गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानी NRC को पूरे देश में लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि NRC से किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं है. साथ ही अमित शाह ने धर्म के आधार पर एनआरसी में भेदभाव किए जाने की आशंका को भी खारिज कर दिया.
वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य सैयद नासिर हुसैन के एक सवाल के जवाब में शाह ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट एनआरसी की प्रक्रिया की निगरानी करता है. एनआरसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें ऐसा कहा जाए कि इसमें दूसरे धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा. ये पूरे देश में लागू किया जाएगा और किसी को भी इससे डरने की जरूरत नहीं है."
सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल में है क्या?
केंद्रीय गृहमंत्री बता चुके हैं कि जिन हिंदू, बुद्ध, सिख, जैन, ईसाई, पारसी लोगों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर भेदभाव का शिकार होना पड़ा था, सिटिजन अमेंडमेंट बिल से ऐसे ही शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलेगी.
यानी सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल जिन शरणार्थियों को देश की नागरिकता देने की बात करता है, उनमें मुसलमान शामिल नहीं हैं. और यही बात इस बिल के ईर्द-गिर्द चिंता का एक मकड़जाल बुनती है. मुस्लिम समुदाय की चिंताएं क्या हैं, क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन का कहना है कि मुस्लिम समुदाय की दो अहम दिक्कतें हैं-
पहली दिक्कत ये कि जिस तरह अमित शाह के बयान में मुस्लिमों को छोड़कर बाकी सारे धर्म का जिक्र है कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इससे मुस्लिम समुदाय में एक धारणा बनती है कि सरकार को एक कौम से दिक्कत है या मतभेद है. आदित्य मेनन कहते हैं, दूसरी दिक्कत एनआरसी से जुड़ी हुई है. एनआरसी में कई ऐसे लोगों के नाम नहीं हैं जो हिंदू, मुस्लिम या बौद्ध समुदाय से आते हैं. अब सिटिजन अमेंडमेंट बिल के बाद जो बौद्ध और हिंदू हैं उन्हें नागरिकता देने का रास्ता साफ हो जाएगा. ऐसे में एनआरसी से जिसको नुकसान हुआ है वो सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम ही रह जाएंगे.
पूर्वोत्तर में भी हो रहा है विरोध
सिर्फ मुस्लिम समुदाय में ही नहीं, इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में भी खलबली है. इस साल की शुरुआत में जब ये बिल राज्यसभा में पेश हुआ था, तो पूर्वोत्तर के कई राज्यों में जोरदार प्रदर्शन हुए थे. आरोप लग रहे हैं कि इसे लागू किए जाने के बाद असम में जो NRC लाया गया था, वो पूरा कॉन्सेप्ट ही खत्म हो जाएगा. स्थानीय लोगों की आपत्ति ये है कि इससे कई इलाकों में बाहर से आए लोगों का दबदबा बढ़ जाएगा. स्थानीय भाषा, संस्कृति, जमीन को नुकसान पहुंचेगा और रोजगार के अवसर स्थानीय लोगों के लिए कम हो जाएंगे. बता दें कि सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल में सिटिजनशिप एक्ट 1955 में संशोधन किया गया है. इस एक्ट के मुताबिक, भारत नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदक के लिए ये नियम जरूरी है-
आवेदक पिछले 12 महीनों से भारत में ही रह रहा हो, साथ ही आवेदक का पिछले 14 साल में 11 साल तक भारत में रहना जरूरी है. लेकिन अब अमेंडमेंट में इन तीन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए इस 11 साल के समय को घटाकर 6 साल कर दिया गया है.
पिछली लोकसभा में लाया गया था बिल
सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल को जनवरी 2019 में लोकसभा में पास कर दिया गया था, लेकिन राज्यसभा में यह पास नहीं हो सका था. इसके बाद लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल रद्द हो गया. अब एक बार फिर मोदी सरकार ये बिल तो ला रही है...लेकिन NRC की ही तरह सवाल, चिंताएं और आशंकाएं बनी हुईं हैं.
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