बिहार (Bihar) में शिक्षक सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी में है. दरअसल, सक्षमता परीक्षा (Sakshamta Exam) को लेकर राज्य में विवाद जारी है. नियोजित शिक्षक (Niyojit Teacher) शिक्षा विभाग और नीतीश सरकार (Nitish Kumar) से खफा है इसीलिए नियोजित शिक्षक 13 फरवरी को बिहार के सरकारी स्कूलों की पढ़ाई ठप कर पटना में विरोध प्रदर्शन करेंगे. आइए आपको बताते हैं कि कौन हैं नियोजित शिक्षक? क्या है सक्षमता परीक्षा? क्यों नियोजित शिक्षक विरोध कर रहे है? और इस पर क्या कह रहे हैं राजनेता?
कौन हैं नियोजित शिक्षक?
नियोजित शिक्षक नगर निकाय के कर्मचारी होते हैं और वो पंचायत के अधीन भी होते हैं यानी वे राज्य सरकार के कर्मचारी नहीं कहलाते. स्थानीय निकाय के ये शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं. अब चूंकी ये सीधे राज्य सरकार के अधीन नहीं होते इसीलिए उन्हें ट्रांसफर, प्रमोशन, वेतन बढ़ोतरी, डीए समेत राज्य सरकार की कई सुविधाओं का फायदा नहीं मिलता.
साल 2003 में शिक्षकों की कमी होने पर राज्य सरकार ने 10वीं, 12वीं पास युवाओं को शिक्षा मित्र के रूप में रखा था.
नीतीश कुमार सरकार इन्हीं शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देना चाहती है लेकिन इसके लिए उन्हें एक परीक्षा का सामना करना पड़ेगा और वो परीक्षा सक्षमता यानी कॉम्पिटेंसी एग्जाम है.
क्या है सक्षमता परीक्षा?
बिहार में नियोजित शिक्षक अगर सक्षमता परीक्षा को पास करते हैं तो उन्हें स्थायी शिक्षक का दर्जा मिल जाएगा और वे सहायक शिक्षक कहलाएंगे. ये परीक्षा 26 फरवरी से 13 मार्च के बीच आयोजित की जाएगी.
नियोजित शिक्षकों की परीक्षा को लेकर निर्णय के लिए गठित समिति ने सरकार को सिफारिशें भी दी है:
हर शिक्षक को मिलेंगे तीन मौके
हर शिक्षक को 3 मौके दिए जाएंगे. इसके लिए 4 चरणों में परीक्षा आयोजित होगी. पहले चरण के तहत 26 फरवरी को परीक्षा ली जाएगी. अगर इसे नियोजित शिक्षक पास कर गए तो वे राज्यकर्मी का दर्जा हासिल कर लेंगे, अगर कोई इसमें फेल होता है या कोई इस परीक्षा में नहीं बैठ पाता है तो उनके लिए तीन 3 चरणों में लगातार परीक्षाएं होंगी.
जो शिक्षक इन चारों चरण में होने वाली परीक्षाओं में से 3 चरणों की परीक्षा में नहीं बैठते हैं या 3 से कम चरणों में बैठते हैं या फिर 3 चरणों की परीक्षा में बैठने के बाद पास नहीं होते हैं, तो उन सभी स्थानीय निकाय शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी जाएगी.
नियोजित शिक्षक क्यों कर रहे हैं विरोध?
नियोजित शिक्षकों को स्थायी कर्मी का दर्जा मिलना तो उनके लिए खुशी की खबर है लेकिन इसमें परीक्षा देने की शर्त और विफल होने पर नौकरी खो देने के डर ने नियोजित शिक्षकों को फैसले के खिलाफ खड़े होने पर मजबूर कर दिया है.
इसको लेकर शिक्षक संघ ने ऐतराज जताया है और कहा है कि यह शिक्षकों के विरोध में लिया गया फैसला है. संघ ने कहा है कि इस फैसले को वे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे और सरकार अलग-अलग तरीकों का फरमान निकाल कर नियोजित शिक्षकों को प्रताड़ित कर रही है.
"मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि शिक्षकों से मामूली परीक्षा ली जाएगी बावजूद इसके बीएससी के पैटर्न के आधार पर शिक्षकों से ऑनलाइन परीक्षा ली जा रही है यह कहां तक उचित है. इसके पहले जो नियमावली बनी थी उसके आधार पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया और नई नियमावली की तरह कई फेसले पुराने फैसले से अलग लिए गए हैं, जो शिक्षकों के हित में नहीं है."शिक्षक संघ
क्या कह रहे राजनेता?
आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा, "महागठबंधन सरकार में जो फैसले लिए गए थे, उसके अनुसार ही मामूली परीक्षा लेकर शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाए, उनको प्रताड़ित नहीं किया जाए. जब से एनडीए की सरकार बनी है उसके बाद से ही ऐसा माहौल बनाया जा रहा है. सभी को मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी कभी नहीं चाहती कि शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा मिले. सुशील मोदी के वक्तव्य को याद करें ,जब उन्होंने कहा था कि भगवान भी आ जाए तो शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा नहीं मिल सकता है. जिस तरह की नियमावली बनाई गई है यह कहीं ना कहीं शिक्षकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है."
वहीं, बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा कि हमारे राज्य के जो नियोजित शिक्षक हैं वे जरूर इस परीक्षा को तीन बार में पास कर लेंगे. वे मेहनत करेंगे, पढ़ लेंगे और साबित करेंगे कि वे पढ़ाने में सक्षम हैं. जो शिक्षक परीक्षा पास नहीं कर पाएंगे तो ये सरकार उस पर जरूर विचार करेगी क्योंकि ये जनता की सरकार है.
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