ADVERTISEMENTREMOVE AD

CUET: असमानता मिटा देगा या नई समस्याओं को जन्म देगा?

जहां कई लोग यूजीसी के इस फैसले से सहमत हैं, वहीं कुछ शिक्षकों का मानना है कि ये नई तरह की दिक्कतों को पैदा करेगा.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

अब देश के सेंट्रल यूनिवर्सिटी के सभी अंडर ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) अनिवार्य हो गया है. UGC की इस घोषणा के बाद माना जा रहा है कि इससे असमानता मिटेगी, देशभर के छात्रों को बराबरी और समान अवसर मिलेगा. कई विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के फैसले से सहमत हैं, तो कुछ शिक्षक और प्रोफेसर सोचते हैं कि यह नए समस्याओं को जन्म देगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कई शिक्षक सोचते हैं कि क्लास 12 के छात्रों पर बोर्ड परीक्षा का दबाव काफी कम हो जाएगा. जबकि कुछ का मानना ​​है कि एक और परीक्षा से छात्रों में तनाव बढ़ जाएगा. CUET की एक और आलोचना यह है कि यह एक नए कोचिंग एकोसिस्टम को जन्म देगा, जिसके परिणामस्वरूप फिर से असमानता होगी.

वित्तीय बोझ पर अलग-अलग राय

यह बताते हुए कि CUET को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में क्यों लागू किया जा रहा है, UGC अध्यक्ष ममिडला जगदेश कुमार ने कहा कि इससे छात्रों पर वित्तीय तनाव कम होगा क्योंकि उन्हें कई प्रवेश परीक्षाओं में नहीं बैठना पड़ेगा. द क्विंट से बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एन सुकुमार, कहते हैं कि हर नीति के अपने फायदे और नुकसान हैं. यह सच है कि छात्रों को कई टेस्ट एग्जाम में नहीं बैठना होगा, जिससे वित्तीय बोझ कम होगा. CUET से हाशिए के पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए आसान हो जाएगा.

हालांकि, डीयू के इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर जितेंद्र मीणा का कहना है, इस प्रवेश परीक्षा के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए कोचिंग संस्थान आगे आएंगी, और इससे छात्रों और उनके परिवारों पर अधिक वित्तीय बोझ पड़ेगा.

सभी बोर्डों के छात्र समान रूप से लाभान्वित नहीं हो सकते हैं

पिछले कुछ सालों में, यह तर्क दिया गया है कि कुछ राज्य के बोर्ड के छात्रों को कॉलेजों में दूसरों की तुलना में ज्यादा आसानी से एडमिशन मिलता है क्योंकि कुछ बोर्ड दूसरों की तुलना में ज्यादा उदार होते हैं.

प्रोफेसर सुकुमार ने कहा कि केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों की बात करें तो पहले से ही एक हायरार्की (वर्गीकरण) है. "इससे ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां सीयूईटी में बैठने वालों को 'अधिक योग्यता' दी जाएगी. फिर से, छात्रों के साथ अलग-अलग बर्ताव शुरू हो जाएगा." उन्होंने आगे कहा कि सभी राज्यों के छात्रों को समान रूप से फायदा नहीं हो सकता है;

"बेहतर एजुकेशनल फैसलिटीज वाले राज्यों के स्टूडेंट पॉलिसी का फायदा उठा सकेंगे, और जो राज्य अभी भी अपनी एजुकेशनल फैसलिटीज और बुनियादी ढांचे का विकास कर रहे हैं, वे पीछे रह जाएंगे."

इंडिया वाइड पेरेंट्स एसोसिएशन की मुंबई स्थित अध्यक्ष अनुभा श्रीवास्तव सहाय ने कहा कि महाराष्ट्र जैसे बोर्ड के छात्रों को नुकसान होगा क्योंकि उनके पास समान पाठ्यक्रम नहीं है. उन्होंने कहा, "ज्यादातर सीबीएसई छात्र इसके साथ ठीक हैं क्योंकि परीक्षा एनसीईआरटी की किताबों पर आधारित होगी. राज्य बोर्ड के स्कूलों के छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा. यह समस्या होगी जब तक कि वे एक प्रश्न बैंक जारी नहीं करते."

एकेडमिक फ्रीडम का क्या होगा?

प्रोफेसर जितेंद्र मीणा का कहना है कि ज्यादातर यूनिवर्सिटी ऑटोनोमस हैं और उनका अपना एडमिशन प्रोसेस है. कुछ खास कोर्स के लिए इंटरव्यू कराए जाते हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा, "झारखंड यूनिवर्सिटी जनजातीय अध्ययन (Tribal Studies) पर एक खास कोर्स कराता है. कोई एक टेस्ट कैसे निर्धारित कर सकता है कि कोर्स में किसे एडमिशन दिया जाना है? यह अनिवार्य रूप से अकादमिक स्वतंत्रता (एकेडमिक फ्रीडम) पर हमला है."

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) जैसे अल्पसंख्यक संस्थानों ने पहले कहा था कि वे CUET में शामिल नहीं होंगे क्योंकि उनकी अल्पसंख्यक स्टेटस कोर्ट में विचाराधीन है. संविधान का आर्टिकल 30 अल्पसंख्यकों को उनकी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार देता है.

एंट्रेंस टेस्ट के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए एएमयू के इतिहास विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर सना अजीज कहती हैं कि जामिया मिलिया इस्लामिया और एएमयू जैसे अल्पसंख्यक संस्थान यथास्थिति (status quo) पर बने रहने की उम्मीद करते हैं. अब तक, एएमयू में सब्जेक्टिव और ऑब्जेक्टिव दोनों सेक्शन के साथ एक एंट्रेस एग्जाम होता है.

सोशल साइंस सबजेक्टिविटी पर आधारित है. कॉमन एंट्रेंस टेस्ट में ऑब्जेक्टिव सवाल होंगे. टेस्ट को लागू करके, सबजेक्टिव बात को ऑबजेक्विट तक सीमित किया जा रहा है. हाल के सालों में, मैंने देखा है कि छात्रों के लेखन स्तर में गिरावट आई है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि इसे कैसे लागू किया जाएगा और जिन छात्रों के पास टेक्नोलॉजी तक पहुंच नहीं है, वे एग्जाम में बैठ पाएंगे या नहीं.

क्या CUET छात्रों, शिक्षकों की कोशिशों की अवहेलना करेगा?

नई प्रणाली छात्रों के बोर्ड परीक्षाओं में उनके प्रदर्शन को नजरअंदाज कर देगी क्योंकि एडमिशन पूरी तरह से CUET पर निर्भर होगा.

डीयू के मिरांडा हाउस में फिजिक्स की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा कि यह छात्रों की कड़ी मेहनत की अवहेलना करेगा जो उन्होंने बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए लगाई थी.

जब छात्र बोर्ड परीक्षाओं की ओर काम कर रहे होते हैं, तो स्कूल भी कोशिश करते हैं. छात्रों को निर्देशित किया जाता है, इंटरनल एग्जाम होते हैं, प्रैक्टिकल एग्जाम होते हैं. अगर देश में क्लास XI और XII की अवहेलना की जाती है, तो आप देखेंगे कि आगे चलकर स्कूल की अहमियत कम हो जाएगी.

डीएलएफ फाउंडेशन स्कूलों की चेयरपर्सन अमीता मुल्ला वट्टल ने कहा कि CUET से स्कूलों और छात्रों के जीवन में उनकी भूमिका पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अमिका के मुताबिक, "स्कूल एक ब्रह्मांड है और एक ब्रह्मांड कभी भी अपना महत्व नहीं खो सकता है. यह मानवतावाद के बारे में है, यह प्रसनालिटी डेवेल्पमेंट और ग्रोथ के बारे में है."

छात्रों के लिए अधिक तनाव?

GEMS मॉडर्न एकेडमी, गुरुग्राम की एग्जिक्यूटिव प्रिंसिपल नीति भल्ला ने कहा कि यह अच्छा है कि छात्रों पर परीक्षा देने और परीक्षा लिखने का दबाव कम होता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि एक अतिरिक्त परीक्षा अब छात्रों पर बोझ बढ़ाएगी. उन्होंने कहा कि आदर्श रूप से बोर्ड के परिणामों को कुछ महत्व दिया जाना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भल्ला ने कहा कि जो लोग विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने की तैयारी कर रहे हैं, वे भ्रमित हो जाएंगे. भल्ला के मुताबिक, "वे बोर्ड के लिए तैयारी करेंगे क्योंकि कई विदेशी विश्वविद्यालय बोर्ड के परिणामों को देखते हैं, लेकिन उन्हें CUET के लिए तैयारी भी करनी होगी."

जितेंद्र मीणा ने भी इसी तरह का मुद्दा उठाया है, उन्होंने कहा,

“यह उन छात्रों पर अधिक बोझ डालेगा जो दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे जेईई (Joint Entrance Exam) की तैयारी कर रहे हैं. अगर वे पास नहीं होते हैं, तो वे अपने बोर्ड के परिणामों पर वापस आ सकते हैं, लेकिन अब उन्हीं छात्रों को एक साथ दो परीक्षाओं की तैयारी करनी होगी.”

इस बीच, पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रमुख सहाय ने कहा कि राज्य बोर्डों के छात्रों को दोगुना दबाव का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनके कोर्स बहुत अलग हैं. उसके ऊपर, जिन छात्रों को अभी-अभी परीक्षा के बारे में पता चला है, उनके पास तैयारी के लिए कुछ ही महीने होंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
प्रोफेसर आभा ने कहा कि करेंट क्लास XII बैच अभी दसवीं में है. जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई, तब बच्चों को एक अलग तरह के दबाव का सामना करना पड़ा.

इसका अच्छा पहलू ये है कि स्टूडेंट्स जो ऐसे बोर्ड्स से जो बहुत नरमी से नंबर नहीं देते, उन्हें उन स्टूडेंट्स के बराबर का एक प्लेटफॉर्म मिल पाएगा, जो उन बोर्ड्स से आते हैं, जो नरमी से मार्किंग करते हैं.

ऑल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन के दिल्ली प्रेसिडेंट सत्य प्रकाश, जिनकी बेटी दिल्ली सरकार के एक स्कूल में पढ़ती है, उन्होंने कहा, सरकारी स्कूल के स्टूडेंट्स जिनके सामने पहले कई तरह की बाधाएं थीं, अब उनके पास मौका है कि वो अपने पसंदीदा कॉलेज में एडमिशन ले सकते हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×