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लैंसेट के जवाब में ‘बिल्ली ब्लॉग’ शेयर करने पर हर्षवर्धन से सवाल

मेडिकल जर्नल द लैंसेट के आर्टिकल में भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहराया गया था.

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प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने पिछले दिनों एक आर्टिकल पब्लिश किया था, जिसमें भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेदार ठहराया गया था. अब, इस आर्टिकल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने टाटा मेमोरियल सेंटर के प्रोफेसर पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग शेयर किया है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि ये द लैंसेट के असंतुलित एडिटोरियल का सही जवाब है.

India’s COVID-19 emergency” नाम से 8 मई को पब्लिश हुए द लैंसेट के आर्टिकल में मोदी सरकार की आलोचना की गई थी. आर्टिकल में लिखा गया था कि मोदी सरकार महामारी को कंट्रोल करने के बजाय, ट्विटर पर आलोचना हटाने पर ज्यादा ध्यान दे रही है. आर्टिकल में ये भी कहा गया था कि सुपरस्प्रेडर इवेंट की चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक त्योहारों को अनुमति दी, राजनीतिक रैलियां की गईं, जिनमें कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया.
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डॉ. हर्षवर्धन ने 17 मई को ट्विटर पर ब्लॉग शेयर करते हुए लिखा, “8 मई को प्रकाशित ‘India's Covid19 emergency’ शीर्षक वाले द लैंसेट के असंतुलित एडिटोरियल का सही खंडन. भारत में कोविड संकट ने खतरनाक रूप ले लिया, लेकिन एक प्रतिष्ठित जर्नल के लिए राजनीतिक रूप से निष्पक्ष रहना जरूरी था.”

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के अलावा, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, जीतेंद्र सिंह, बीजे पांडा और जी किशन रेड्डी समेत बीजेपी के कई नेताओं ने इस ब्लॉग को शेयर किया.

कौन हैं प्रोफेसर चतुर्वेदी?

ब्लॉग के मुताबिक, चतुर्वेदी टाटा मेमोरियल सेंटर में प्रोफेसर हैं, और गले-सिर के कैंसर सर्जन और ओरल कैंसर स्पेशलिस्ट हैं.

ट्विटर पर अपना ब्लॉग शेयर करते हुए उन्होंने लिखा कि वो द लैंसेट के एडिटोरियल में ‘भारत के खराब चित्रण से नाराज’ थे.

पंकज चतुर्वेदी के ब्लॉग में द लैंसेट पर आरोप लगाया गया है कि एडिटोरियल का मकसद मीडिया अटेंशन पाना, ट्विटर पर ट्रेंड करना और भारत की छवि को ठेस पहुंचाना था. हालांकि, ब्लॉग सरकार की ओर से उठाए गए कई गलत कदमों को स्वीकार करता है, जिसमें दूसरी लहर की भविष्यवाणी करने में विफलता, चुनावी रैलियां और कुंभ मेला आयोजित करना और वैक्सीन की कमी शामिल है. ये तर्क देने की कोशिश करता है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में मौतें कम हुई हैं, और इसका वैक्सीनेशन रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है.

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ब्लॉग में दिए गए तर्क कमजोर

चतुर्वेदी का ब्लॉग केंद्र सरकार की कई खामियों को स्वीकार करता है, लेकिन ये गलत कंपैरिजन और चुनिंदा आंकड़ों से भी भरा हुआ है.

भारतीयों के लिए योजना बनाने से पहले दूसरे देशों को वैक्सीन निर्यात करने को लेकर सरकार की आलोचना को खारिज करते हुए, चतुर्वेदी ने कहा कि निर्यात भारत सरकार की “उदारता” को दर्शाता है, जिसने मानवीय आधार पर विदेशों में वैक्सीन की 6.6 करोड़ खुराक भेजी.

चतुर्वेदी ने ये दिखाने की भी कोशिश की है कि कैसे भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में कम से कम समय में ज्यादा लोगों को टीका लगाने में कामयाबी हासिल की है. हालांकि, उन्होंने ब्लॉग में ये नहीं लिखा कि उन देशों में वैक्सीन की दोनों खुराक पाने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है, जबकि भारत में ज्यादातर लोगों को अभी तक केवल एक डोज लगी है, और 18-44 आयु वर्ग के ज्यादातर लोगों को वैक्सीन का स्लॉट तक नहीं मिल रहा है.

अपने ब्लॉग में चतुर्वेदी लिखते हैं कि केंद्र के साथ-साथ, राज्य सरकारें भी दूसरी लहर के लिए पहले से तैयार नहीं थीं, लेकिन उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया कि कैसे वैक्सीन की कमी के चलते राज्यों को वैक्सीनेशन को कई बार रोकना पड़ा या कैसे केंद्र सरकार ऑक्सीजन की कमी पर तब तक नहीं जागी, जब तक कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया.

चतुर्वेदी ने कहा कि चुनावी रैलियों को टाला जा सकता था, लेकिन “पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में राजनीतिक रूप से संवेदनशील स्थिति के कारण चुनाव नहीं टाले जा सकते थे.”

कुंभ मेला पर चतुर्वेदी ने कहा कि ये रद्द कर दिया जाना चाहिए था. लेकिन फिर आगे वो दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों से तुलना करते हुए लिखते हैं कि मुंबई में प्रति स्कॉयर किलोमीटर में ज्यादा लोग रहते हैं.

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ब्लॉग शेयर करने पर BJP नेताओं की आलोचना

‘चुनिंदा आंकड़े’ देने वाले इस ब्लॉग को शेयर करने को लेकर ट्विटर पर बीजेपी नेताओं की आलोचना की जा रही है. कई यूजर्स ने एक प्रतिष्ठित जर्नल का जवाब एक ब्लॉग पोस्ट से देने पर सरकार का मजाक बनाया.

इससे पहले, बीजेपी नेताओं ने एक आर्टिकल को ट्विटर पर शेयर किया, जिसके टाइटल का हिंदी ट्रांसलेशन कुछ इस तरह था- "पीएम मोदी कड़ी मेहनत कर रहे हैं, विपक्ष के जाल में मत फंसिए." ये आर्टिकल 'द डेली गार्जियन (The Daily Guardian)' नाम की एक वेबसाइट पर पब्लिश हुआ था. इस आर्टिकल को शेयर करने को लेकर भी बीजेपी नेताओं की खूब आलोचना हुई थी.

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