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तोहफे में चला गया कोहिनूर, आखिर किसकी भूल?

कोहिनूर की चमक से बेनूर न रह जाए भारत.

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सालों पहले जब बेशकीमती कोहिनूर भारत से चला गया तो उसके वापस आने की उम्मीद बाकी रही. लेकिन अब वह उम्मीद भी धुंधली होती जा रही है. कोहिनूर को वापस भारत लाए जाने की जनहित याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा तो केंद्र सरकार ने कहा कि कोहिनूर को ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से लूट कर नहीं ले गई थी बल्कि तत्कालीन सिख सम्राट महाराजा रंजीत सिंह ने ब्रिटेन को कोहिनूर तोहफे में दिया था.

इतिहास से मिली जानकारी के मुताबिक महाराजा रंजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को तोहफे में कोहिनूर दिया. इस मामले में कार्रवाई करने के अधिकार अब सांस्कृतिक मंत्रालय के पास नहीं है, अव विदेश मंत्रालय आगे की कार्रवाई करे. 
महेश शर्मा, सांस्कृतिक मंत्री

केंद्र सरकार के दावे पर गौर करें तो कोहिनूर पर भारत की ओर से दावा किए जाने का सवाल ही नहीं उठता. ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि भारत की शान रहे कोहिनूर को तोहफे में देकर महाराजा रंजीत सिंह ने भूल की थी या फिर अब केंद्र सरकार कोहिनूर पर दावा न करने की बड़ी भूल कर रही है.

सांस्कृति मंत्रालय जांचकर रिपोर्ट करे पेश

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर और जस्टिस उदय उमेश ललित की बैंच ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सांस्कृतिक मंत्रालय को इतिहास खंगालकर पूरी रिर्पोट पेश करने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने सरकार को इतिहास खंगालकर रिपोर्ट पेश करने के लिए छह हफ्ते का वक्त दिया है.

वहीं सांस्कृति मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि कोहिनूर हीरा आजादी के पहले का विषय है. साथ ही कोहिनूर हीरा तोहफे में दिए जाने पर भारत का इस पर अब कोई अधिकार नहीं रह जाता है. मंत्रालय ने कहा है कि चूंकि कोहिनूर अब भारत से बाहर है ऐसे में अब इसके विषय में कोई भी फैसला विदेश मंत्रालय ही ले सकेगा.

कोहिनूर पर खत्म हो सकता है हक

सांस्कृतिक मंत्रालय ने कोर्ट में कोहिनूर पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि साल 1850 में अंग्रेजों-सिखों के बीच हुए युद्ध के बाद 108 कैरट के बेशकीमती हीरे कोहिनूर को सिख सम्राट ने ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को तोहफे में दे दिया था. ऐसे में छह हफ्ते बाद भी सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से यही पक्ष रखा जाता है तो कोहिनूर पर भारत का हक हमेशा के लिए खत्म हो सकता है.

लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने गलत तथ्य पेश किए हैं. कोहिनूर दरअसल तोहफे में नहीं दिया गया था बल्कि इसे छीन लिया गया था. याचिकाकर्ता नफीस अहमद सिद्दिकी का कहना है कि महाराज रंजीत सिंह के बेटे दलिप सिंह को अंग्रेज जबरन इंग्लैंड ले गए और उन्हें ईसाइ धर्म अपनाने के लिए मजूबर कर उनसे कोहिनूर ले लिया.

अब विदेश मंत्रालय के जवाब का इंतजार

महाधिवक्ता रंजीत कुमार ने न्यायालय से कहा कि उन्होंने हीरे के संबंध में अदालत से जो कुछ कहा है वह संस्कृति मामलों के मंत्रालय का रुख है. लेकिन, मामले में विदेश मंत्रालय भी एक पक्ष है और उसकी प्रतिक्रिया आनी अभी बाकी है. इस दलील के बाद न्यायालय ने छह सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया.

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