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Chandrayaan-3: दुनियाभर में भारत कैसे बन रहा स्पेस टेक्नोलॉजी का 'विश्वगुरु'?

चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही फॉलो-ऑन मिशन है. जिसका मकसद चांद पर पानी और कई दूसरी चीजों की खोज करना है.

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पिछले कुछ दशकों से भारत (India) ने अंतरिक्ष क्षेत्र में आपने आपको एक सुपर-पॉवर की तरह पेश किया है. इसके पीछे की वजह भारत की स्पेस एजेंसी- अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा सफलतापूर्वक अपने स्पेस मिशन्स को लॉन्च करना रहा है.

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ISRO 14 जुलाई को चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन लॉन्च करने वाला है. इसरो के शुरूआती दो चंद्र अभियानों के बाद ये तीसरा अभियान है .

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चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर 2008 में लॉन्च किया गया था. इसके बाद साल 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया पर आखरी मौके पर यान से संपर्क टूट गया था और यह मिशन असफल हो गया था.

चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही फॉलो-ऑन मिशन है. जिसका मकसद चांद पर पानी और कई दूसरी चीजों की खोज करना है. अगर. इसमें सफलता मिलती है तो आने वाले वक्त में भारत मून टूरिज्म (Moon Tourism) और चांद पर इंसानी बस्ती बसाने का सपना देखने वाले सभी देशों के बीच एक बड़ा पॉवर बनकर उभरेगा .

चंद्रयान-3 मिशन क्या है?

इसरो की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-3 चांद पर खोजबीन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा तैयार किया गया तीसरा चंद्र मिशन है. जो चंद्रयान-2 का ही फॉलो-ऑन मिशन है.

क्योंकि, चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में सॉफ्टवेयर में आई गड़बड़ी के कारण सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाया था और इसरो ने इससे संपर्क खो दिया था. सॉफ्ट लैन्डिंग का दोबारा सफल प्रयास करने के लिए इसरो ने पिछली खामियों को दूर करते हुए मिशन चंद्रयान-3 बनाया है.

इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर होगा, लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा.

चांद पर चंद्रयान-3 क्या काम करेगा?

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर डॉ. आकाश सिन्हा ने बताया के चंद्रयान में मौजूद लेंडर से लेंडिग के बाद एक छोटा सा रोवर निकलेगा (रॉबोट) जो चांद की सतह पर जाकर खनिज, पानी, तापमान, चट्टानी परत, मून कुऐक (Moon Quakes) के बारें में जानकारी लेकर हमें भेजेगा, जिससे हमें भविष्य में चांद पर होने वाले मिशन के लिए मदद मिलेगी.

यह चांद के साउध पोल पर लेंड करेगा, यहां अब तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत पहला देश बन जाएगा.

चंद्रयान- 2 से एडवांस और लागत में कम है चंद्रयान-3

ISRO ने चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 से करीब 30% कम लागत में तैयार किया है. चंद्रयान-3 की लागत लगभग 615 करोड़ रुपये है जो चंद्रयान 2 की लागत से कम है.

चंद्रयान 2 की लागत लगभग 850 करोड़ रुपये थी, जो चंद्रयान-3 के बजट से करीब 235 करोड़ अधिक है. इसके पीछे की वजह बताते हुए डॉ. आकाश सिन्हा ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि "जब 2019 में चंद्रयान- 2 को चांद पर भेजा गया था, तो उसके तीन हिस्से थे.

  1. ऑरबिटर (Orbiter)

  2. लेंडर (Lander)

  3. रोवर (Rover)

तब ऑरबिटर की लॉन्चिग कामयाब रही थी और वो आज भी चांद के चारों ओर घूमकर हमें इन्फॉर्मेशन भेज रहा है, इस बार चंद्रयान में ऑरबिटर नहीं है."

इसरो का लेटेस्ट टेकनालॉजी का इस्तेमाल करना और रिसोर्स का किफायती उपयोग करना भी इस कम लागत की वजह है.

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चंद्रयान का चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना इतना मुश्किल क्यों है?

  • चांद पर भेजे जाने वाले रॉकेट या व्हीकल को 4 लाख किमी. दूर धरती से कंप्यूटर द्वारा ही कंट्रोल किया जाता है.

  • यह प्रक्रिया पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर करती है.

  • व्हीकल में लगे सेंसर्स के द्वारा ही वैज्ञानिक अनुमान लगा पाते हैं कि कहां पर है, कितनी दूरी पर है.

इस करण कई बार टेक्निकल ग्लिच आ जातें है पर इसका चंद्रयान-3 में खासा ध्यान रखा गया है. इस मिशन की सफलता के बाद भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिग कराने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा.

स्पेस मिशन में भारत कैसे बन रहा सुपर पॉवर?

भारत का स्पेस बजट साल 2014 में 6000 करोड़ था और सिर्फ 9 सालों में ये बजट बढ़कर 12544 करोड़ हो गया है.

ISRO ने किफायती दामों में इन देशों के सैटेलाइट किए लॉन्च

इसके अलावा ISRO को दुनियां में सबसे कम लागत में स्पेस मिशन लॉन्च करने की काबिलियत हासिल है. आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई दूसरे देश इसरो से अपने सेटेलाइट लॉन्च करवा रहे हैं. इन देशों में ब्राजिल, फ्रांस, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया, जपान, मलेशिया, सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं.

भारत ने अप्रैल तक इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, बेल्जियम और जर्मनी सहित 34 देशों के लिए 424 उपग्रह लॉन्च किए.

स्पेस मंत्री जीतेंद्र सिहं ने 2022 दिसंबर में भारत की संसद को बताया था कि ISRO ने पिछले पांच वर्षों में विदेशी सैटेलाइट लॉन्चिंग से लगभग 1100 करोड़ रुपये (13.4 मिलियन डॉलर) कमाए हैं.

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