27 अप्रैल, 2017, द क्विंट में प्रकाशित खबर "नमामि गंगे प्रोजेक्ट फेल? आंकड़ों की जुबानी गंगा सफाई की कहानी" एवं संबंधित वीडियो के संदर्भ में स्पष्टीकरण
उपरोक्त खबर में यह कहा गया है कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है. खबर में यह भी उल्लेख किया गया है कि 20 हजार करोड़ में से सिर्फ कुछ लाख रुपए ही खर्च किए जा चुके हैं. यह आंकड़े सही नहीं हैं. "नमामि गंगे" प्रोजेक्ट को मई 13, 2015 को कैबिनेट द्वारा स्वीकृति प्राप्त हुई थी. गत दो वर्षों में यानि 2015-16 एवं 2016-17 में NMCG द्वारा नमामि गंगे योजना के अंतर्गत 1665.41 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं जबकि इसके पहले के चार वर्ष में NMCG द्वारा मात्र 625.88 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे.
किसी भी प्रोजेक्ट की सफलता के लिए यह जरूरी होता है कि उसकी योजना ठीक से बनाई जाए. योजना बनाने के दौरान प्रोजेक्ट पर खर्च कम होता है. कार्यान्वयन के प्रारंभिक दौर में भी खर्च कम होता है जो आगे चलकर गति पकड़ता है. गंगा के किनारों के शहरों के लिए योजना तैयार कर ली गई है. शहरों से निकलने वाले सीवेज के ट्रीटमेंट के लिए 21 शहरों में कार्य प्रगति पर है, 8 शहरों के लिए निविदा की प्रक्रिया में है और 6 शहरों के लिए हाल ही में प्रोजेक्ट मंजूर किए गए हैं. 21 शहरों के लिए प्रोजेक्ट की मंजूरी शीघ्र ही दी जाएगी.
वीडियो में यह भी कहा गया है कि किसी भी घाट/ श्मशान घाट का कार्य आरंभ नहीं हुआ है. यह तथ्य आधारित नहीं है. 50 घाट एवं 15 श्मशान घाट का कार्य प्रगति पर है. 42 घाट एवं 31 श्मशान घाट के लिए संबंधित ठेकेदार को कार्य आदेश दे दिए गए हैं और कार्य शीघ्र प्रारंभ होगा. 90 घाट एवं 72 श्मशान घाट निविदा की प्रक्रिया में हैं. कुछ राज्यों में घाट एवं श्मशान घाट के निर्माण में विलंब होने का कारण था संबंधित राज्यों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) का न मिलना.
नमामि गंगे के कार्य को और तेजी से चलाने के लिए NMCG को एक सक्षम अथॉरिटी के रूप में पुनर्गठित किया गया है और इसे प्रोजेक्ट मंजूरी के लिए पर्याप्त अधिकार दे दिए गए हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)