“अगर हम युवाओं को बोलने की स्वतंत्रता नहीं देंगे, तो वो कैसे समझेंगे कि जो बोला गया है वो सही या गलत. क्या आप हर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जो ट्विटर पर कुछ कहेगा? आप कितने लोगों पर कार्रवाई करेंगे?” बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक केस में सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से ये सवाल पूछे हैं.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में पालघर में हुई मॉब लिंचिंग केस को लेकर राज्य सरकार और पुलिस के खिलाफ 'आपत्तिजनक' ट्वीट करने का मामला चल रहा है. नवी मुंबई की 38 साल की सुनैना होले ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की अपील की है.
सुनैना होले ने सोशल मीडिया पर महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ कुछ विवादित ट्विट किए थे, जिसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने उनके खिलाफ 3 अलग-अलग FIR दर्ज की थी. इन्हीं में से एक केस में पुलिस ने सुनैना होली को अगस्त 2020 में गिरफ्तार किया था.
हालांकि बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी. अब इस मामले में सुनवाई चल रही है. फिलहाल होली ने गिरफ्तारी पर रोक और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को समाप्त करने के लिए अंतरिम सुरक्षा की मांग की है.
30 अक्टूबर को कोर्ट ने सुनैना होले को पुलिस के सामने पेश होने और जांच में सहयोग करने के लिए कहा था.
मंगलवार को होले के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने कोर्ट को बताया कि होले सिर्फ अपनी राय व्यक्त कर रही थीं. राज्य किसी की बोलने की आजादी पर पाबंदी नहीं लगा सकती है. उन्होंने अपने ट्वीट के जरिये राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना की थी.
जिसपर एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा,
“किसी व्यक्ति को मिली अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार का यह मतलब नहीं है कि वह दूसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करे.”
जब होले के वकील ने कोर्ट को होले के जरिए ट्वीट किए गए वीडियो को दिखाया तो कोर्ट ने सरकार से सवाल करते हुए पूछा कि क्या आप हर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जो ट्विटर पर कुछ कहेगा? आप कितने लोगों पर कार्रवाई करेंगे?
इसी पर सरकारी वकील जेपी यागनिक ने कहा कि पुलिस सुनैना के ‘उद्देश्य’ की जांच करना चाहती थी.
इस पर कोर्ट ने कहा कि हर सार्वजनिक दफ्तर को आलोचना सुननी ही पड़ती है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी.
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