ADVERTISEMENTREMOVE AD

भीषण गर्मी से मरने वालों की संख्या बढ़ रही, नहीं संभले तो देर हो जाएगी

जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के 13 प्रतिशत जिले और 15 प्रतिशत आबादी हीटवेव की चपेट में है.

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female
  • भारत में गर्मी के कहर वाले दिनों यानी हीटवेव (Heat Wave) की संख्या पिछले कुछ दशकों से लगातार बढ़ रही है. जैसा कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अध्ययन का कहना है. यह इस बात का संकेत है कि ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) ने तापमान को बहुत अधिक बढ़ाया है.

  • वैज्ञानिकों का कहना है कि भूमि के इस्तेमाल में बदलाव, क्रंकीट का बढ़ना, और स्थानीय मौसम की स्थितियों के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन वह सबसे बड़ा कारण है जिसके चलते गर्मी काफी बढ़ी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
  • बर्दाश्त न कर सकने लायक गर्मी सार्वजनिक स्वास्थ्य का मसला बन गया है. बाहर काम करने वाले लोगों को अपने काम का समय बदलना पड़ रहा है और कई जगहों पर हीट एक्शन प्लान बनाए जा रहे हैं.

देश के कई हिस्सों में अभी से गर्मी को सहन करना मुश्किल हो रहा है. दिल्ली से सटे नोएडा में रिक्शा चलाने वाले सुनील दास का कहना है, “सुबह 10 बजे के बाद काम करना बिल्कुल मुमकिन नहीं है.” दिल्ली में मार्च में गर्मी का कहर देखने को मिला है. मौसम विभाग आधिकारिक रूप से जब गर्मी का मौसम घोषित करता है, यह उससे एक महीने पहले का हाल है.

0

जला कर रख देने वाली गर्मी के चलते सुनील दास जैसे लोगों को अपने काम का समय ही बदलना पड़ रहा है. वह कहते हैं, “मैं सुबह दस बजे के बाद घर चला जाता हूं और शाम को रिक्शा चलाने निकलता हूं, जब गर्मी थोड़ी कम हो जाती है. इसके चलते कमाई कम हो रही है पर इसके अलावा दूसरा चारा भी क्या है?”

इस साल मार्च महीना 122 सालों में सबसे गर्म रहा. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (मेट विभाग या आईएमडी) ने तभी से रिकॉर्ड रखने शुरू किए हैं.

पिछले साल, यानी 2021 के मार्च महीने में भी भीषण गर्मी थी, और वह साल तीसरा सबसे गर्म साल था. वैज्ञानिकों ने कहा कि बसंत का मौसम कम समय रहा है और फिर गर्मियां आ गईं. इसका कारण स्थानीय मौसम की स्थिति तो है ही, इसके अलावा वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का इकट्ठा होना भी इसकी वजह है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश में मार्च के महीने औसत तापमान 33.10 डिग्री सेल्सियस रहा और मार्च में ही गर्मियों की शुरुआत हो गई. पर यह प्रवृत्ति तो एक परंपरा सरीखी बन गई है. मौसम कार्यालय का कहना है कि इसकी वजह यह भी है कि इस महीने बारिश बहुत कम हुई. भारत में बारिश 72 प्रतिशत कम हुई और देश के उत्तर पश्चिमी इलाके में तो बारिश सामान्य से 89 प्रतिशत कम रही.

जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के 13 प्रतिशत जिले और 15 प्रतिशत आबादी हीटवेव की चपेट में है.

मथुरा में गर्मी से खुद और बच्चे को बचाने के लिए कपड़ा ओढ़े महिला

(फोटो: PTI)

पिछले कई दशकों के दौरान पूरे भारत में गर्मियों के मौसम में तापमान बढ़ रहा है. अप्रैल और जून के बीच देश में गर्मी के कहर वाले दिनों की बढ़ती संख्या से यह साफ जाहिर होता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बढ़ रही है भीषण गर्मी

मौसम विभाग के एक अध्ययन से पता चलता है कि हर 10 साल में भारत में गर्मी के कहर वाले दिनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 103 मौसम स्टेशनों के अध्ययनों के अनुसार, ऐसे दिनों की संख्या लगातार बढ़ रही है जब बहुत ज्यादा गर्मी थी. यह संख्या 1981-90 में 413 थी, 2001-10 में 575 और 2011-20 में 600.

इन मौसम स्टेशनों पर 2010 से अध्ययन किया जा रहा है और यह उन्हीं का अपडेट है. इसे अब तक छापा नहीं गया है. इस अध्ययन से यह भी मालूम चलता है कि 103 मौसम स्टेशनों में से अधिकांश ने 1961-2010 की अवधि में अप्रैल और जून के बीच हीटवेव फ्रीक्वेंसी में बढ़ोतरी दर्ज की है. यानी इन तीन महीनों के दौरान बार-बार हीटवेव आती है, और हर साल हीटवेव ज्यादा बार आती है.

जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के 13 प्रतिशत जिले और 15 प्रतिशत आबादी हीटवेव की चपेट में है.

1969 और 2019 के बीच पूरे भारत में वार्षिक हीटवेव दिन

(फोटो: IMD)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोट्टयम के इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट चेंज स्टडीज़ के डायरेक्टर डी.सी.पई का कहना है, “इसकी मुख्य वजह तो जलवायु परिवर्तन है. लेकिन तापमान में इस बदलाव की एक वजह स्थानीय मौसम का मिजाज़ भी होता है. साथ ही, क्रंकीट के जंगलों का बढ़ाना, जंगलों की कटाई और जमीन के इस्तेमाल में बदलाव के चलते भी गर्मी बढ़ रही है.” पई आईएमडी पुणे में क्लाइमेट साइंटिस्ट रह चुके हैं और इस अध्ययन की शुरुआत से उससे जुड़े रहे हैं.

पई का कहना, ज्यादातर अंतर्देशीय क्षेत्रों यानी इनलैंड रीजन्स में अप्रैल से जून के तीन महीनों में औसतन आठ से ज्यादा दिन हीटवेव वाले रहे, और 1961 से शुरू होने वाले तीन दशकों की तुलना में 1991 और 2020 के बीच प्रभावित क्षेत्रों में वृद्धि हुई, जोकि स्थान विशेष पर आधारित था.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोर हीटवेव जोन में भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर, उत्तर पश्चिमी, मध्य, पूर्व और उत्तर पूर्व क्षेत्र आते हैं. अध्ययन में कहा गया है कि इन जोन्स के अधिकतर इलाकों में मई के महीने में प्रचंड गर्मी भरे दिन दर्ज किए गए.

भारत का मौसम विभाग हीटवेव तब घोषित करता है जब अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस और सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री अधिक होता है. जब तापमान सामान्य से 6.5 डिग्री या उससे अधिक होता है तो ब्यूरो हीटवेव को गंभीर बताता है.

प्राइवेट फोरकास्टर स्काइमेट वेदर सर्विसेज़ के मीटीअरालजी और क्लाइमेट चेंज के वाइस प्रेज़िडेंट महेश पालावत का कहना है, “इसमें कोई शक नहीं कि तेज गर्मी के दिन बढ़ रहे हैं. इसकी बड़ी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है, हालांकि कई दूसरी वजहों से भी ऐसा हो रहा है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हिमालय में भयंकर गर्मी

मार्च में जबरदस्त गर्मी ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों को भी नहीं बख्शा, जहां आम तौर पर इस दौरान तापमान ठंडा रहता है, महेश पालावत का कहना है, जोकि इस बात का संकेत है कि पूरे देश में तापमान बढ़ रहा है.

पई का कहना है कि यह आईएमडी के अध्ययन से भी पता चला है कि पिछले तीन दशकों में पर्वतीय क्षेत्र में शीत लहर के दिन कम हुए हैं. “पिछले तीन दशक देश और विश्व स्तर पर सबसे गर्म रहे हैं," वह कहते हैं, "तापमान का बहुत ज्यादा होना, ग्लोबल वार्मिंग की एक प्रमुख विशेषता है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आईएमडी रिसर्च में मार्च के तापमान को शामिल नहीं किया जाता, जैसे इस साल जनवरी में जारी उसकी क्लाइमेट हैज़ार्ड्स एंड वर्नेबिलिटी एटलस ऑफ इंडिया में कहा गया था. एलटस में अप्रैल, मई, जून और जुलाई की हीटवेव के दिनों को शामिल किया गया था. इसमें कहा गया है कि भारत के कोर हीटवेव जोन के भीतर पश्चिमी राजस्थान, आंध्र प्रदेश और ओड़िशा 1961 और 2020 के बीच सबसे अधिक प्रभावित हुए. एलटस में कहा गया है कि भारत में 13 प्रतिशत जिले और 15 प्रतिशत आबादी हीटवेव की चपेट में है.

महेश पलावत का कहना है, “जलवायु परिवर्तन और औसत तापमान में बढ़ोतरी के बीच में निश्चित रूप से संबंध है जोकि हीटवेव्स के असर को बदतर कर रहा है.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया के हर क्षेत्र में मौसम और जलवायु को चरम सीमा तक पहुंचा रहा है, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की लैंडमार्क कोड रेड रिपोर्ट में कहा गया है. इस रिपोर्ट को अगस्त 2021 में जारी किया गया था. संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विशेषज्ञों के एक समूह की रिपोर्ट में पाया गया है कि अगले 20 वर्षों में विश्व तापमान में गर्मी 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बढ़ने की उम्मीद है.

विश्व औसत में अंटार्कटिका जैसे इलाके शामिल हैं और पूरे भारत के लिहाज से यह सही साबित नहीं होता, क्योंकि यहां का औसत तापमान और भी तेजी से और बहुत ज्यादा बढ़ा है. आईपीसीसी रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत लगातार और तेज गर्मी की लहरों का सामना करेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रिपोर्ट में दक्षिण एशिया के बारे में कहा गया है कि “21 वीं शताब्दी के दौरान हीटवेव और उमस भरी गर्मियां बहुत ज्यादा और लगातार झेलनी पड़ेंगी.” दक्षिण एशिया में भारत भी शामिल है. मेट विभाग जो रिकॉर्ड रखता है, उससे यह बात सही साबित होती है और पहले के अध्ययन में भी यही बात कही जा चुकी है.

हीट स्ट्रेस यानी गर्मियों का तनाव

यह साफ बात है कि बहुत ज्यादा गर्मी का असर गरीब और हाशिए पर मौजूद लोगों पर ज्यादा होता है. भारत में ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है. इसके अलावा भारत की श्रमशील आयु वाले करीब आधे लोग किसानी का काम करते हैं. जाहिर सी बात है, खेतों में लोगों को गर्मियों में भी लंबे घंटों तक काम करना पड़ता है.

इसके अलावा देश का दूसरा सबसे बड़ा रोजगार क्षेत्र निर्माण है, और रिक्शा चालक सुनील दास जैसे लोगों की भी बहुत बड़ी संख्या है. ऐसे सभी लोग किसी चारदीवारी के भीतर नहीं, बाहर रहकर काम करते हैं और उन्हें भयंकर गर्मी झेलनी पड़ती है. इसी से साफ हो जाता है कि भारत के सामने कितनी बड़ी समस्या मुंह बाये खड़ी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

1960 और 2009 के दौरान भारत का औसत तापमान 0.5 डिग्री से ज्यादा बढ़ा है. 2017 के इंक्रीजिंग प्रोबेबिलिटी ऑफ मॉरटैलिटी ड्यूरिंग इंडियन हीट वेव्स का कहना है कि गर्मी से लोगों के मरने की घटनाओं की आशंका 146 प्रतिशत तक बढ़ गई है, यानी एक बार में 100 से ज्यादा मौतें.

स्टडी में अनुमान लगाया है कि “अगर कमजोर वर्गों की सहनशीलता में सुधार करने के उपयुक्त उपाय नहीं किए गए तो तापमान में मामूली इजाफे, जैसे 0.5 डिग्री सेल्सियस का बढ़ना, से भी मृत्यु दर में काफी बढ़ोतरी हो सकती है.”

जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के 13 प्रतिशत जिले और 15 प्रतिशत आबादी हीटवेव की चपेट में है.

केरल में निर्माण कार्य में जुटे श्रमिक. कई भारतीयों को अपने काम की वजह से गर्मियों में लंबे समय तक बाहर रहना पड़ता है

(फोटो: Arkarjun/Wikimedia Commons)

2010 में हीटवेव के कारण अकेले अहमदाबाद में 1,300 लोग मौत का शिकार हो गए थे, जिसके कारण हीट ऐक्शन प्लान्स बनाने की कोशिशें शुरू की गईं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पांच-छह साल पहले शुरू किए गए प्रयासों के बाद से देश के कई शहरों और इलाकों में क्षेत्रीय कार्य योजनाएं तैयार और लागू की गईं जिससे आम लोगों, खासकर तौर से बाहर काम करने वालों को गर्मी का कहर कुछ कम झेलना पड़े.

पई कहते हैं, “आखिरी विकल्प यह है कि हम जलवायु संकट को काबू में करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकें.”

“लेकिन जब तक आखिरी रास्ता निकले, यह जरूरी है कि हीटवेव्स की आशंका वाले क्षेत्रों में हीट ऐक्शन प्लान्स शुरू किए जाएं. इस संबंध में आईएमडी जिला और शहरी प्रशासन के साथ काम कर रहा है.”

महेश पालावत कहते हैं, गर्मी में तापमान के बढ़ने और उसके बाद की हीटवेव को कम करना तुरंत जरूरी है. इसके लिए दो स्तरों पर काम करना होगा. अल्पकालिक उपाय यह है कि इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए जाएं. दीर्घकालिक उपाय वनीकरण है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(यह आर्टिकल मूल रूप से Mongabay-India पर प्रकाशित हुआ है. इसे अनुमति के साथ यहां दोबारा छापा जा रहा है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×