कॉमेडियन कुणाल कामरा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना केस चलाने को मंजूरी दे दी है. कामरा ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर कुछ ट्वीट किए थे, जिसके बाद उनके खिलाफ शिकायत की गई थी और कहा गया था कि ये कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट है. जिन ट्वीट्स का शिकायत में जिक्र किया गया है, उन्हें केके वेणुगोपाल ने काफी आपत्तिजनक और भद्दा बताया है.
औरंगाबाद के श्रीरंग काटनेश्वरकर ने कुणाल कामरा के कुछ ट्वीट्स को लेकर अटॉर्नी जनरल से कहा था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की है, इसीलिए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का केस चलाया जाना चाहिए. जिसे स्वीकार कर लिया गया है. अब इस पूरे मामले में आगे क्या-क्या हो सकता है वो हम आपको यहां बताने जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पास शक्तियां हैं कि वो किसी भी ऐसे शख्स, जिसने कोर्ट की अवमानना की हो, उसके खिलाफ एक्शन ले सकता है और उसे सजा सुनाई जा सकती है.
पहले आपको ये बताते हैं कि किन-किन सूरतों में कोर्ट अवमानना के केस ले सकता है.
- अगर कोई शख्स सुनवाई के दौरान कोर्ट की अवमानना करता है तो कोर्ट तुरंत उस पर अवमानना का केस कर सकता है
- मीडिया, सोशल मीडिया, जनसभा या फिर कहीं बाहर कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी पर कोर्ट इस पर स्वत: संज्ञान ले सकता है (प्रशांत भूषण केस)
- इसके अलावा कोर्ट के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर अगर अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल अर्जी देते हैं तो केस सुना जाता है
- अगर कोई किसी पर आरोप लगाता है कि उसने कोर्ट की अवमानना की है तो ऐसे में सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल की मंजूरी जरूरी होती है (कुणाल कामरा)
आमतौर पर कोर्ट की अवमानना वाले मामलों को अटॉर्नी जनरल आगे नहीं बढ़ाते हैं. पिछले कुछ समय में हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एक्टर स्वरा भास्कर के खिलाफ शिकायत को रद्द कर दिया था, साथ ही ऐसा ही पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ दायर अर्जी के साथ भी किया गया. इनके अलावा आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक लेटर लिखा था, जिसे सार्वजनिक करने को लेकर उनके खिलाफ अवमानना की शिकायत की गई, लेकिन एजी केके वेणुगोपाल ने उसे भी अपने ही स्तर पर खारिज कर दिया.
अब कुणाल कामरा मामले की अगर बात करें तो इसे अटॉर्नी जनरल की मंजूरी मिल चुकी है. अब थर्ड पार्टी की तरफ से आपराधिक अवमानना की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा सकती है. इस याचिका में एक एफिडेविट और सभी बयानों, ट्वीट्स या फिर भाषण का पूरा जिक्र होना चाहिए, जिसे अपराध का आधार माना गया है.
अब जिस शख्स के खिलाफ अवमानना का केस हुआ है उसे भी मौका दिया जाता है कि वो अपनी सफाई में एक एफिडेविट पेश करे. जिसके बाद पूरे मामले की सुनवाई तय होती है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तय करते हैं कि कौन से जज इस केस की सुनवाई करेंगे.
- अवमानना मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अपना प्रोसीजर होता है. इस दौरान कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट 1972 की गाइडलाइंस का पालन किया जाता है.
- इसके तहत जो आरोपी है वो अपने डिफेंस में बहस कर सकता है कि वो सही है, अगर कोर्ट को लगता है कि ये प्रमाणिक अपील है.
- गाइडलाइन के तहत ये भी दिशा निर्देश हैं कि अवमानना के दोषी शख्स को तब तक जेल की सजा नहीं दी जाएगी, जब तक कि ये साफ नहीं हो जाता है कि जो अवमानना हुई है वो पूरी तरह से कोर्ट के कामकाज में हस्तक्षेप करने वाली है.
- अवमानना केस में सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट तय करता है कि आरोपी को अवमानना का दोषी माना जाए या फिर नहीं
अब सवाल ये है कि अगर सुनवाई के बाद कोर्ट आरोपी को दोषी करार देता है तो उसे कितनी सजा मिल सकती है? ऐसी स्थिति में 6 महीने तक की सजा हो सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसे ज्यादा भी कर सकता है. इसके अलावा जुर्माना या फिर जेल और जुर्माना दोनों की सजा भी दी जाती है. इसके अलावा एक और स्थिति होती है, जहां कोर्ट दोषी को अपनी गलती के लिए माफी मांगने का विकल्प देता है, अगर दोषी ऐसा करता है तो उसे माफ कर दिया जाता है.
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