"इस देशबंदी ने मेरा बच्चा, मेरा काम सब छीन लिया. तीन दिन से घर में खाने को कुछ नहीं था, लड़का हमारा बीमार पड़ गया, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर ने बाहर की दवा लिख दी, जब खाने का पैसा नहीं है तो दवा कहां से लाते. कमाने के लिए बाहर गए लेकिन बंदी (लॉकडाउन) की वजह से काम नहीं मिला. मेरे बेटे ने भूख से दम तोड़ है. ना दवा ना खाना."
सिसकती आवाज में ये बात बिहार के आरा के रहने वाले दुर्गा मुसहर की मुंह से निकल रही थी. देशभर में कोरोना वायरस की वजह से सरकार ने 21 दिनों के लॉकडाउन का आदेश दिया है, इसी दौरान कथित तौर पर भूख और दवा की कमी से आरा के जवाहर टोला के रहने वाले मजदूर दुर्गा मुसहर के 11 साल के बेटे राकेश मुसहर की 26 मार्च को मौत हो गई. हालांकि जिला प्रशासन इस आरोप को सिरे से नकार रहा है.
अस्पताल से नहीं मिली दवा
क्विंंट से बात करते हुए दुर्गा कहते हैं कि देशभर में कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने उनके बेटे को छीन लीया. दुर्गा कहते हैं कि 21 तारीख से ही बिहार में बंदी का माहौल है. वो पालदारी का काम करते हैं, जिस वजह से उनके पास बहुत थोड़ा ही पैसा होता है. रोज जो पैसा कमाते हैं, उसी से गुजारा होता है.
दुर्गा आगे कहते हैं,
“राकेश की तबीयत खराब थी, 22 तारीख को उसे सदर अस्पताल ले गए. वहां डॉक्टर ने देखा लेकिन वहां दवा नहीं मिली. दवाई बाहर से लाने के लिए कहा गया. दवा खरीदने का पैसा हमारे पास नहीं था, किसी तरह 2 दिन का खाना हुआ था. लेकिन जब खाना और दवा नहीं मिली तो मेरा बेटा मर गया.”
आरा के जवाहर टोला के मुसहर टोला में रहने वाले दुर्गा के परिवार में अब 4 लोग हैं, एक बेटा, एक बेटी और पत्नी.
परिवार का आरोप है कि मौत की खबर डीएम, एसडीओ को दी गई लेकिन कोई नहीं आया, फिर जब थाना प्रभारी को खबर दी गई तो वो आए और उन्हीं की मौजूदगी में अंतिम संस्कार किया गया.
“सरकार से नहीं मिली कोई मदद”
दुर्गा बताते हैं कि अब तक सरकार की ओर से एक पैसे की भी मदद नहीं मिली है और ना ही कोई पदाधिकारी पूछने आया. इस मामले पर सीपीआई एमएल के आरा के सचिव बताते हैं, “इस इलाके में करीब 35 दलित परिवार रहते हैं, ज्यादातर लोग कबाड़ उठाने और पालदारी का काम करते हैं, इन लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि ये लोग इस तरह के लॉकडाउन में अपना गुजारा कर लें. जब से लॉकडाउन हुआ है तब से यहां रह रहे लोगों को खाने-पीने की दिक्कत हो रही है. दुर्गा के परिवार की भी हालत खराब थी. हम लोगों को मरने के बाद खाने के बारे में पता चला, फिलहाल लोगों की मदद से पूरे 35 घरों को दस- दस किलो अनाज बांटा गया जिसमें 8 किलो चावल और दो किलो आटा दिया गया है.”
DM ने जांच के दिए आदेश
आरा के जिलाधकारी ने इस मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं. इस मामले की जांच नगर आयुक्त कर रहे हैं. क्विंट ने नगर आयुक्त धीरेंद्र पासवान से जब इस मामले के बारे में पूछा तो उन्होंने भूख से मौत की बात से साफ इनकार कर दिया.
हालांकि उन्होंने ये माना कि मुसहर टोली में बहुत से लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है. राकेश की मौत पर पासवान ने कहा, इस बच्चे की तबीयत खराब थी, बुखार हुआ था, इस वजह से मौत हुई है. इसका भूख से कोई लेना देना नहीं है. जब ये सवाल पूछा गया कि नगर आयुक्त से अस्पताल से दवा क्यों नहीं मिली तो उन्होंने इस पर जवाब देने से इनकार कर दिया.
उन्होंने एसडीओ और डीएम से बात करने की सलाह दी. क्विंट ने कई बार एसडीओ और डीएम दोनों से बात करने की कोशिश की लेकिन दोनों में से किसी का सही जवाब नहीं आया. एसडीओ को कई बार कॉल करने बाद उनके पीए ने जवाब दिया. पीए ने कहा, “सर कोरोना वाले मामले में व्यस्त हैं, लेकिन सर ने कहा है कि उस बच्चे की भूख से मौत नहीं हुई थी.” फिलहाल डीएम की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. जैसे ही जवाब आता है खबर अपडेट की जाएगी.
बता दें कि मृतक राकेश के पिता ने भी राशन कार्ड ना होने की बात कही है. अब चाहे बच्चे की मौत भूख से हुई हो या सही इलाज ना मिलने पर लेकिन सवाल ये तो उठता है कि कोरोना से बचाने के लिए भले ही लोगों को घरों में बंद किया जा रहा हो लेकिन लचर व्यवस्था लोगों की जान जरूर ले रही है.
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