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राफेल डील पर CAG- ‘ऑफसेट की शर्तों को पूरा नहीं कर रही दसॉ एविएशन’

ऑफसेट की शर्तों के तहत दसॉ एविएशन और एमबीडीए को DRDO को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करनी थी

Published
भारत
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राफेल सौदे को लेकर लोकसभा चुनावों के दौरान काफी हंगामा हुआ था. विपक्ष ने ऑफसेट पार्टनर चुने जाने को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे. लेकिन अब एक बार फिर इस मामले को लेकर विवाद खड़ा हो सकता है. अब कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) ने भी ऑफसेट शर्तों को लेकर सवाल उठाए हैं. सीएजी ने फ्रांस की राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन और एमबीडीए को इस मामले में फटकार लगाई है.

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ऑफसेट की शर्तों पर उठाए सवाल

सीएजी ने कहा है कि दसॉ एविएशन ने 60,000 करोड़ की राफेल डील में ऑफसेट की शर्तों का पालन नहीं किया है. क्योंकि वेंडर ने अब तक ट्रांसफर हाईएंड टेक्नोलॉजी डीआरडीओ को नहीं दी है. जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल छोटे एयरक्राफ्ट्स के लिए जेट इंजन तैयार करने में होता.

दरअसल बुधवार को सीएजी की इस रिपोर्ट को संसद के सामने रखा गया था. जिसमें सरकारी ऑडिटर ने कहा है कि दसॉ एविएशन और एमबीडीए ने सौदे के दौरान कई ऑफसेट शर्तों पर हामी भरी थी और कहा था कि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक ये पूरी होंगीं. लेकिन उन्होंने इन शर्तों को पूरा नहीं किया है.

36 राफेल विमानों को लेकर फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन और एमबीडीए से हुई डील में ऑफसेट प्लान तैयार किया गया था. जिसके तहत कंपनी को राफेल के अलावा भी भारत को कुछ और चीजें साझा करनी थी. इस ऑफसेट प्लानिंग के तहत कंपोजिट मैन्युफैक्चरिंग सेंटर तैयार करना, विमानों को लेकर खास तकनीक का डीआरडीओ को ट्रांसफर और फॉल्कन जेट के लिए एक ज्वाइंट वेंचर तैयार करना था.

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फ्रांस की इन कंपनियों को पहले 30 फीसदी ऑफसेट शर्तों के तौर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को एक हाई टेक्नोलॉजी मुहैया करानी थी. जिससे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट्स के इंजन तैयार होने में भारत को मदद मिलेगी. सीएजी ने कहा कि आज की तारीख तक इन वेंडर्स ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं की है.

क्या होता है ऑफसेट?

दरअसल जब सरकार किसी दूसरे देश की कंपनी के साथ कोई बड़ी डील साइन करती है तो, इसके साथ ही कुछ भारतीय कंपनियों के साथ भी डील होती है. जिन्हें ऑफसेट पार्टनर कहा जाता है. यानी इन कंपनियों को वो विदेशी जिससे कुछ खरीदा जा रहा है या सौदा हो रहा है, वो अलग-अलग तरह के काम देगा. आमतौर पर यही होता है कि जब सरकार किसी विदेशी कंपनी के साथ डील करती है तो पहले ऑफसेट एग्रीमेंट पर बात होती है. जिससे इस डील का फायदा देश की कंपनियों को भी होता है.

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