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JDU में टूट, RJD के साथ विलय, विपक्षी एकजुटता.. नीतीश कुमार के सामने चुनौती तमाम

Nitish Kumar: विरोधी कहते हैं कि बिहार में सिर्फ डिप्टी CM का चेहरा बदलता है, CM नीतीश कुमार ही रहते हैं.

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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के राजनीतिक जीवन में 22 फरवरी की तारीख बहुत अहम है. इस दिन से ठीक 8 साल पहले नीतीश कुमार ने इसी दिन चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और तब से अब तक वह बिहार के सीएम हैं. अगर 2005 से 2023 के बीच कुछ महीनों को छोड़ दें तो नीतीश कुमार करीब 17 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. नीतीश के विरोधी तंज कसते हुए कहते हैं कि बिहार में सिर्फ डिप्टी सीएम का चेहरा बदलता है.

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अब यह भी जानना जरूरी है कि इतने सालों में नीतीश कुमार की क्या उपलब्धि रही जिसके दम पर वो बिहार में 'बड़े भाई' बने रहे और अब क्यों उनके सामने 'छोटे भाई' चुनौती बनकर खड़े हो रहे हैं. आइये आपको सिलसिलेवार तरीके से समझाते हैं.

नीतीश कुमार के चर्चित फैसले और योजनाएं  

शराबबंदी

बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया. नीतीश कुमार कहते हैं उन्होंने महिलाओं के कहने पर इस योजना की शुरुआत की.

बिहार नीरा अनुदान योजना

इस योजना की शुरुआत 2018 में की गई. शराबबंदी कानून लागू होने से पहले जो परिवार 'ताड़ी' के व्यवसाय से जुड़े थे, उन्हें 'नीरा' से जोड़ा गया. सरकार इसके लिए 1 लाख तक मदद कर रही थी. पासी समाज को इसका बडा लाभ मिला.

जल जीवन हरियाली

बिहार सरकार ने 2019 में पर्यावरण को संतुलित रखने एंव प्रकृति में हरियाली बनाए रखने के लिए जल जीवन हरियाली योजना को शुरू किया. जल-जीवन हरियाली अभियान के तहत

2021-2022 में वृक्षारोपण किया गया-25, 964, सार्वजनिक कुंओं का जीर्णोंद्धार-11078, तालाब, पोखरो और आहरों-5848 का निर्माण कराया गया. आंकड़े बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से लिये गये हैं.

71 साल के नीतीश कुमार अब राजनीति के अपने अंतिम पड़ाव पर खड़े दिख रहे हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ऐलान किया था कि यह उनका आखिरी इलेक्शन है. बिहार के सीएम के अलावा वह केंद्र में मंत्री रह चुके हैं.

अब पार्टी की तरफ से उनको 2024 में पीएम पद का उम्मीदवार बताया जा रहा है. हालांकि, वो खुद इससे इंकार करते रहे हैं. लेकिन नीतीश के सामने अब चुनौतियां भी बहुत हैं, जिससे उनको पार पाना होगा.

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बिहार छोड़ दिल्ली कैसे जाएंगे नीतीश?

राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार को कांग्रेस ने आईना दिखा दिया, ममत बनर्जी और नवीन पटनायक चुप हैं और KCR ने पटना आकर उन्हें (नीतीश) नकार दिया. ऐसे में नीतीश कुमार की राह आसान नहीं है. उनकी राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता ही नहीं हो पा रही है.

वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं कि नीतीश कुमार अब राजनीति से एग्जिट करने मूड में हैं लेकिन वो चाहते हैं इतिहास में उन्हें एक अच्छे नेता के रूप में याद किया जाये. उनकी इच्छा हमेशा से PM उम्मीदवार बनने की रही है. लेकिन उनके नाम पर कोई सहमत नहीं हो रहा है.

पुष्यमित्र कहते हैं

JDU राष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को स्थापित नहीं कर पाई है. ऐसे में अगर JDU-RJD का विलय हो गया और दोनों ने 2024 में 30 सीट के करीब जीत ली तो नीतीश कुमार अपना दावा पेश कर सकते हैं. दूसरा, वो विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं, जो बीजेपी को मजबूत चुनौती दे सके और इसमें संभव है कि वो सफल हो जाएं.

नीतीश को अपने ही दे रहे चुनौती?

RCP सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और प्रशांत किशोर कभी एक जमाने में नीतीश कुमार के सबसे खास हुआ करते थे लेकिन आज यही सब उन्हें चुनौती दे रहे हैं. जीतनराम मांझी ने हाल ही में अपने बेटे संतोष कुमार को भी मुख्यमंत्री का चेहरा बताया है. नीतीश के खिलाफ बन रहे माहौल का लाभ बीजेपी को मिल सकता है.

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कानून-व्यवस्था,रोजगार,पलायन बड़ा मुद्दा

राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं कि कानून-व्यवस्था नीतीश कुमार की किसी जमाने में सबसे बड़ी USP थी लेकिन आज वो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है. तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरी का वादा किया था तो नीतीश ने 10 लाख रोजगार लेकिन अब तक CM इससे सफल नहीं हो पाए हैं. बिहार में पलायन आज भी जारी है और इतने दिनों के बाद भी नीतीश इसको रोकने में असफल साबित हुए हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े?

बिहार में आपराधिक घटनाओं में कमी नहीं आ रही है. NCRB के डेटा के मुताबिक,बिहार में 2016 से 2018 के बीच हिंसक अपराध के 1, 41,728 मामले दर्ज हुए हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध के 45,031 केस और बच्चों के खिलाफ अपराध के 16,658 मामले दर्ज हुए हैं.

हिंसक अपराध

2016-46621

2017-50700

2018-44407

महिलाओं के खिलाफ अपराध

2016-13400

2017-14711

2018-16920

बच्चों के खिलाफ अपराध

2016-3932

2017-5386

2018-7340

शराबबंदी पर उठ रहे सवाल?

बिहार में शराबबंदी लागू है बावजूद इसके जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या में कमी नहीं आ रही है. सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच गया. विरोधियों के अलावा अपने भी नीतीश पर निशाना साध रहे हैं. बिहार में राजस्व की कमी है, उद्योग है नहीं तो फिर प्रदेश में विकाय कार्य के लिए बजट कहां से आएगा? ऐसे में क्या नीतीश कुमार आगे भी शराबबंदी लागू करने में सफल हो पाएंगे, ये बड़ा सवाल है.

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इन सबके के साथ नीतीश कुमार जाति जनगणना को लेकर माहौल बनाना चाह रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि मंडल बनाम कमंडल की तरह अग्रणी और पिछड़ों जातीयों में बहस होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उनके हाथ से मुद्दा निकल गया.

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