सुप्रीम कोर्ट में पिछले कुछ दिनों से सुदर्शन टीवी के एक विवादित कार्यक्रम को लेकर सुनवाई चल रही है. इस बीच कोर्ट के साथ-साथ देशभर में मीडिया रेगुलेशन को लेकर बहस तेज हो गई है. इस बहस के बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि टीवी और प्रिंट से पहले डिजिटल मीडिया पर कंट्रोल की जरूरत है. सरकार का एक तर्क ये है कि चूंकि प्रिंट और टीवी पहले से ही नियम कायदे के अंडर आते हैं इसलिए उसेस ज्यादा डिजिटल पर रेगुलेशन की जरूरत है. ऐसे में आइए समझते हैं कि भारत में टीवी और प्रिंट मीडिया को कौन और कैसे कंट्रोल करता है?
‘’मेनस्ट्रीम मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट) में प्रकाशन/ प्रसारण एक बार ही होता है, वहीं डिजिटल मीडिया की व्यापक पाठकों/दर्शकों तक पहुंच तेजी से होती है और वॉट्सऐप, ट्विटर और फेसबुक जैसी कई इलेक्ट्रॉनिक एप्लिकेशन्स की वजह से जानकारी के वायरल होने की भी संभावना होती है. डिजिटल मीडिया पर कोई निगरानी नहीं है, जहरीली नफरत फैलाने के अलावा, यह व्यक्तियों और संस्थानों की छवि को धूमिल करने में भी सक्षम है.’’केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
प्रिंट मीडिया को रेगुलेट करती है PCI
पहले प्रेस आयोग की सिफारिश पर, प्रेस की आजादी को सुरक्षित रखने, भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखने और सुधारने के मकसद से संसद ने साल 1966 में प्रेस काउंसिल का पहली बार गठन किया था. मौजूदा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), प्रेस काउंसिल एक्ट 1978 के तहत काम करती है. यह एक सांविधिक (statutory), अर्ध-न्यायिक अथॉरिटी है जो, प्रेस के लिए और प्रेस की ओर से प्रेस के एक वॉचडॉग (प्रहरी) की तरह काम करती है. यह क्रमशः एथिक्स और प्रेस की आजादी के उल्लंघन के लिए, प्रेस के खिलाफ और प्रेस की ओर से दर्ज शिकायतों के न्याय-निर्णय करती है.
PCI के प्रमुख इसके अध्यक्ष होते हैं, जो चलन के मुताबिक, भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज होते हैं. PRS के मुताबिक, अध्यक्ष का चयन लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और PCI की ओर से चुने गए सदस्य द्वारा किया जाता है.
काउंसिल में 28 अन्य सदस्य होते हैं, जिनमें से 20 प्रेस का प्रतिनिधित्व करते हैं और मान्यता प्राप्त प्रेस संगठनों / समाचार एजेंसियों की ओर से नामित किए जाते हैं.
5 सदस्य संसद के दोनों सदनों की ओर से नामित किए जाते हैं और तीन सदस्य साहित्य अकादमी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नामित के रूप में सांस्कृतिक, साहित्ययिक और विधिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
देश में रजिस्टर्ड अखबारों पर उनके सर्कुलेशन के आधार पर काउंसिल द्वारा लेवी शुल्क के रूप में उनसे जुटाए गए राजस्व से काउंसिल की फंडिंग होती है. 5000 कॉपीज से कम सर्कुलेशन वाले अखबारों पर लेवी शुल्क नहीं लगाया जाता. घाटा होने की सूरत में उसे केंद्र सरकार के अनुदान के जरिए पूरा किया जाता है.
PCI के मुख्य काम क्या हैं?
- अखबारों और न्यूज एजेंसियों को उनकी आजादी बनाए रखने में मदद करना
- अखबारों, न्यूज एजेंसियों और पत्रकारों के लिए आचार संहिता बनाना
- सार्वजनिक हित और महत्व की खबरों की आपूर्ति और प्रसार को प्रतिबंधित होने की किसी भी संभावना की समीक्षा करना
कितनी ताकतवर है PCI?
PRS के मुताबिक, PCI के पास किसी संपादक या पत्रकार द्वारा पत्रकारिता की नैतिकता के उल्लंघन या प्रफेशनल मिसकंडक्ट की शिकायतें रिसीव करने का अधिकार है. इन शिकायतों को लेकर पूछताछ के लिए PCI जिम्मेदार है. वो गवाहों को समन कर सकती है और शपथ के तहत सबूत ले सकती है, सार्वजनिक रिकॉर्ड की कॉपी पेश करने की मांग कर सकती है, चेतावनी जारी कर सकती है और अखबार, न्यूज एजेंसी, संपादक या पत्रकार की भर्त्सना कर सकती है. यह किसी अखबार को इन्क्वायरी की डीटेल्स पब्लिश करने को कह सकती है. PCI के फैसले अंतिम होते हैं और उनको लेकर कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती.
PCI की लिमिटेशन्स क्या हैं?
- PCI के पास जारी दिशा निर्देशों को लागू करने की सीमित शक्तियां होती हैं. यह दिशा निर्देशों के उल्लंघन के लिए अखबारों, न्यूज एजेंसियों, संपादकों और पत्रकारों को दंडित नहीं कर सकती है.
- PCI केवल प्रिंट मीडिया के कामकाज की निगरानी करती है.
न्यूज चैनल्स की होती है सेल्फ रेगुलेशन
भारत में अभी न्यूज चैनल सेल्फ रेगुलेशन यानी आत्म नियमन के मैकेनिज्म के आधार पर काम करते हैं. ऐसा ही एक मैकेनिज्म न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) की ओर से बनाया गया है.
NBA की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘’यह संगठन प्राइवेट टेलीविजन न्यूज और करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है. यह भारत में न्यूज और करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स की सामूहिक आवाज है. इसकी फंडिंग इसके सदस्य करते हैं.’’
NBA ने टेलीविजन कॉन्टेंट को रेगुलेट करने के लिए एक आचार संहिता तैयार की है. NBA की न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) को आचार संहिता के उल्लंघन पर चेतावनी देने, निंदा करने, भर्त्सना करने, अस्वीकृति जाहिर करने और ब्रॉडकास्टर पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार है.
इस तरह के अन्य संगठन ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (BEA), न्यूज ब्राडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) भी है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने NBA को लेकर कहा था, ‘’NBA का कहना है कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली समिति है. वे अधिकतम 1 लाख रुपये का जुर्माना लगा सकते हैं. इससे पता चलता है कि आप कितने टूथलेस हैं.’’ उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि NBA का कार्यक्षेत्र सिर्फ उन ब्रॉडकास्टर्स तक ही सीमित है, जो इसके सदस्य हैं. ऐसे में कोर्ट ने सेल्फ रेगुलेशन को मजबूती देने के लिए NBA से ठोस सुझाव लेकर आने को कहा था.
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन में मदद के लिए एक समिति गठित की जा सकती है. उसने कहा, ‘‘हमारी राय है कि हम पांच प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति गठित कर सकते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मानक तैयार करेगी. हम राजनीतिक विभाजनकारी प्रकृति नहीं चाहते और हमें ऐसे सदस्य चाहिये, जिनकी प्रतिष्ठा हो.’’
NBA ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि उसकी आचार संहिता को केबल टीवी नियमों के तहत कार्यक्रम संहिता का हिस्सा बनाकर वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए, जिससे ये संहिता सभी समाचार चैनलों के लिए बाध्यकारी बने.
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