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इंदिरा जयसिंह पर CBI छापे: कुल 14 आरोप और बचाव में जवाब

‘लॉयर्स कलेक्टिव’ एनजीओ ने आरोपों पर दी सफाई

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भारत
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सीबीआई ने 11 जुलाई, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की सीनियर लॉयर इंदिरा जय सिंह और उनके पति आनंद ग्रोवर के मुंबई और दिल्ली स्थित दफ्तरों और घर पर छापे मारे. इंदिरा जय सिंह और आनंद ग्रोवर पर फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2010 और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के उल्लंघन का आरोप है.

न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, खबर लिखे जाने तक सीबीआई की छापेमार कार्रवाई जारी थी.

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गृह मंत्रालय की शिकायत पर FIR

ये छापामार कार्रवाई बीते 13 जून को लॉयर्स कलेक्टिव एनजीओ और इसके संस्थापकों में से एक, सीनियर लॉयर आनंद ग्रोवर के खिलाफ सीबीआई की ओर से दर्ज की गई FIR के बाद हुई है. द क्विंट के हाथ इस FIR की एक कॉपी लगी है. ये FIR गृह मंत्रालय के एक अंडर सेक्रेटरी अनिल कुमार धस्माना की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है.

एनजीओ के खिलाफ 15 मई, 2019 को शिकायत दर्ज कराई गई थी, इसके तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट में NGO और उसके संस्थापकों पर इसी तरह के आरोप लगाते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई थी.

धस्माना ने ये शिकायत FCRA के कथित उल्लंघन को लेकर 19 से 23 जनवरी 2016 तक गृह मंत्रालय की एक जांच रिपोर्ट के आधार पर दर्ज कराई थी. FCRA भारत में गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संगठनों को मिलने वाली विदेशी फंडिंग के इस्तेमाल को रेगुलेट करती है.

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विदेशी फंडिंग के दुरुपयोग का मामला

गृह मंत्रालय के निरीक्षकों ने अपनी जांच में 14 टिप्पणियां की हैं, जिनमें "आपराधिक षड़यंत्र, आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, घोषणा में झूठे बयान, FCRA 2010 का उल्लंघन और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, 1988 के तहत क्रिमिनल मिसकंडक्ट के संदिग्ध अपराधों का खुलासा किया गया है."

इन टिप्पणियों के आधार पर ही सीबीआई को इस मामले में आगे की जांच करने के लिए निर्देश दिए गए हैं.

शिकायत के अनुसार, जांच में सामने आया कि ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ एनजीओ, इसके संस्थापकों में से एक आनंद ग्रोवर और एनजीओ के अन्य पदाधिकारियों ने एनजीओ को मिली विदेशी फंडिंग का सही इस्तेमाल नहीं किया.

मंत्रालय की शिकायत के अनुसार एनजीओ को साल 2006-07 और 2014-15 के बीच 32.39 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग मिली थी.

मंत्रालय ने कहा कि एनजीओ की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी और रिकॉर्ड्स की जांच के आधार पर FCRA, 2010 के विभिन्न प्रावधानों का पहली नजर में उल्लंघन पाया गया.

मंत्रालय ने दावा किया कि जांच के दौरान पाए गए उल्लंघनों के आधार पर एनजीओ से जवाब मांगा गया था लेकिन उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिले. इसके बाद उसका FCRA पंजीकरण निलंबित कर दिया गया और कारण बताओ नोटिस जारी किया गया.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में ‘लॉयर्स वॉइस’ की ओर से दायर एक जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ द्वारा एकत्र चंदे का ‘‘देश के खिलाफ गतिविधियों’’ में दुरुपयोग किया गया.

गृह मंत्रालय ने लॉयर्स कलेक्टिव और आनंद ग्रोवर पर लगाए ये आरोप?

  • विदेशी फंडिंग में मिली रकम का बड़ा हिस्सा आनंद ग्रोवर और अन्य कर्मचारियों/प्रतिनिधियों की यात्राओं पर खर्च किया गया.
  • गृह मंत्रालय की तरफ से आरोप लगाया गया कि विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल एचआईवी/एड्स बिल की मीडिया में वकालत करने के लिए किया गया. गृह मंत्रालय के अनुसार, इस तरह की गतिविधियां एनजीओ के उद्देश्यों में सूचीबद्ध नहीं थी.
  • गृह मंत्रालय ने माना कि सांसदों और मीडिया पर विदेशी फंडिंग खर्च करना FCRA की भावना के खिलाफ है.
  • विदेशी दाताओं ने कथित तौर पर 'राइट टू हेल्थ' पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के रूप में ग्रोवर को उनके काम में मदद करने के लिए 'लॉयर्स कलेक्टिव' को फंडिंग दी थी. निरीक्षकों के अनुसार, इसे भी एनजीओ के उद्देश्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया था.
  • कथित रूप से सुप्रीम कोर्ट में नोवार्टिस केस लड़ने वाले आनंद ग्रोवर के काम के लिए विदेशी डोनर एजेंसी से विदेशी फंडिंग हासिल की थी. (ग्रोवर ने भारत में कैंसर रोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण दवा को पेटेंट कराने के लिए अमेरिकी मेडिसन कंपनी का प्रतिनिधित्व किया था). गृह मंत्रालय ने माना कि यह भी एनजीओ के उद्देश्यों में सूचीबद्ध नहीं था.
  • ग्रोवर ने कथित तौर पर सम्मेलनों और संगठन के काम से संबंधित एक चैरिटी डिनर के लिए यात्रा करने के लिए विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल किया. निरीक्षकों का मानना था कि यह भी एनजीओ के उद्देश्यों का हिस्सा नहीं था. ये भारत के बाहर से मिली विदेशी फंडिंग का गलत इस्तेमाल था.
  • कलेक्टिव लॉयर्स ने विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल इसके उद्देश्य से हटकर महिला सशक्तीकरण के लिए किया. गृह मंत्रालय ने एचआईवी / एड्स से संबंधित एनजीओ के कार्यों के लिए धन के इस्तेमाल को भी अपवाद माना.
  • कथित तौर पर नॉन-डिस्क्लोजर 29.33 लाख रुपये विदेशी फंडिंग, और साल 2013-14 से 2015-16 तक 16.18 लाख रुपये और 7.54 लाख रुपये एक ही डोनर ने दिए.
  • वित्तीय वर्ष 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के लिए गृह मंत्रालय और आयकर अधिकारियों को दाखिल रिटर्न के बीच कथित विसंगति.
  • इंदिरा जयसिंह ने (जुलाई 2009 से मई 2014 तक) एडिशिनल सॉलिसिटर जनरल रहते हुए भी लॉयर्स कलेक्टिव से पारिश्रमिक हासिल किया
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आरोपों पर क्या है जवाब?

FIR के बारे में पता चलने के बाद, लॉयर्स कलेक्टिव और इसके ट्रस्टियों ने एक बयान जारी किया है. बयान में कहा गया है कि 'कलेक्टिव लॉयर्स' के पदाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और सभी मंचों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बोलने के लिए निशाना बनाया जा रहा है.

एनजीओ के पदाधिकारियों ने सीबीआई कार्रवाई की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि ये राइट टू रिप्रेजेंटेशन ऑफ पर्सन और राइट टू फ्री स्पीच एंड एक्सप्रेशन के साथ-साथ कानूनी पेशे पर सीधा हमला है. लॉयर्स कलेक्टिव ने दावा किया कि एफआईआर में "तथ्य और कानून का कोई आधार नहीं है."

गृह मंत्रालय के निरीक्षकों द्वारा 14 की गई टिप्पणियों की समीक्षा, जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज कराई गई है, बताती है कि इनमें से कम से कम कुछ आरोप बेहद संदिग्ध हैं.

  • निरीक्षकों ने पाया कि सरकार के साथ रजिस्टर्ड एनजीओ लॉयर्स कलेक्टिव का उद्देश्य नागरिकों को कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करना (इस पर सामग्री प्रकाशित करना), लीगल एजुकेशन प्रोग्राम, सार्वजनिक महत्व के कानूनी मुद्दों पर सेमिनार करना और नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना है. इसके बावजूद, उन्होंने एनजीओ पर कानून से संबंधी बैठकें करने, धरना प्रदर्शन करने, सांसदों के साथ एचआईवी / एड्स बिल जैसे कानून का मसौदा तैयार करने के लिए वकालत पर होने वाले खर्च पर रोक लगा दी. भले ही ये सारी चीजें साफ तौर पर संगठन के उद्देश्यों के अंतर्गत आती हैं.
  • गृह मंत्रालय ने एनजीओ को 'राइट टू हेल्थ' पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के रूप में ग्रोवर की मदद करने के उद्देश्य से मिलने वाले धन पर आपत्ति जताई है. जबकि ग्रोवर का ये काम भी लॉयर्स कलेक्टिव के उद्देश्यों के दायरे में आता है.
  • गृह मंत्रालय के निरीक्षकों ने लॉयर्स कलेक्टिव के "महिला सशक्तीकरण" के काम को भी छोड़ दिया, जबकि यह भी साफ तौर पर से संगठन के रजिस्टर्ड उद्देश्यों के अंदर आता है.

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