भारत का चंद्रयान-2 अब चांद के बेहद करीब पहुंच चुका है. वो दिन दूर नहीं जब चंद्रयान-2 चांद की सतह पर लैंड करेगा. अब चंद्रयान-2 को चांद की निचली कक्षा में उतारने का दूसरा चरण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है. जिसके बाद अब लैंडर विक्रम चांद से सिर्फ 35 किमी की दूरी पर घूम रहा है. बुधवार सुबह इसरो की तरफ से ये जानकारी दी गई. इसरो ने बताया कि इस प्रोसेस के तहत अब चंद्रयान-2 उस कक्षा में पहुंच चुका है, जो लैंडर ‘विक्रम’ को चंद्रमा की सतह की ओर नीचे ले जाने के लिए जरूरी है.
इसरो ने बताया कि चंद्रयान को निचली कक्षा में ले जाने का काम बुधवार सुबह करीब पौने चार बजे किया गया. इस प्रक्रिया में नौ सेकंड का समय लगा.
कुछ ही किलोमीटर दूर है चंद्रयान
इससे पहले यान को चंद्रमा की निचली कक्षा में उतारने का पहला चरण मंगलवार को पूरा किया गया था. यह प्रक्रिया चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर ‘विक्रम’ के अलग होने के एक दिन बाद पूरी की गई. चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में 96 किलोमीटर पेरिजी (सबसे नजदीकी बिन्दु) और 125 किलोमीटर अपोजी (सबसे दूरस्थ बिन्दु) पर है जबकि विक्रम लैंडर 35 किलोमीटर पेरिजी और 101 किलोमीटर अपोजी की कक्षा में है. इसरो ने चंद्रयान-2 को लेकर कहा,
‘‘ऑर्बिटर और लैंडर दोनों पूरी तरह ठीक हैं. ‘विक्रम’ के 7 सितंबर को देर रात एक बजकर 30 मिनट से ढ़ाई बजे के बीच चंद्रमा की सतह पर उतरने की उम्मीद है.’’ इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि चंद्रमा पर लैंडर के उतरने का क्षण दिल की धड़कनों को रोकने वाला होगा.
चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद ‘विक्रम’ से रोवर ‘प्रज्ञान’ 7 सितंबर की सुबह 5:30 से 6:30 के बीच निकलेगा और एक चंद्र दिवस की अवधि के दौरान चंद्रमा की सतह पर रहकर परीक्षण करेगा. चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है. लैंडर का भी मिशन जीवनकाल एक चंद्र दिवस ही होगा जबकि ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा.
ऐसे शुरू किया सफर
चंद्रयान-2 ने धरती की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा 14 अगस्त को इसरो द्वारा ‘ट्रांस लूनर इन्सर्शन’ नाम की प्रक्रिया को अंजाम दिये जाने के बाद शुरू की थी. यह प्रक्रिया अंतरिक्ष यान को ‘लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री’ में पहुंचाने के लिये अपनाई गई. अंतरिक्ष यान 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक अहम मील का पत्थर बन गया.
इसरो ने बताया कि यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है. इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है.
सफल होने पर इन देशों के साथ खड़ा होगा भारत
चंद्रयान-2 के ‘ऑर्बिटर’ में आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करेंगे और पृथ्वी के इकलौते उपग्रह के बाहरी परिमंडल का अध्ययन करेंगे. ‘लैंडर’ के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. वहीं, ‘रोवर’ के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाएंगे.
इस सफल लैंडिंग के साथ ही भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद ऐसा चौथा देश बन जाएगा जो चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल होगा. बता दें कि 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को जीएसएलवी मैक-3 एम1 रॉकेट से लॉन्च किया गया था. इस मिशन पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है.
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