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तेज तर्रार वित्त मंत्री से तिहाड़ तक-चिदंबरम की कहानी

73 वर्षीय पलानियप्पन चिदंबरम ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ेगा.

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देश के सबसे प्रभावशाली राजनेताओं में शुमार, एक ­­­समय प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में गिने जा रहे, और वित्त मंत्री के रूप में ‘आम आदमी के सपनों का बजट’ पेश करने के लिए लोकप्रिय और देश के गृह मंत्री भी रह चुके 73 वर्षीय पलानियप्पन चिदंबरम ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ेगा.

सीबीआई ने सीनियर एडवोकेट-राजनेता चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया मामले में मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों में 21 अगस्त को गिरफ्तार किया था और दो हफ्ते बाद तिहाड़ जेल भेजे जाने के साथ ही वह अपने करियर के सबसे कठिन और संकट के समय से गुजर रहे हैं. चिदंबरम को दिल्ली की एक कोर्ट ने 5 अगस्त को तिहाड़ जेल में भेजने का आदेश दिया.

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मुक्त कारोबार के पैरोकार चिदंबरम

मुक्त कारोबार और स्वच्छंद आर्थिक सुधारों के पैरोकार माने जाने वाले चिदंबरम 1960 के दशक में जब राजनीति में आये तो कट्टर वामपंथी की तरह सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर थे. मद्रास (अब चेन्नई) के एक प्रतिष्ठित उद्योगपति परिवार से आने वाले चिदंबरम ने पारिवारिक कारोबार के बजाय राजनीति में कदम रखा और 1967 में उस समय कांग्रेस में शामिल हुए जब यह राज्य में सत्ता से बाहर हो गयी थी. उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया.

राजीव गांधी के करीबी थे चिदंबरम

वह 1969 में उस समय इंदिरा गांधी के साथ बने रहे जब कांग्रेस में विभाजन हो गया था. 1984 में वह राजीव गांधी के करीबी बने और उनकी सरकार में वाणिज्य राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली. प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार में भी वह राज्यमंत्री रहे. तब उनके पास वाणिज्य और उद्योग मंत्रालयों की जिम्मेदारी थी. हालांकि पार्टी के कुछ फैसलों से मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड़कर 1996 में नया राजनीतिक दल बनाया.

एक साल बाद ही उन्हें 13 दलों के गठबंधन वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में वित्त मंत्री के नाते ‘ड्रीम बजट’ पेश करने के लिए जाना गया और उन्होंने भारत के कर आधार को व्यापक करने में भूमिका निभाई.

उनका यह बजट ऐसे समय में पेश किया गया जब गठबंधन सरकारों के दौर में आर्थिक सुधारों को गरीब-विरोधी के रूप में देखा जाता था. लेकिन चिदंबरम की तारीफ हुई.

हालांकि बाद में चिदंबरम कांग्रेस में लौट आए और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार में वित्त मंत्री की कमान संभाली. वह 2004 से 2008 तक वित्त मंत्री रहे और दिसंबर 2008 से जुलाई 2012 तक गृह मंत्री रहे. बाद में UPA-2 के बाकी कार्यकाल में वह वित्त मंत्री रहे.

‘गठबंधन की सरकार में पीएम पद के दावेदार’

कुछ साल पहले कांग्रेस में कुछ नेता उन्हें केंद्र में गठबंधन की सरकार बनने की स्थिति में प्रधानमंत्री पद का मजबूत दावेदार भी मान रहे थे. पिछले महीने अदालत में सीबीआई की ओर से दलील रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चिदंबरम ‘विद्वान’ हैं और उनमें अपने खिलाफ जांच में सहयोग नहीं करने की पूरी क्षमता है.

चिदंबरम को उन योजनाओं का श्रेय दिया जाता है जिनका उद्देश्य विकास में आ रही मंदी को थामना, बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाना और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अधिक विदेशी निवेश को आकर्षित करना था.

2019 में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला

वो 2014 में UPA-2 सरकार रहने तक केंद्रीय मंत्री रहे और उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु में अपनी परंपरागत लोकसभा सीट शिवगंगा से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. इससे पहले वह सात बार इस सीट पर जीत हासिल कर चुके थे.

2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद जांच एजेंसियों ने आईएनएक्स मीडिया, एयरसैल मैक्सिस और UPA-2 में चिदंबरम के वित्त मंत्री रहते हुए एयर इंडिया ने विमानों की खरीद समेत भ्रष्टाचार के मामलों में उन पर और उनके परिवार पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. राज्यसभा सदस्य चिदंबरम जब वित्त मंत्री थे, तब उनके लिए गये अनेक फैसलों पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहे हैं.

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