केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश कर दिया है. सोमवार को लोकसभा में इस विधेयक को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच जोरदार बहस हुई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर विपक्ष के ऐतराजों का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि अगर आप लोग इसे गलत साबित कर देंगे तो हम बिल वापस ले लेंगे.
अमित शाह ने कहा कि जिस तरह से हम भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर चिंतित हैं, उसी तरह पड़ोसी मुल्कों से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए भी हम प्रतिबद्ध हैं.
‘इस विधेयक से किसी के साथ नहीं होगा अन्याय’
इस विधेयक से लाखों लोगों को यातना से मुक्ति मिलेगी. वे सम्मान के साथ भारत के नागरिक बन पाएंगे. इस विधेयक से किसी के साथ भी अन्याय नहीं होगा. इस विधेयक से उन लोगों के साथ न्याय होगा, जो 70 साल से न्याय की राह देख रहे हैं.
अमित शाह ने कहा कि लाखों-करोड़ों लोग पड़ोसी मुल्कों से धकेल दिए गए. उन्होंने कहा, 'कोई भी व्यक्ति अपना देश यहां तक कि गांव भी यूं ही नहीं छोड़ता. कितने अपमानित हुए होंगे, तब जाकर वे यहां आए. इतने सालों से रहने वाले लोगों को यहां न शिक्षा, न रोजगार, न नागरिकता और न ही अन्य कोई सुविधा है. इस विधेयक से लाखों लोगों को नारकीय यातना से मुक्त मिल जाएगी.'
‘अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है बीजेपी’
अमित शाह ने कहा कि इस विधेयक के पीछे कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है. उन्होंने कहा कि हर पार्टी चुनावों में अपना घोषणा पत्र पेश करती है और घोषणा जनता की अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है.
‘जो लोग विधेयक का विरोध कर रहे हैं, अल्पसंख्यक तो उनका एजेंडा है. वो मानते हैं कि अल्पसंख्यकों को विशेष व्यवस्था मिलनी चाहिए...तो क्या बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को विशेष व्यवस्था नहीं मिलनी चाहिए...कौन भेदभाव कर रहा है? मैं तो भेदभाव नहीं कर रहा. हम अल्पसंख्यकों को ही अधिकार दे रहे हैं, लेकिन वे अल्पसंख्यक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हैं.’
अमित शाह ने कहा, ‘इस विधेयक के पीछे कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है. ये एक संवैधानिक प्रक्रिया है. हर राजनीतिक दल अपनी विचारधारा को आगे रखकर चुनाव लड़ता है. पार्टी के घोषणा पत्र के आधार पर चुनाव लड़ना है, जो इस देश की जनता की अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है. घोषणा पत्र चुनावी एजेंडा नहीं होता है वो देश की जनता का प्रतिबिंब होता है.’
अमित शाह ने कहा, ‘बीजेपी ने 2014 और 2019 दोनों चुनावों में अपने घोषणा पत्र में बीजेपी ने कहा था कि हम अपने पड़ोसी मुल्कों में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.’
'हमें शरणार्थियों में से ही मिले मनमोहन और आडवाणी'
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता को लेकर इस तरह के कानून पहले भी बने हैं. शाह ने कहा, 'आज इस विधेयक का कई सदस्यों ने विरोध किया. उनका कहना है कि सरकार ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि इससे संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन होता है. मैं बताना चाहता हूं कि इस देश में ऐसा बहुत बार हुआ है और जो लोग आज विरोध कर रहे हैं उनके ही शासन में हुआ है. उन्होंने ही किया है, अगर वे अपनी सरकारों के कामों को ढंग से पढ़ लेते तो शायद न बोलते.'
सन 1947 में जितने भी शरणार्थी आए, सबको भारत के संविधान ने स्वीकार कर लिया. शायद ही देश का कोई ऐसा गांव होगा, जहां पूर्व और पश्चिमी पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थी न रहते हों. कई लोग इस देश में बड़े-बड़े पदों पर भी बैठे. मनमोहन सिंह जी भी उसी कैटेगरी में आते हैं और लाल कृष्ण आडवाणी भी उसी कैटेगरी में आते हैं. हमने उनको स्वीकार किया था, उन्हें नागरिकता दी थी, तभी तो वे देश के उप प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री बन पाए. इस देश की विकास यात्रा में अपना योगदान दिया.अमित शाह, गृह मंत्री
अमित शाह ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘इसके बाद 1971 में भी ऐसे ही प्रावधान लागू किए थे, फिर अब इस तरह के ही विधेयक का विरोध क्यों किया जा रहा है? 1971 में जब इंदिरा गांधी ने दखल दिया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. उस दौरान हमने लाखों लोगों को शरण दी. युगांडा, श्रीलंका से आए लोगों को भी हमने शरण दी. फिर अब इस पर क्या आपत्ति है?’
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