देश के एक करोड़ लोगों के बैंक खाते, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, व्हाट्स अप और फेसबुक की निजी जानकारियां बाजार में खुले आम बिक रही हैं. दिल्ली पुलिस ने ऐसे ही एक गैंग का पर्दाफाश किया है.
दिल्ली पुलिस के डीसीपी आर. बानिया ने इस गैंग के खुलासे की जानकारी दी है. डीसीपी ने बताया, यह गैंग बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर लोगों का निजी डेटा हासिल किया करते थे.
पुलिस ने इस गैंग के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार कर लिया है और करीब एक करोड़ लोगों के बैंक खातों सहित कई निजी जानकारियों का डेटा रिकवर किया है.
पुलिस जांच में पता चला है कि यह गैंग 50 हजार लोगों की निजी जानकारी 10-20 हजार रुपये में बेचा करते थे. मतलब एक व्यक्ति की निजी जानकारी 10-20 पैसे में बेची जा रही है. बताया जा रहा है कि आरोपी ने डेटा मुंबई के एक सप्लायर से खरीदा था.
सस्ते रेट में बेची जाने वाली जानकारी में अकाउंट होल्डर का डेबिट कार्ड नंबर, कार्ड होल्डर का नाम, जन्मतिथि और मोबाइल नंबर शामिल है. यह सारा डेटा कई कैटिगरीज में बंटा हुआ है, जिसका कुल साइज 20 जीबी से ज्यादा है.
कैसे होता है डाटा का इस्तेमाल ?
ये गैंग लाखों करोड़ो लोगों का डेटा किसी व्यक्ति या फर्जी कॉल सेंटर को बेचते हैं. डेटा खरीदने वाले ग्रुप, बैंक कर्मचारी बनकर तरह-तरह की बातें बनाकर यूजर से उनके कार्ड के सीवीवी नंबर और ओटीपी की मांग करते है. क्योंकि उनके पास यूजर की तमाम दूसरी जानकारी होती है, तो कोई भी आम इंसान उनके जाल में आसानी से फंस जाता है.
एक बार किसी शख्स का सीवीवी और ओटीपी नंबर हासिल करने के बाद उसके खाते से कितने भी रुपये निकाले जा सकते है. इसके अलावा डाटा खरीदने वाले गैंग यूजर को तरह-तरह लुभाने ऑफर देकर या कार्ड ब्लॉक होने की बात कहकर किसी तरह सीवीवी नंबर हासिल कर लेते हैं.
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