पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) से गुजरात आने वाले एक इकोनॉमिक कॉरिडोर के संबंध में चीन-पाकिस्तान के संयुक्त बयान को बुधवार, 9 फरवरी को भारत ने खारिज कर दिया है. भारत ने दोनों देशों से कहा कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें.
6 फरवरी को बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच एक मीटिंग हुई थी, जिसके बाद संयुक्त बयान जारी किया गया था. भारत ने इस पर तीन दिन बाद प्रतिक्रिया दी है.
चीन ने जम्मू-कश्मीर में किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध किया है.
बता दें कि 2019 में कश्मीर के विशेष दर्जे को भारत के द्वारा खत्म कर दिया गया था.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का एक अभिन्न अंग रहा है और रहेगा. हम उम्मीद करते हैं कि संबंधित पक्ष भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
हमने सीपीईसी को लेकर चीन-पाकिस्तान को लगातार चिंताओं से अवगत कराया है, जो भारत के क्षेत्र का हिस्सा है और पाकिस्तान ने उस पर अवैध कब्जा कर रखा है.विदेश मंत्रालय, भारत
चीन-पाकिस्तान संयुक्त बयान में जम्मू-कश्मीर और सीपीईसी के संदर्भों के बारे में की गई बात की ओर इशारा करते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि हमने हमेशा ऐसे संदर्भों को खारिज कर दिया है और हमारा स्टैंड चीन और पाकिस्तान को अच्छी तरह से पता है.
उन्होंने आगे कहा कि हम पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्रों की स्थिति को पाकिस्तान या किसी भी अन्य देश द्वारा बदलने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं.
चीन और पाकिस्तान के संयुक्त बयान में कहा गया था कि पाकिस्तानी ने चीन को जम्मू-कश्मीर के ताजा घटनाक्रम से अवगत कराया, जिसमें उसकी चिंताएं, स्थिति और दबाव वाले मुद्दे शामिल हैं.
बयान में कहा गया है कि चीन ने जवाब में कहा कि कश्मीर मुद्दा इतिहास से एक विवाद है और इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर, प्रासंगिक सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर शांति से हल किया जाना चाहिए.
रिपोर्ट्स के मुताबिक संयुक्त बयान में इमरान खान ने कहा था कि सीपीईसी ने पाकिस्तान के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और दोनों देशों ने क्षेत्रीय संपर्क में पाकिस्तान की भूमिका को मजबूत करने में गलियारे में शामिल परियोजनाओं के योगदान को स्वीकार किया था.
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