बात 27 मई 2014 की है. मेरे सबसे लापरवाह रिपोर्टर ने मुझे दो बार फोन किया. लेकिन नाराजगी में मैंने उसका फोन नहीं उठाया. अचानक उसका मैसेज आया कि बहुत बड़ी खबर है, वो भी एक्सक्लूसिव. मैंने तुरंत पलटकर फोन मिलाया तो उसने बताया कि बदायूं के कटरा गांव में दो लड़कियों को मारकर पेड़ पर लटका दिया गया है. मैंने फौरन खबर ब्रेक की और उसके एक घंटे के अंदर ये खबर ‘बदायूं कांड’ के नाम से कुख्यात हो गई.
आज अचानक वो बदायूं कांड फिर इसलिए याद आया क्योंकि नामचीन डायरेक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘आर्टिकल 15’ को लेकर बवाल मचा हुआ है. तब क्यों झंझट था और अब क्यों झंझावात है, इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए मैंने खुद अपनी रिपोर्टिग के सारे पन्ने पलटे और सीधे सवाल पूछे अनुभव सिन्हा से. ताकि फर्क महसूस कर सकूं कि बदायूं कांड पर मेरा क्या अनुभव था और अनुभव सिन्हा का ‘आर्टिकल 15’ को लेकर क्या अनुभव है.
पहले बात साल 2014 की...
पहले बात कर लेते है 2014 की. इन दोनों लड़कियों के बलात्कार और फिर कत्ल करके पेड़ पर टांग देने की घटना युनाइटेड नेशंस तक पहुंची थी. उस वक्त उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी और पूरी सरकार इस घटना से हिली हुई थी. वो लड़कियां मारी गई थीं और जिनपर उनके बलात्कार और हत्या का आरोप था, दोनों एक ही जाति और धर्म के थे. वारदात से हिली हुई अखिलेश सरकार अचानक सीबीआई एन्क्वायरी की सिफारिश करती है. इससे पहले कि सीबीआई की एन्क्वायरी शुरू होती. उस वक्त के डीजीपी ए. एल. बनर्जी ने मुझे बताया कि या तो यह ऑनर किलिंग है या लड़कियों ने खुदकशी कर ली है.
जब मैंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से निजी बातचीत में यह बात पूछी तो उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कांड कोई कांड नहीं, न रेप है, न मर्डर है, न ऑनर किलिंग है. यह सिर्फ और सिर्फ आत्महत्या है. 27 नवंबर 2014 को सीबीआई ने भी साफ कर दिया कि जिस बदायूं कांड को लेकर इतना हल्ला मचा, वो सिर्फ लव अफेयर में सुसाइड का मामला है.
सोशल मीडिया से कोर्ट तक मचा है हल्ला
अब चलते हैं फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की तरफ. सोशल मीडिया से लेकर न्यायालय तक इस फिल्म के खिलाफ हल्ला बोल मचा है. तमाम रिट दाखिल की गई हैं कि फिल्म पर रोक लगाई जाए. ‘पद्मावत’ फिल्म की मुखालफत करने वाली करणी सेना और कई अगड़ी जातियों के संगठन सोशल मीडिया पर और बयानों के जरिए ‘आर्टिकल 15’ के खिलाफ नारे बुलंद किए हुए हैं. फिल्म का ट्रेलर देखो तो साफ शब्दों में लिखा दिखाई देता है कि ‘बेस्ड ऑन शॉकिंग ट्र इवेन्ट्स’ यानी ‘दिल दहला देने वाली सच्ची घटनाओं पर आधारित’ लिहाजा लगा सीधे अनुभव सिन्हा से बात की जाए.
बदायू कांड पर अनुभव सिन्हा से सीधी बात
पहला ही सवाल दागा कि बदायूं कांड पर फिल्म क्यों बनाई? अनुभव सिन्हा ने तपाक से जवाब दिया,
इस फिल्म का नाम पहले ‘कानपुर देहात’ था जो आज भी मेरे पास रजिस्टर्ड है. फिर लगा कि इस टाइटल से फिल्म कानपुर तक सीमित हो जाएगी इसलिए इसका नाम ‘आर्टिकल 15’ रजिस्टर कराया. अगर मैं चाहता तो इस फिल्म का नाम ‘बदायूं’ भी रजिस्टर करा सकता था. लेकिन असल में ये लाल गांव की कहानी है.
बातचीत के दौरान अनुभव सिन्हा ने बताया कि इस फिल्म में एक डायलॉग है कि ‘रेप बदायूं में हुआ या बुलंदशहर में हुआ है तो लगता है कि हमसे बहुत दूर हुआ है, लेकिन इसे करीब से देखो तब समझ में आता है कि अपने ही अगल-बगल हुआ है.’ अनुभव कहते हैं,
इस फिल्म में किसी के खिलाफ कुछ नहीं है. मेरा वश चले तो मैं मनु भगवान को भी ये फिल्म दिखा दूं. वो भी यही कहेंगे कि किसी के खिलाफ कुछ नहीं है. मुंबई, दिल्ली में अब तक 400 पत्रकार इस फिल्म को देख चुके हैं. किसी ने कुछ नहीं कहा. बस कुछ ही लोग हैं जो हाथी की सवारी कर रहे हैं.
बातों की कड़ी में अनुभव सिन्हा कहते हैं कि विकीपीडिया को मैं टॉयलेट की तरह इस्तेमाल करता हूं इसलिए कि मैं खुद पढ़ता हूं और ये जानता हूं कि विकीपीडिया में बहुत सारा झूठ हैं. लेकिन मैंने जो संविधान पढ़ा है वो सच है. मैं ऐसे 40 कांड बता सकता हूं, जिसमें जाति और धर्म का इन्वॉल्वमेंट है. पर 54 साल की उम्र में मैं खुद समाज को जोड़ूंगा या तोड़ूंगा? ये सवाल मैं खुद से करता हूं और मैं जवाब भी जानता हूं कि मैं समाज को जोड़ूंगा.’
मैंने भी दो टूक कहा,
पेड़ पर लटकती दो लड़कियां, रेप मर्डर, ऑनर किलिंग सबकुछ तो बदायूं कांड में है. और ये बात मुझसे ज्यादा कौन जानेगा? मैंने ही इसे ब्रेक किया और एक-एक परत खोली, वो भी सबसे पहले.
गहरी सांस लेते हुए अनुभव सिन्हा बोले, ‘ना कोई बदायूं, ना कोई कांड. फिल्म देखिए और फिर बताइए.’ फिल्म स्टार आयुष्मान खुराना ने भी कहा कि जब मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट मिली थी इसका नाम ‘कानपुर देहात’ ही था. मुझे ही नहीं इस फिल्म से जुड़े एक एक व्यक्ति को यह टाइटल बहुत पसंद था. लेकिन ‘आर्टिकल 15’ टाइटल ‘कानपुर देहात’ टाइटल को पैराडाइम असीमित कर देता है. जाने-माने फिल्म डायरेक्टर सुधीर मिश्र भी कहते हैं कि जब ‘मुल्क’ फिल्म आई थी तब भी लोग अनुभव सिन्हा के पीछे पड़े थे, अब फिर पड़ गए हैं. तब भी बवाल का नतीजा सिफर निकला था, इस बार भी जीरो ही साबित होगा. अनुभव सिन्हा कुछ गलत कर ही नहीं सकते.
यू-टर्न क्यों मार रहे हैं अनुभव सिन्हा?
एक सवाल और बनता था कि शाहरुख खान के साथ ‘रॉ वन’, ‘दस’, और ‘तुम बिन’ जैसी फिल्में देने वाले अनुभव सिन्हा अचानक यू टर्न क्यों मार रहे हैं? अनुभव फिर कहते हैं, ‘टर्की में समुद्र के किनारे लाल टी-शर्ट पहने वो मरा हुआ बच्चा याद है? लंदन में रोजगार को लेकर बवाल दिख रहा है ना? अमेरिका में रहने वालों के लिए अचानक कायदे कानून बदले जा रहे हैं. तो ये दुनिया तो एक होने वाली थी. ये अचानक अलग-अलग क्यों हो रही है? बस इसी की विवेचना कर रहा हूं और इस विवेचना ने यू टर्न लेने पर मजबूर कर दिया है.’
100 करोड़ी फिल्म बनाने में अच्छा नहीं लगता क्या?
मैंने पूछा, 100 करोड़ क्लब में शामिल होने वाली फिल्म बनाना अच्छा नहीं लगता क्या? डायरेक्टर साहब बोले, ‘अरे किसे नहीं अच्छा लगता लेकिन फिर उसका क्या कि जो मन करे, वही करना चाहिए तो फिलहाल मन की कर रहा हूं और इसी बहाने 100 करोड़ भी आ गए तो किसी भी फिल्म के लिए उधार नहीं लेना होगा.’
अनुभव सिन्हा, आयुष्मान खुराना और सुधीर मिश्रा से बात करके लगा कि जो शोर है वो बदायूं कांड का ही है. जो ट्रेलर है, उसमें बदायूं कांड का अक्स भी दिखाई देता है और जहां तक बदायूं कांड को लेकर मेरा अपना अनुभव है, उस अनुभव को भी ट्रेलर में धुंधला सा बदायूं नजर आ रहा है. लेकिन शोर सच है या अनुभव सिन्हा सच बोल रहे हैं, इसका पोस्टमार्टम तो तभी हो सकेगा जब यह फिल्म देखी जाए. मुझे भी इंतजार रहेगा क्योंकि मुझे भी देखना है कि फिल्म में बदायूं है, कानपुर देहात है या सिर्फ आर्टिकल 15?
आर्टिकल 15 रिव्यू: जातिवाद और ऊंच-नीच की मानसिकता पर सीधी चोट करती है ये फिल्म
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