ऐसा लगता है कि संशोधित नागरिकता कानून पर समर्थन जुटाने के लिए बीजेपी का टोल-फ्री नंबर वाला उपाय शुरुआत से ही ‘अशुभ’ रहा. इसकी शुरुआत सोशल मीडिया पर पार्टी के ट्रोल होने से हुई थी. कई लोगों ने टोल-फ्री नंबर को नेटफ्लिक्स सब्सक्रिप्शन से लेकर सेक्स चैट के मैसेज के साथ सोशल मीडिया पर देखा तो बीजेपी को काफी आलोचना झेलनी पड़ी.
ट्रोलिंग और ऐसे मैसेज इतने वायरल हुए कि गृहमंत्री अमित शाह को बयान जारी कर बताना पड़ा कि नंबर नागरिकता कानून पर समर्थन के लिए है, न कि 'नेटफ्लिक्स चैनल' का. दूसरे मैसेज पर शाह कुछ नहीं बोले.
इतने विवाद के बाद भी शाह ने समर्थन कैंपेन को 'सफल' बताया. सोमवार 6 जनवरी को शाह ने कहा, "वेरीफाई हो सकने वाले नंबरों से नागरिकता कानून के समर्थन में 52,72,000 मिस्ड कॉल मिलीं हैं. कुल 68 लाख कॉल आईं थीं."
ये साफ नहीं है कि कितनी कॉल कानून के समर्थन में आईं और कितनी उन मैसेज की वजह से. ये मिस्ट्री शायद कभी ना सॉल्व हो पाएगी. अब समझते हैं कि इन 52 लाख कॉल का राजनीतिक मतलब क्या है.
क्या ये मिस्ड कॉल बड़ी बात है?
मान लेते हैं कि 52 लाख कॉल कानून के समर्थन में आईं थीं. तब भी ये बीजेपी के सदस्यता अभियान के मुकाबले 'प्रभावशाली' नहीं है. जुलाई-अगस्त 2019 में बीजेपी के सदस्यता अभियान में पार्टी ने 4 करोड़ सदस्य जोड़ने का दावा किया. इनमें से ज्यादातर मिस्ड-कॉल कैंपेन से आए थे. अभियान के बाद पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि पार्टी के 18 करोड़ सदस्य हैं.
तो सवाल ये है कि अगर पार्टी के इतने सदस्य हैं, तो उसे कानून के समर्थन में सिर्फ 52 लाख कॉल कैसे मिलीं? मतलब कुल सदस्यों का 2.9 प्रतिशत. ये तीन कारणों से हो सकता है.
- पार्टी के ज्यादातर सदस्य नागरिकता कानून के खिलाफ हैं या इसके लिए उत्साह नहीं दिख रहा है. इसलिए उन्होंने मिस्ड कॉल नहीं की.
- अपने सदस्यता अभियान की तरह पार्टी कानून के कैंपेन की पब्लिसिटी नहीं कर पाई.
- 18 करोड़ सदस्यों का दावा ही गलत है.
ये तीनों पार्टी के अच्छे संकेत नहीं हैं.
क्या ये डेटा इकट्ठा करने का अभियान है?
बीजेपी के नजरिए से ज्यादा पॉजिटिव एक और तर्क है. वो ये कि मिस्ड-कॉल कैंपेन नागरिकता कानून पर समर्थन जुटाने के लिए नहीं, डेटा इकट्ठा करने के लिए था.
कैंपेन की आलोचना करने वालों का कहना है कि इससे नंबर का डेटाबेस बनाने में मदद मिलेगी, जो आगे बीजेपी को WhatsApp फॉरवर्ड और बल्क में मैसेज भेजने के काम आएगा.
हालांकि, बीजेपी ने इससे साफ इनकार किया है. केंद्रीय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने 'डेटा का गलत इस्तेमाल न करने का 100% वादा' किया.
लेकिन पार्टी का कथित रूप से डेटा को अपना कंटेंट पुश करने के लिए इस्तेमाल करने का इतिहास रहा है.
2015 में फर्स्टपोस्ट की एक खबर के मुताबिक:
"मिस्ड-कॉल कैंपेन चलाने के लिए इस्तेमाल की गई टेक्नोलॉजी ने बीजेपी को एक बड़ा डेटा बैंक दिया, जिसका इस्तेमाल नरेंद्र मोदी के जनसंपर्क कार्यक्रमों के लिए हो सकता था. ये बीजेपी को उन राज्यों में पहुंचने को मदद करेगा जहां संगठन कमजोर है. बीजेपी नेताओं का कहना है कि ये पीएम मोदी को द्विपक्षीय 'संवाद' स्थापित करने का भी मौका देगा, जहां वो अपनी बात रख सकें."
इसके बाद Newslaundry को यूपी बीजेपी के सदस्य जेपीएस राठौर ने बताया कि पार्टी ने मिस्ड-कॉल कैंपेन से 1.3 करोड़ लोगों के नंबर इकट्ठे किए और ये लोग पार्टी के ऑनलाइन और टेलीफोनिक प्रोपेगेंडा के कंज्यूमर बन गए हैं.
अगर ये रिपोर्ट्स सच हैं तो बीजेपी को फर्क नहीं पड़ता कि पार्टी को मिस्ड-कॉल नागरिकता कानून पर समर्थन के लिए मिली हैं या भ्रामक मैसेज से. डेटा इकट्ठा करने का लक्ष्य दोनों सूरतों में पूरा हो जाएगा.
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