कचरे का ढेर बनता जा रहा चारधाम, ठोस कूडे के ढेर के असर से 'काँप उठा' हिमालय. वर्ष 2013 की आपदा के बाद ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग बाबा केदारनाथ के प्रति लोगों की आस्था ज्यादा बढी है,या ये कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर भाषणों में केदारनाथ का जिक्र भी धाम में बढती भीड़ का ही नतीजा है.
कूड़े के ढेरों से आबोहवा और नदियां प्रदूषित
चारधाम यात्रा में ठोस कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या है. हिमालय के लिए इस कचरे का निस्तारण ठीक से न हो पाना भी एक भयावाह समस्या बन चुकी है. हिमालय की संवेदनशील पारिस्थितिकी और यहां पर मौजूद बहुमूल्य वनस्पतियों और उच्च हिमालय क्षेत्र के जीव जंतुओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, साथ ही कूड़ा यहां की नदियों को भी दूषित कर रहा है. जो बेहद गंभीर है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर चारधाम यात्रा में सही तरीके से कूड़े का निस्तारण नहीं किया गया तो भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदायें अन्य स्थानों पर भी आ सकती हैं.
कचरे के ढेरों से हिमालय पटा है
पिछले वर्षों की तुलना में केदारनाथ में लगातार बढ़ रही मनुष्यों की गतिविधियों से एक बड़ा संकट खड़ा होता जा रहा है. हिमालय से निकलने वाली कई नदियों, झरनों और प्राकृतिक जल स्रोतों का भंडार माना जाता है. हिमालय से कई जलधारायें अविरल बहती हैं. लेकिन अब यहां के हालात बेहद खराब हो चले हैं. उच्च हिमालय में स्थित केदारनाथ धाम में बड़ी संख्या में यात्री पहुंच रहे हैं, जो अपने साथ कूड़ा-करकट, प्लास्टिक आदि ले जा रहे हैं. ये कूड़ा केदारनाथ धाम के चारों तरफ देखने को मिल रहा है.
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस तरीके के प्लास्टिक और अन्य कूड़े के अंबार पर पर्यावरणविदों ने चिंता व्यक्त की है. हिमालयी क्षेत्रों पर काम करने वाले सलभ गहलोत का कहना है कि केदारनाथ में लगे कूड़े के ये ढेर भविष्य के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं. हम केवल केदारनाथ को ही देख रहे हैं, जबकि उच्च हिमालय क्षेत्रो में जहां भी मनुष्य पहुंचा है वहां पर कचरे के ढेरों से हिमालय पटा है.
यात्रियों को खुद से कूड़े के निस्तारण के लिए पहल करनी होगी
बुग्यालों में प्लास्टिक लैंडस्लाइड का एक बड़ा कारण है. जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक दशा बदल सकती है. जिससे आने वाले दिनों में इस जगह पर बड़ी तबाही मच सकती है. भविष्य में रैणी और केदारनाथ जैसी आपदायें होने की प्रबल संभावनाएं बनी हुई हैं. वहीं, पर्यटन विभाग से जुड़े लोगों का भी कहना है कि केदारनाथ यात्रा आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन यहां की आबो-हवा को बचाये रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है. इसके लिये यात्रियों को खुद ही जिम्मेदारी लेनी होगी. यात्रियों को खुद से कूड़े के निस्तारण के लिए पहल करनी होगी. उन्हें पर्यावरण को लेकर खुद से चिंता करनी होगी. केदारनाथ में बढ़ती मानवीय गतिविधि व हेलीकॉप्टर के अत्यधिक उपयोग से हिमालय क्षेत्र में कार्बन जमा हो रहा है, जो हिमखंडों को पिघलाने में सहायक है.
सुशांत जो ट्रेकिंग का काम करते हैं वे कहते हैं कि
केदारनाथ क्षेत्र में कूड़े के ढेर यहां की बहुमूल्य जड़ी-बूटियों को भी नष्ट कर रहे हैं. जहां पर यह प्लास्टिक पड़ा रहता है, वहां वर्षों तक कुछ उग नहीं पाता. विलुप्त होती जड़ी-बूटियों में जटामासी, अतीश, बरमला, काकोली समेत अन्य जड़ी बूटियां शामिल हैं.
इसके लिए क्या हैं सुझाव ?
यात्रियों, पर्यटकों को चाहिए कि वे केदारनाथ को लेकर अति संवेदनशील बनें. वे अपने साथ ले जाने वाले कूड़े को वापस लाने की भी जिम्मेदारी लें. तभी पर्यावरण को बचाया जा सकता है,साथ ही केदारनाथ की सुंदरता भी बनी रहेगी.
पवन थपलियाल जो स्वयं सेवक हैं, कहते हैं कि हम, आधुनिक तो हुए हैं लेकिन हमने अपने शिष्टाचारों को भी तिलांजली दे दी है. जो प्रकृति व मानव जाति के लिए लिए शुभ नहीं है. हमें स्वयं पहल करनी होगी कि जो सामान हम हिमालय क्षेत्र में ले जा रहे हैं उसे हम वापस भी लायें तभी पर्यावरण व प्रकृति संरक्षित रह पायेगी.
इनपुट- मधुसूदन जोशी
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