Bihar Caste Census: बिहार (Bihar) में जाति आधारित जनगणना कराने को लेकर बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. बैठक में जातिगत जनगणना कराने को लेकर सर्व सहमति से फैसला लिया गया था. इसके बाद 2 जून को नीतीश कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें कास्ट सेंसस के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई.
बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुब्हानी ने बिहार कैबिनेट द्वारा लिए गए फैसलों की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जातिगत जनगणना कराने पर 500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. यह राशि आकस्मिकता निधि से खर्च की जाएगी, जिसकी मंजूरी कैबिनेट ने दे दी है.
जाति आधारित जनगणना का काम फरवरी 2023 तक चलने का अनुमान जताया गया है. मुख्य सचिव ने बताया कि जिलाधिकारी को इस प्रक्रिया का नोडल अधिकारी बनाया जाएगा. उन्होंने बताया कि सामान्य प्रशासन विभाग और जिला पदाधिकारी ग्राम पंचायत स्तर के अधिकारी और अन्य विभागों के तहत काम करने वाले कर्मचारियों की सेवा इसके लिए ले सकेंगे. जातिगत जनगणना के तहत आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण करने का प्रयास भी किया जाएगा.
क्या है जातीय जनगणना?
भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है. जिसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए अलग से कॉलम है. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई कॉलम नहीं है. इसलिए जाती जनगणना को आप अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) गिनती कह सकते हैं. अगर तकनीकी शब्दावली की बात करें तो इसे 'सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग' (Social and Educational Backward Class) गणना कहा जाता है.
बता दें कि जाती जनगणना की जो मांग उठ रही है इमसें बाकी जातियों की नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आने वाली जातियों की गिनती की मांग हो रही है.
क्या पहले होती थी जातीय जनगणना?
जवाब है हां, लेकिन जातीय जनगणना को समझने के लिए आपको इतिहास के पन्नों को पलटना होगा. दरअसल, भारत में साल 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की वजह से साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया.
अब इसके बाद साल 2011 तक भारत में कभी भी जातीय जनगणना नहीं हुआ. 1951 के बाद से लेकर 2011 तक दशकीय जनगणना (Decennial Census) में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
इनपुट- तनवीर आलम
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