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‘डिजिटल मीडिया पर हो कंट्रोल’,केंद्र ने SC को हलफनामे में क्या कहा

केंद्र ने अपने नए हलफनामे में क्या कहा?

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केंद्र सरकार ने 21 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया है. इसमें केंद्र ने कोर्ट को सुझाव दिया है कि हेट स्पीच पर मुख्यधारा और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए गाइडलाइन तय करने की बजाय कोर्ट को 'वेब आधारित डिजिटल मीडिया' के लिए गाइडलाइन बनानी चाहिए. मुख्यधारा और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए गाइडलाइन बनाने का मुद्दा सुदर्शन न्यूज के 'UPSC जिहाद' शो के संदर्भ में उठा था.

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सुप्रीम कोर्ट सुदर्शन न्यूज के एडिटर-इन-चीफ सुरेश चव्हाणके के इस शो के खिलाफ एक याचिका और कई इंटरवेंशन एप्लीकेशन पर सुनवाई कर रहा है. याचिका और एप्लीकेशन में शो के ब्रॉडकास्ट पर रोक लगाने की मांग की गई है. शो मुस्लिमों पर 'साजिश' के तहत 'नौकरशाही में घुसपैठ' का आरोप लगाता हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को इस शो के बाकी एपिसोड के ब्रॉडकास्ट पर रोक लगा दी थी. कोर्ट का कहना था कि शो का प्राइमा फेसी मकसद ‘मुस्लिम समुदाय की छवि खराब’ करना है और इसमें ‘स्पष्ट रूप से गलत’ जानकारी दी गई है.  

फिर 17 सितंबर को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और केएम जोसफ की बेंच ने शो की भाषा और कंटेंट पर चिंता जाहिर की. सुदर्शन न्यूज को एक नया हलफनामा दाखिल करने को कहा गया था, जिसमें चैनल बताएगा कि कोर्ट की चिंताओं को वो कैसे दूर करेगा.

कोर्ट ने केंद्र से भी एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था, जिसमें सरकार को बताना था कि Common Cause vs Union of India (2018) केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या कदम उठाए गए हैं. इस फैसले में सरकार से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए सेल्फ-रेगुलेशन सिस्टम की खामियों को दूर करने के लिए नियम बनाने को कहा गया था.

अपने पिछले हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सेल्फ-रेगुलेशन का सिस्टम पहले से मौजूद है और अगर कोर्ट मीडिया रेगुलेशन पर विचार कर रहा है तो उसे पहले डिजिटल मीडिया के बारे में सोचना चाहिए.

केंद्र ने अपने नए हलफनामे में क्या कहा?

  • केंद्र ने 21 सितंबर को दायर किए हलफनामे में कहा कि टीवी ब्रॉडकास्टर और प्रिंट मीडिया के लिए कई तरह की योग्यता, क्राइटेरिया और क्वालीफाइंग स्टैंडर्ड हैं, जिन्हें पूरा करना होता है. इनमें एक कठिन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया है और टीवी न्यूज में एक प्रदर्शन गारंटी और न्यूनतम कुल कीमत की जरूरत होती है.
  • हलफनामे में कहा गया, "इसके उलट एक पैरेलल मीडिया चल रहा है, जिसकी काफी पहुंच और प्रभाव है. जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एयरवेव (सार्वजानिक संपत्ति) का इस्तेमाल करता है, उसी तरह वेब आधारित डिजिटल मीडिया भी स्पेक्ट्रम और इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, जो कि भी एक सार्वजानिक संपत्ति है."
  • केंद्र ने दावा किया कि 'वेब आधारित डिजिटल मीडिया' में डिजिटल वेब पोर्टल, वेब मैगजीन और YouTube जैसे वीडियो प्लेटफॉर्म्स पर चैनल शामिल हैं, जिनकी संख्या लाखों और करोड़ों में है. केंद्र का कहना है कि इनके लिए कोई एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया नहीं है और न ही कोई रजिस्ट्रेशन चाहिए होता है. टीवी चैनलों के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान भी गृह मंत्रालय के क्लीयरेंस के जरिए रखा जाता है और प्रिंट मीडिया के लिए कई वैधानिक अथॉरिटी मौजूद है.
  • केंद्र ने दावा किया कि 'प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शायद ही कभी वो लकीर पार करें, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को दखल देने की बार-बार जरूरत पड़े.' प्रिंट मीडिया उन्हीं तक पहुंचता है जिनके पास कोई अखबार या मैगजीन हो. वहीं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक पहुंच उन लोगों की ही है जिनके पास टीवी और सब्सक्रिप्शन है.
  • वेब-आधारित डिजिटल मीडिया को लेकर केंद्र ने कहा कि इसे कोई भी शख्स शुरू कर सकता है और इस तक पहुंच के लिए साक्षरता या टीवी सेट या DTH/केबल कनेक्शन होना जरूरी नहीं है. इसके लिए सिर्फ एक स्मार्टफोन चाहिए. केंद्र ने कहा, "ये इसकी संभावित पहुंच और देश को नुकसान पहुंचाने की संभावना को दिखाता है."
  • केंद्र ने कहा कि डिजिटल मीडिया पर 'जहरीली नफरत' का फैलना 'अनियंत्रित' है.
  • केंद्र ने कहा, "वेब-आधारित डिजिटल मीडिया पर कोई नियंत्रण नहीं है. जहरीली नफरत फैलाने, सिर्फ हिंसा ही नहीं आतंकवाद को जानबूझकर भड़काने के अलावा ये मीडिया लोगों और संस्थानों की छवि खराब कर सकता है."

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