सरकार ने कहा है कि एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के खिलाफ विधेयक तैयार करने में मुस्लिम संगठनों से कोई बातचीत नहीं की गई. सरकार का कहना है कि ये मुद्दा लैंगिक न्याय और लैंगिंक समानता और महिलाओं की गरिमा की मानवीय अवधारणा से जुड़ा हुआ है, जिसमें आस्था और धर्म का कोई संबंध नहीं है.
सरकार से पूछा गया था सवाल
सरकार से सवाल पूछा गया था कि क्या उसने विधेयक का मसौदा तैयार करने में मुस्लिम संगठनों के साथ बातचीत की है, जिसपर कानून राज्य मंत्री पी पी चौधरी ने ना में जवाब दिया है. एक दूसरे सवाल के जवाब में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, सरकार का मानना है कि ये मुद्दा लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और महिलाओं की गरिमा की अवधारणा से जुड़ा हुआ है.
इसमें आस्था और धर्म का कोई संबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने एक बार में तीन तलाक को अवैध करार दिया, लेकिन इसके बाद भी ऐसे 66 मामले सामने आए हैं.
इससे पहले केंद्रीय कैबिनेट ने तीन बार तलाक बोलकर तलान देने पर तीन साल की जेल के प्रावधान वाले बिल को मंजूरी दे दी थी. बिल के मुताबिक तीन तलाक को गैर जमानती अपराध भी बनाने की तैयारी है. बिल के मुताबिक, एक बार में ट्रिपल तलाक देना अवैध माना जाएगा.
बिल की अहम बातें-
- एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और अवैध होगा
- ऐसा करने वाले पति को होगी तीन साल के कारावास की सजा
- ट्रिपल तलाक देना गैरजमानती और संज्ञेय अपराध होगा
- पीड़िता को मिलेगा गुजारा भत्ता का अधिकार
- मजिस्ट्रेट करेंगे इस मुद्दे पर अंतिम फैसला
- जम्मू कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश में लागू होना है
- प्रस्तावित कानून केवल एक बार में तीन तलाक पर ही लागू होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार का मानना था कि यह परंपरा बंद हो जाएगी. लेकिन ये अब तक जारी रही. इस साल फैसले से पहले इस तरह के तलाक के 177 मामले, जबकि इस फैसले के बाद 66 मामले दर्ज हुए. उत्तर प्रदेश इस सूची में टॉप पर है. इसलिए सरकार ने कानून बनाने की योजना बनाई.
(इनपुट: PTI)
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