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CAA:बिजनौर हिंसा केस में कोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार,2 को जमानत

कोर्ट ने पुलिस के डांटते हुए कहा कि आपने कोई भी सबूत पेश नहीं किए हैं जिससे साबित हो कि आरोपी ने गोली चलाई.

Published
भारत
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उत्तर प्रदेश के बिजनौर में 20 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान दंगा भड़काने और हत्या की कोशिश करने के दो आरोपियों को कोर्ट से जमानत मिल गई है. सेशन कोर्ट ने जमानत देने के साथ-साथ पुलिस को जमकर फटकार लगाई. दोनों के खिलाफ पुलिस ने गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन कोर्ट में पुलिस आरोपों के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं दिखा सकी.

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कोर्ट ने पुलिस के डांटते हुए कहा कि आपने कोई भी सबूत पेश नहीं किए हैं, जिससे साबित हो कि आरोपी ने गोली चलाई. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने ना तो वो हथियार जब्त किया और ना ही इस बात के सबूत दिए कि पुलिस को गोली लगी है.

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एडिशनल सेशन जज संजीव पांडे ने 24 जनवरी को जमानत के आदेश दिए, जिसमें उन्होंने पुलिस की कार्रवाई में बहुत सारी कमियां बताईं. जज ने कहा, “अपराध की प्रकृति और परिस्थितियों को देखते हुए आरोपियो को जमानत दी जानी चाहिए.”

20 दिसंबर 2019 को बिजनौर में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज किए थे, जिसमें कहा गया था कि नहतौर, नजीबाबाद, नगीना में ये लोग हिंसा में शामिल थे.

100 से ज्यादा लोगों को पुलिस ने किया था गिरफ्तार

बता दें कि CAA और NRC के खिलाफ दिसंबर 2019 में बिजनौर में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें कहा गया था कि नहतौर, नजीबाबाद, नगीना में ये लोग हिंसा में शामिल थे.

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20 साल के एक लड़के की पुलिस के गोली से हुई थी मौत

इसी दौरान पुलिस की गोली से एक 20 साल के मोहम्मद सुलेमान की मौत हो गई थी. पुलिस के मुताबिक सुलेमान की मौत कॉन्स्टेबल मोहित कुमार की गोली से हुई थी.

पुलिस ने दावा किया था कि कॉन्स्टेबल ने आत्मरक्षा में यह गोली चलाई थी. हालांकि इस घटना के बाद सुलेमान के परिवार ने 6 पुलिस वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.

जब क्विंट सुलेमान के घर पर पहुंचा था तब उसके परिवार ने बताया था कि सुलेमान UPSC सिविल परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रहा था. वह हिंसा के वक्त नमाज अदा करने गया था, और प्रदर्शनकारियों की भीड़ में फंस गया और मारा गया.

बता दें कि 24 जनवरी को शफीक अहमद और इमरान नाम के दो शख्स को सेशन कोर्ट ने जमानत दी है. दोनों पर दंगे भड़काने और हत्या की कोशिश का आरोप था. इन दोनों पर नजीबाबाद पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज हुई थी.

पुलिस की एफआईआर में क्या था?

एफआईआर में कहा गया था कि हमें जानकारी मिली कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए जलालाबाद के 100-150 लोगों ने एनएच -74 पर जाम लगा दिया है. भीड़ का नेतृत्व शफीक अहमद और इमरान कर रहे थे. पुलिस ने भीड़ को समझाया. हालांकि, भीड़ ने मारने की धमकी दी और राष्ट्रीय राजमार्ग पर बैठ गई. मौके पर इमरान को गिरफ्तार कर लिया गया और बाकी आरोपी भाग गए.

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पुलिस के दावों पर जज ने क्या कहा?

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कोर्ट रिकॉर्ड बताते हैं कि पुलिस ने दावा किया है कि उसने बहुत ही कम बल प्रयोग किया ताकि 20 दिसंबर को प्रदर्शनकारियो को हटाया जा सके. जमानत का विरोध कर रहे पक्ष ने कोर्ट में कहा कि आरोपियों का नाम एफआईआर में है, मौके पर इन लोगों ने पत्थरबाजी की और गोली भी चलाई, जिसकी वजह से पुलिसकर्मी घायल हुए थे. लेकिन पुलिस ने कम से कम बल प्रयोग किया ताकि भीड़ पर काबू पाया जा सके. पुलिस ने प्वाइंट 315 बोर की बुलेट भी मौके से बरामद की थी. आरोपी पर गंभीर आरोप हैं, इसलिए जमानत रद्द होनी चाहिए.

हालांकि जज ने पुलिस के दावों को नकारते हुए कहा कि मैंने दोनों ही पक्ष की दलीलों को सुना और केस की डायरी को भी पढ़ा, मौके से सिर्फ आरोपी इमरान को गिरफ्तार किया गया है. बाकी किसी भी आरोपी को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया है. अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया है कि पुलिसकर्मी पत्थरबाजी में घायल हुए हैं. लेकिन पुलिस ने जो सबूत पेश किए हैं उसमें इसकी पुष्टि नहीं होती है कि आरोपी दुकानों की तोड़फोड़ और घर में आग लगाने में शामिल थे.

पुलिस का दावा है कि मौके से प्वाइंट 315 बोर की बुलेट मिली है, लेकिन आरोपियों के पास से हथियार जब्त नहीं किए गए हैं. जज ने कहा कि खुद अभियोजन पक्ष ने कहा है कि किसी भी पुलिसकर्मी को गोली नहीं लगी और पुलिस को पत्थरबाजी से चोट लगी है. लेकिन कोर्ट में इस तरह के कोई सबूत पेश नहीं किए गए जिससे यह साबित हो कि पुलिसवालों को किसी भी तरह की गंभीर चोट लगी है.

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