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अब हिंदी में कॉम्पिटिटिव एग्जाम देने वालों की होड़, 3 साल में 69% बढ़ोतरी

केंद्रीय मंत्री Amit Shah ने दी थी सलाह- अलग-अलग राज्यों के लोग अंग्रेजी नहीं, हिंदी में करें बात

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नीट (NEET) परीक्षा के लिए हिंदी भाषा चुनने वाले उम्मीदवारों की संख्या में तेज बढ़ोतरी देखने को मिली है. साल 2017 और 2020 के बीच 69 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.

इस हफ्ते की शुरुआत में गृह मंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि "अब समय आ गया है कि राजभाषा को देश की एकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए. जब दूसरी भाषा बोलने वाले राज्यों के नागरिक एक-दूसरे से संवाद करते हैं, तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए."

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बाद में जब विपक्ष ने अमित शाह की इस टिप्पणी को लेकर सरकार पर निशाना साधा तो गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में हिंदी को स्वीकार किया जाना चाहिए.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने अब हिंदी को लेकर एक विश्लेषण किया है. बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक समय के साथ हिंदी का प्रचलन बढ़ गया है.

साल 2017 में, सरकार ने देश भर में क्षेत्रीय भाषाओं में मेडिकल में एडमिशन के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) की अनुमति दी थी. जिसके बाद देखा गया है कि हिंदी मीडियम चुनने वाले छात्रों की संख्या अंग्रेजी चुनने वालों की तुलना में तेजी से बढ़ी है.

2017 और 2020 के बीच NEET डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि परीक्षा के मीडियम के रूप में अंग्रेजी चुनने वाले उम्मीदवारों की संख्या में केवल 38.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वहीं परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों की कुल संख्या में 40.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. इस बीच, परीक्षा के मीडियम के रूप में हिंदी को चुनने वाले उम्मीदवारों में इस अवधि के दौरान 69.4 प्रतिशत बढ़ोतरी पाई गई है.

इसके अलावा मराठी और उड़िया भाषा में एग्जाम देने वालों 539.9 और 81.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. मराठी भाषी 2017 में 978 से बढ़कर 2020 में 6,258 हो गए.

सिविल सर्विस एग्जाम में भी हिंदी आगे

यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की सालाना रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि 2017 और 2020 के बीच हिंदी को अपनी जनरल भाषा के रूप में मेंस एग्जाम में बैठने वाले सिविल सेवा कैंडिडेट की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 2017 में, स्थानीय भाषा में एग्जाम लिखने वालों में से 64.7 प्रतिशत ने हिंदी को पसंदीदा मीडियम के रूप में चुना. 2019 में, भारतीय भाषाओं को चुनने वालों में से 65.2 प्रतिशत ने हिंदी को अपने मीडियम के रूप में चुना.

यहां तक ​​कि 2011 की जनगणना भी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है. 2001 और 2011 के बीच हिंदी को अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई. हिंदी को प्राथमिक भाषा मानने वालों की बात करें तो हिंदी वालों की जनसंख्या 41.03 प्रतिशत से बढ़कर 43.63 प्रतिशत हो गई है. इसके अलावा, अगर कोई दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को मानता है, तो भारत में 2011 में 69 करोड़ हिंदी बोलने वाले थे.

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