मराठा आरक्षण के मामले में गुरूवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्रा बीजेपी सरकार को 6 हफ्ते में सारे दस्तावेज जमा कराने के आदेश दिए हैं. सरकार ने कोर्ट में शपथपत्र पेश करने का आदेश नहीं माना है इसीलिए कोर्ट ने सरकार के रवैए पर नाराजगी जताई है. अब मामले की सुनवाई 7 दिसंबर को होगी.
अदालत मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण देने के तत्कालीन कांग्रेस सरकार के 2014 के फैसले के खिलाफ दो जनहित याचिकाओं और आरक्षण देने के फैसले के पक्ष में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
हाई कोर्ट ने कहा कि हम पहले ही सरकार को मामले में अपना हलफनामा और लिखित बयान दाखिल करने के लिए ढेर सारा वक्त दे चुके हैं, उच्चतम न्यायालय पहले ही कह चुका है कि मामले की सुनवाई और इसका फैसला यथासंभव तेजी से किया जाए.
यह स्वभाविक है कि इस जटिल मुद्दे पर सरकार को बहुत कुछ कहना होगा. हम सरकार को अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दे रहे हैं. जब दलीलें शुरु होंगी हम उनके दावे की पड़ताल करेंगे.बॉम्बे हाईकोर्ट
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क्या है मराठाओं की मांग
महाराष्ट्र में मराठा समुदायों की मांग है कि SC-ST कानून खत्म हो, मराठा समुदाय को आरक्षण मिले.
जब इस समुदाय ने ‘मूक मोर्चा’ निकालने का आह्वान किया था, तो किसी ने भी इनको गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि मराठा समाज को महाराष्ट्र में काफी मजबूत माना जाता है.
राज्य की आबादी में 33 फीसदी मराठा है. 288 विधानसभा में से 75 सीटों पर किसी भी उम्मीदवार को हराने या जिताने में निर्णायक भूमिका इनकी होती है. शरद पवार, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण जैसे दिग्गज नेता इसी समाज से आते हैं, जो राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे.
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