दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने बीजेपी सांसद और WFI के पूर्व अध्यक्ष प्रमुख बृजभूषण सिंह (Brijbhushan Sharan Singh) के खिलाफ 1500 पन्नों की चार्जशीट दायर की है. पुलिस के द्वारा बृजभूषण के होमटाउन में घूमकर करीब 200 लोगों से पूछताछ की गई और उनके बयान दर्ज किए गए. इसके अलावा 70-80 गवाहों से पूछताछ की गई.
पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के आधार पर धारा 354 (एक महिला की मर्यादा भंग करना), 354A (यौन संबंधी टिप्पणी), 354D (पीछा करना) और आईपीसी की धारा 506 (1) (आपराधिक धमकी) के तहत केस दर्ज हुआ है.
इसका मतलब यह है कि दिल्ली पुलिस की जांच में कथित तौर पर पता चलता है कि बृजभूषण सिंह की वजह से एक महिला की इज्जत पर आंच आई, उन्होंने अश्लील टिप्पणी की, किसी का पीछा किया और आपराधिक धमकी भी दी. लेकिन उसे अभी तक बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने पुष्टिकारक साक्ष्य की कमी का हवाला देते हुए बृजभूषण के खिलाफ POCSO केस रद्द करने की रिपोर्ट फाइल की है. नाबालिग के पिता ने कथित तौर पर पुलिस को दिए बयान से पलटते हुए दावा किया था कि उन्होंने बीजेपी सांसद के खिलाफ "झूठी शिकायत" दर्ज की थी.
यौन उत्पीड़न मामले में गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
बृजभूषण के ऊपर कथित तौर पर जिन अपराधों का आरोप लगाया गया है, उनमें से किसी में भी पांच साल से ज्यादा की सजा नही मिलती है.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक मामले में एक (अनाम) इनवेस्टिगेटर ने कहा-
कॉलम नंबर 11 में आरोपी- बृजभूषण शरण सिंह और विनोद तोमर के खिलाफ चार्जशीट 'अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य' के फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक उनकी गिरफ्तारी के बिना फाइल की गई है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की गिरफ्तारी के संबंध में कानून (विशेष रूप से सात साल तक के दंडनीय अपराधों में) निर्धारित किया था.
इनवेस्टिगेटर ने कथित तौर पर कहा कि आरोपी जांच में शामिल हुए और उन्होंने सबूतों के साथ सहयोग किया.
इसके अलावा, उनसे कोई रिकवरी या किसी फैक्ट की तलाश नहीं की जानी थी. उनके एड्रेस भी वेरिफाई किए गए हैं और उनके मुकदमे के बीच भागने की कोई संभावना नहीं थी.
लेकिन जरा रुकिए...
इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने द क्विंट के साथ बातचीत में कहा
आरोपी को (जांच के दौरान) गिरफ्तार नहीं किया गया था, इसलिए कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि नाबालिग का अपने बयान से कथित रूप से पीछे हटना वास्तविक है या नहीं.
जस्टिस माथुर ने द क्विंट के साथ कुछ पहले हुई बातचीत में यह भी बताया था कि संज्ञेय अपराधों के मामलों में पुलिस उचित जांच करने, अपराध को आगे बढ़ने से रोकने, गवाही और सबूतों से छेड़छाड़ को रोकने के लिए आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
यह देखते हुए कि POCSO एक्ट के नियम सामान्य दंड संहिता की तुलना में कहीं ज्यादा कठोर हैं, पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने कहा कि
अगर आप घटनाओं के सीक्वेंस को देखते हैं- जिसे क्रोनोलॉजी कहा जाता है- जिस तरह POCSO को रद्द करने की रिपोर्ट दर्ज की गई, तो ऐसा लगता है कि पर्दे के पीछे कुछ हुआ होगा. लेकिन इसके बावजूद, अब जब मामला कोर्ट के पास है, तो क्लोजर रिपोर्ट के बाद भी कोर्ट से उम्मीद की जाती है कि वह अपना दिमाग लगाएगी और देखेगी कि अपराध (POCSO के तहत) बनता है या नहीं.
कुछ उदाहरण से समझिए
The Print की रिपोर्ट के मुताबिक 5 जून की एक रिपोर्ट में नाबालिग के पिता ने कहा था कि
मुझमें लड़ने का जज्बा है. मैं इससे लड़ रहा हूं, लेकिन इस एक्सपीरिएंस ने मुझे पूरी तरह से थका दिया है कि मैं ऐसा कब तक कर सकता हूं.
8 जून को आई पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया कि नाबालिग के पिता ने दावा किया था कि उन्होंने बृजभूषण सिंह के खिलाफ "झूठी शिकायत" दर्ज की थी. उन्होंने कहा कि उनकी वास्तविक शिकायत, एशियन U17 चैंपियनशिप के ट्रायल के वक्त नाबालिग के साथ हुए भेदभाव या अन्याय से संबंधित थी.
लेकिन The Print द्वारा यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपने बयान से पीछे हटने का फैसला क्यों किया, उन्होंने कथित तौर पर यह भी कहा कि वह "डर गए" थे और उन्हें "धमकी दी जा रही थी."
हालांकि, उन्होंने मीडिया आउटलेट के स्पेसिफिक सवाल का जवाब नहीं दिया: कि क्या उन्हें बृज भूषण द्वारा धमकी दी गई थी या कथित रूप से फर्जी शिकायत दर्ज करने के लिए अन्य प्रदर्शनकारियों द्वारा दबाव डाला गया था? उन्होंने केवल इतना कहा कि मैं पहलवानों के प्रोटेस्ट का समर्थन करता हूं.
उनका इस तरह का बयान उस समय आया जब मीडिया में कई ऐसी रिपोर्टें आ रही थी, जिसमें तरह-तरह की बातें कही जा रही थीं.
अब आगे क्या?
सही तरह से देखा जाए तो अदालत को नाबालिग सर्वाइवर को बुलाना चाहिए, उसे विश्वास में लेना चाहिए, उसे आश्वस्त करना चाहिए कि अगर वह अभियुक्त के खिलाफ गवाही देना चाहती है, तो अदालत उसकी रक्षा करेगी, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो.जस्टिस अंजना प्रकाश
जस्टिस माथुर ने कहा कि अगर अदालत यह मानती है कि जिन परिस्थितियों में पहले बयान को बदला गया है वे संदिग्ध हैं, तो वह फिर से जांच करने का निर्देश जारी कर सकती है. उनके मुताबिक चार्जशीट की जांच करने के लिए कोर्ट के पास पर्याप्त शक्ति और विवेक है.
जस्टिस माथुर के मुताबिक इसमें तीन संभावित स्थिति सामने आती है...
अगर अदालत को पता चलता है कि हां, POCSO एक्ट के तहत आरोप बनता है, तो वह POCSO अधिनियम के तहत आरोप तय कर सकती है.
अगर अदालत को लगता है कि मौजूद सबूतों को देखने के बाद कोई आरोप नहीं बनता है तो वह ऐसा कह सकती है.
अगर अदालत को लगता है कि आगे की जांच की जरूरत है, तो वो जांच एजेंसी को मामले में आगे की जांच करने का निर्देश दे सकती है.
जस्टिस माथुर के मुताबिक कोर्ट को सभी सबूतों की सही तरह से जांच करनी चाहिए और उसके आधार पर आरोप तय किए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत को यह भी देखना चाहिए कि कहीं किसी सबूत के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की गई है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)