भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नया इतिहास रचने के काफी करीब है. 7 सितंबर की तड़के चांद पर मिशन चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम’ उतरेगा. इसके कुछ घंटे बाद लैंडर के भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और चांद पर अपने वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा.
लैंडर ‘विक्रम’ से रोवर ‘प्रज्ञान’ किस तरह बाहर निकलेगा? 'प्रज्ञान' में कौन-कौन से उपकरण लगाए गए हैं? चांद पर उतरने के बाद ये कैसे काम करेगा? इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने एक वीडियो जारी करके इसकी पूरी जानकारी दी है.
रोवर 'प्रज्ञान' में कौन-कौन से उपकरण लगाए गए हैं?
- रोवर 'प्रज्ञान' में सोलर पैनल की एक प्लेट लगी हुई है. ये इसका बेहद अहम हिस्सा है, जो सूर्य के जरिए इसके लिए एनर्जी जनरेट करेगा.
- रोवर में दो नेविगेशन कैमरे लगे हैं. एक लेफ्ट साइड कैमरा लगा हुआ है और एक राइट साइड लगा है. ये एक तरह से रोवर के लिए आंखों का काम करेंगे.
- इन दो कैमरों के बीच में नीचे की तरफ एक प्लेट की तरह एक और उपकरण लगा हुआ है, जिसका नाम है APXS (अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर). ये चंद्रमा की सतह पर जरूरी डेटा इकट्ठा करेगा.
- सोलर पैनल की प्लेट के ऊपर दो एंटीना लगे हैं, जो लैंडर विक्रम तक जानकारी पहुंचाएंगे. वहीं, ‘विक्रम’ इसरो से मिलने वाले निर्देश ‘प्रज्ञान’ को देगा.
- रोवर के दोनों साइड 'रॉकर बोगी एसेंबली' लगा हुआ है. इस रॉकर से रोवर के पहिए जुड़े हुए हैं. दोनों रॉकर में तीन-तीन पहिए लगे हुए हैं.
लैंडर ‘विक्रम’ से रोवर ‘प्रज्ञान’ किस तरह काम करेगा?
चांद की सतह पर उतरने के कुछ घंटे बाद लैंडर 'विक्रम' का दरवाजा खुलेगा, जो रोवर के उतरने के लिए रैंप का काम करेगा. दरवाजा पूरी तरह खुलते ही रोवर की बैटरी एक्टिवेट हो जाएगी और सौलर पैनल खुल जाएगा. इसके बाद रोवर की गतिविधियों को लेकर इसरो जो भी निर्देश लैंडर विक्रम को भेजेगा, रोवर में लगे एंटीना निर्देश रिसीव करेंगे और उसके आधार पर आगे काम करेगा.
अगर रोवर के रास्ते में चलते समय कोई गड्ढा या पत्थर पहियों के नीचे आता है, तो रॉकर बोगी की मदद से पहिए उसे पार करके आगे बढ़ सकते हैं. रॉकर बोगी के कारण ही पहिए अपनी जगह से 50 मिमी ऊपर-नीचे तक जा सकते हैं.
देखिए, ISRO की ओर से जारी किया गया वीडियो-
क्यों खास साबित हो सकते हैं ‘प्रज्ञान’ के एक्सपेरीमेंट
- प्रज्ञान चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर एक्सपेरीमेंट करेगा.
- इसरो के मुताबिक, यह क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है.
- चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाले क्षेत्रों में पानी मौजूद होने की संभावना है.
- यहां ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है. इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप’ कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है.
- चंद्रयान-1 के जरिए चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का साक्ष्य पहले ही जुटाने वाले इसरो की योजना अब नए मिशन के जरिए वहां जल की उपलब्धता और उसकी मात्रा के बारे में पता कर प्रयोगों को आगे बढ़ाने की है.
इसरो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने की कोशिश करेगा. उसे अगर विक्रम की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा और चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
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