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CAA-NRC हिंसा में पहला फैसला- प्रदर्शनकारियों को जुर्माना भरने का आदेश

CAA Riots 2020: अमरोहा में हुई हिंसा में 55 नामजद और 1500 से अधिक अज्ञात लोगो के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया था.

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भारत
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दिसंबर 2019 में सीएए-एनआरसी हिंसा (CAA-NRC Violence) के दौरान पुलिस विभाग की सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान के मामले में 86 आरोपियों को अब 4,27,439 रूपये का दंड दिया गया है. अमरोहा के जिलाधिकारी को उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली, दावा न्याधिकरण मेरठ ने कोर्ट ऑर्डर भेजकर वसूली करने के लिए कहा है. उत्तरप्रदेश सरकार 2020 में इस संबध में कानून लेकर आयी थी. एक्ट लागू होने के बाद यूपी में यह दावा न्यायाधिकरण यह पहला फैसला है.

अमरोहा में 20 दिसंबर 2019 को नागरिकता संसोधन बिल के विरोध में उग्र हुई भीड़ ने पथराव, तोड़फोड़ और आगजनी की थी. इस दौरान उपद्रवियों ने पथराव कर पुलिस के दंगा नियंत्रक उपकरण तोड़ डाले और आग लगाकर कई पुलिस वाहन जला दिये गये. प्रभारी निरीक्षक अमरोहा थाना ने सरकार को बताया कि उपद्रवियों ने 4,42,439 रूपये की सरकारी सम्पत्ति का नुकसान किया है. इस संबध में पुलिस के राजपत्रित अधिकारी (सीओ) के माध्यम से दावा न्यायाधिकरण को कार्रवाई के लिए रिपोर्ट भेजी गयी थी.
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पुलिस ने केस दर्ज करके उपद्रवियों की शिनाख्त की और उनके द्वारा किये गये नुकसान का विवरण भी रिपोर्ट में लिखा है. इस मामले में दावा न्यायाधिकरण ने संबधित आरोपियों को नोटिस जारी करके उनका पक्ष जाना और पूरे मामले की सुनवाई की. दावा न्यायाधिकरण के आदेश में नुकसान किये गये सामान का भी मूल्यवार विवरण दिया गया है. फैसले में 86 आरोपियों पर 4,27,439 का जुर्माना लगाया गया है. इस तरह प्रति व्यक्ति को 4971 रूपये का जुर्माना भरना होगा.

12 दिसंबर 2019 को संसद में नागरिकता संसोधन बिल पास होने के बाद देश भर के मुसलमानों ने इसकी आलोचना की थी और 19 और 20 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के कई शहरों में इसके खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया गया था.

इस दौरान उग्र प्रदर्शनकारियों और पुलिसके बीत हिंसक झड़पें भी हुई जिसमें सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति की तोड़फोड़ और आगजनी की गयी थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में प्रदर्शन में शामिल कई मुस्लिम नेताओं से नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस भी जारी किये थे और उनकी तस्वीरें होर्डिग्स में लगाकर सार्वजनिक की गयी थी.

अमरोहा में हुई हिंसा में 55 नामजद और 1500 से अधिक अज्ञात लोगो के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया था. आरोपियों की ओर से पक्ष रखने वाले 'जमीअत उलेमा हिंद' के वकील मुराद आरिफ ने बताया कि दावा न्यायाधिकरण का यह फैसला सही नही है.

सुनवाई के दौरान पुलिस आरोपियों के खिलाफ कोई चश्मदीद गवाह प्रस्तुत नही कर सकी है और ना ही पुलिस के पास प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने संबधी कोई सबूत है. कोई तस्वीर नही है, कोई मौके का सबूत नही है. इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जायेगी.

इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए दावा न्यायाधिकरण के चेयरमेन डॉ एके सिंह ने कहा कि इस फैसले में कुछ भी अस्पष्ट नही है. सभी पक्षों को सुना गया है और अधिनियम का पालन करते हुए फैसला दिया गया है.

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