Project cheetah: भारत में विलुप्त होने के 70 से अधिक सालों के बाद शनिवार, 17 सितंबर को फिर से चीता देश में आ रहे हैं. नामीबिया से आठ अफ्रीकी चीतों- 4-6 साल की उम्र के बीच के पांच मादा और तीन नर- को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में लाया जायेगा. नामीबिया से भारत आने के बीच ये हिंद महासागर को पार करते हुए 8,000 किमी का हवाई सफर तय करेंगे.
चीता जमीन पर भागने वाला दुनिया का सबसे तेज जीव है, आधी सदी से ज्यादा बीत जाने के बाद देश में चीतों की वापसी हो रही है. हाल ही में भारत ने नामीबिया के साथ एक समझौता किया गया था जिसमें जैव-विविधता और चीते के संरक्षण पर जोर दिया गया. इस समझौते की वजह से एक बार फिर भारत के जंगल में चीते की रफ्तार देखने को मिलेगी.
भारत में प्रोजेक्ट चीता के तहत 2010 और 2012 के बीच स्थानों का सर्वे हुआ था. उसके बाद चीताें के रहने के लिए मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान सबसे उपयुक्त पाया गया. अब अफ्रीका/नामीबिया से 8 चीतों को लाकर एमपी के कूनो जंगल में बसाया जा रह है.
पहले जानिए क्या है प्रोजेक्ट चीता?
प्रोजेक्ट चीता, एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और मध्य प्रदेश सरकार शामिल हैं. इस परियोजना के तहत 8 चीतों को उनके मूलस्थान नामीबिया से हवाई रास्ते से भारत लाया जाएगा और उन्हें मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बसाया जाएगा.
भारत में एशियाई चीते पाए जाते थे जोकि विलुप्त हो गए हैं. अब जो चीते लाए जा रहे हैं वह अफ्रीकी चीता हैं. रिसर्च से पता चला है कि इन दोनों प्रजातियों के जीन्स एक जैसे हैं. कूनो राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन चीतों की आवश्यक सुरक्षा और प्रबंधन की निगरानी करने के लिये जिम्मेदार होगा.
एशियाई चीतों के सिर और पैर छोटे होते हैं. उनकी चमड़ी और रोएं मोटे होते हैं. अफ्रीकी चीतों के मुकाबले उनकी गर्दन भी मोटी होती है. एशियाई चीते बहुत बड़े दायरे में बसर करते हैं. एक दौर था जब चीते भारत-पाकिस्तान और रूस के साथ-साथ मध्य-पूर्व के देशों में भी पाए जाते थे. लेकिन अब एशिया में सिर्फ ईरान में ही गिनती के चीते रह गए हैं. ईरान में महज 12 एशियाई चीते बचे हैं. पहले ईरान से भी भारत में चीतों को लाने की बातें हुई थीं लेकिन आगे बात बन नहीं पायी थी.
क्यों अहम है?
भारत में चीते सदियों से रहे हैं लेकिन 20वीं सदी में ये पूरी तरह खत्म हो गये थे. 1952 में भारत में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था. अब लंबे समय बाद एक बार फिर भारत में चीतों को पुर्नवासित किया जा रहा है. ऐसा पहली बार हो रहा है जब इतने बड़े किसी मांसाहारी जीव को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप ले जाया जा रहा है. इस लिहाज से चीतों की यात्रा काफी रोमांचक और जटिल होने वाली है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीतों के संरक्षण का एक अहम प्रोजेक्ट है.
चीता को वापस लाने के बाद भारत एकमात्र ऐसा देश बन जाएगा जहां ‘बिग कैट’ प्रजाति के पांचों सदस्य-बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ और चीता मौजूद होंगे.
यह जानकार आश्चर्य होगा कि दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में दुनिया के एक तिहाई (लगभग 7000) चीते पाए जाते हैं. वहीं अगर इन दो देशों के साथ बोत्सवाना का नाम जोड़ तो यहां दुनिया के आधे से ज्यादा चीतों का वास है.
एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में कैसे पहुंचेंगे चीते?
चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से हवाई रास्ते के द्वारा भारत लाया जायेगा. जोहांसबर्ग से दिल्ली तक की यात्रा कार्गो प्लेन से होगी, इसके बाद वे अपने नए घर यानी कि कूनो नेशनल पार्क सड़क के रास्ते या हेलिकॉप्टर द्वारा पहुंचेंगे. इस सफर के दौरान पशुचिकित्सक, वन्यजीव विशेषज्ञ के साथ-साथ अन्य एक्सपर्ट भी होंगे. चीतों को हल्का सा ट्रैंकोलाइजर देकर लाया जाएगा, ताकि वे यात्रा के दौरान शांत रहें.
एक्सपर्ट्स के अनुसार जंगली चीतों को ले जाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वे मनुष्यों की निकटता और कैद में होने से तनावग्रस्त हो जाते हैं.
चीता आम तौर पर हर तीन दिन में एक बार 15 किलो मांस खाता है. लेकिन इस लंबी यात्रा में उसे कुछ भी खाने-पीने को नहीं दिया जाएगा क्योंकि इससे जोखिम हो सकता है, वे उल्टी कर सकते हैं या सफर की वजह से बीमार पड़ सकते हैं. जो चीते भारत आने वाले हैं उनको यात्रा से दो दिन पहले से ही खाना देना बंद कर दिया जाएगा. चीतों को इंफेक्शन से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के इंजेक्शन लगाए गए हैं.
कूनो में कैसे ट्रैक करेंगे?
कूनो में चीते की बसावट चरणबद्ध तरीके से की जाएगी. चीते की पहली खेप को जीपीएस/जीएसएम या जीपीस/उपग्रह ट्रांसमीटर की व्यवस्था के साथ बाड़े में छोड़ा जायेगा. चीतों में जो माइक्रोचिप लगाई जाएगी, वह जीपीएस से ट्रैक होगी.
चुनौतियां क्या हैं?
चूंकि चीतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में लाया जा रहा है, ऐसे में कई तरह की चुनौतियां और समस्याएं देखने को मिल सकती हैं. जैसे कि पुनर्वासित कराई जा रहीं प्रजातियां अपने मूल जलवायु एवं पारिस्थितिक से एक नई जगह आएंगी, इसकी वजह से उन्हें नई परिस्थितियों के हिसाब से खुद को अनुकूल करना पड़ेगा. अफ्रीकी चीतों को दौड़ने के लिये लंबी खुली जगह की आवश्यकता होती है जबकि भारतीय उद्यान अफ्रीका के उद्यानों की तुलना में बहुत छोटे हैं, इससे उनको जगह की कमी की समस्या हो सकती है. अफ्रीका में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि मादा चीता अकेले रहती है और बहुत दूर तक घूमती रहती है, जबकि नर अपने छोटे क्षेत्रों की रक्षा करते हैं.
एक महत्त्वपूर्ण समस्या यह भी है कि बाड़े में रहने वाला और आहार के लिये मनुष्यों पर निर्भर रहने वाला कोई चीता वन्य क्षेत्र में मुक्त किये जाने पर क्या स्वयं शिकार कर सकने में सक्षम होगा?
अध्ययनों से पता चला है कि अफ्रीका में तेंदुओं ने चीतों का भी शिकार किया है और कूनो के लिये भी इसी तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है, जहां लगभग 50 तेंदुए उसी मूल क्षेत्र के आसपास रहते हैं. एक्सपर्ट्स के अनुसार चीता काफी नाजुक जानवर होता है, वे संघर्ष से बचते हैं लेकिन प्रतिस्पर्धी जानवरों के टारगेट में रहते हैं. कूनो में चीतों के शावकों को तेंदुओं का बड़ा खतरा हो सकता है, इसके अलावा उनका सामना लकड़बग्घा, भेड़ियों, भालू और जंगली कुत्तों से भी हो सकता हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार जानवरों का स्थानांतरण हमेशा जोखिम से भरा होता. वहीं अन्य बड़े मांसाहारियों की तुलना में चीतों को पुनर्वासित करने के बाद जीवित रहने की दर कम होती है.
चीतों के बारे में यह बातें भी जाननी चाहिए
चीतों के बच्चे बड़ी मुश्किल से बचते हैं, यही इस जानवर के विलुप्त होने की बड़ी वजह है. 2013 में अफ्रीका के क्गालागाडी पार्क में पाए जाने वाले चीतों पर रिसर्च से पता चला था कि इनके बच्चों के बचने की उम्मीद 36 फीसद तक ही होती है. चीतों के बच्चों के मरने के पीछे की अहम वजह शिकारी जानवर होते हैं.
सबसे तेज 100 मीटर का विश्व रिकॉर्ड 5.95 सेकेंड का है. जिसे 2012 में सिनसिनाटी चिड़ियाघर के एक 11 वर्षीय चीते ने बनाया था. इसकी तुलना में दुनिया सबसे तेज धावक उसैन बोल्ट ने अपना रिकॉर्ड बनाने के लिए लगभग दोगुना समय लिया था. चीता जब पूरी ताकत से दौड़ रहा होता है तब वह सात मीटर तक लंबी छलांग लगा सकता है. चीता 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं.
चीता सबसे तेज दौड़ तो सकता है लेकिन शेर और बाघ की तरह वो दहाड़ नहीं सकते हैं. चीते बिल्लियों की तरह गुर्राते हैं, फुफकारते हैं.
चीतों को रात में देखने में मुश्किल होती है. रात में चीतों की हालत इंसानों जैसी ही होती है. इसीलिए चीते या तो सुबह के समय या भी दोपहर के बाद शिकार करते हैं.
अन्य बिग कैट की तरह चीता पेड़ पर नहीं चढ़ सकता है.
अफ्रीके चीते का वैज्ञानिक नाम एसिनोनिक्स जुबेटस है. वहीं एशियाई चीते का नाम एसिनोनिक्स जुबेटस वेनेटिकस है.
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर ने चीतों को वल्नरेबल प्रजाति घोषित किया है और इसका नाम रेड लिस्ट में दर्ज है.
70 साल पहले भारत के जंगलों में चीतों की संख्या आधिकारिक तौर पर शून्य घोषित की गई थी.
कूनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य को 2018 में कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था. यहीं देश की पहली चीता सेंचुरी बनेगी.
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