले से योजना बनाकर रखनी होगी ताकि जिस तरह का परिवर्तन हो, उसी तरह की खेती भी हो.”
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