दुनिया भर के देश धरती को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में इकठ्ठा हुए हैं. मौका है COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन का. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 1 नवंबर को सम्मेलन में शामिल हो रहे वर्ल्ड लीडर्स को एक साहसिक प्रतिज्ञा के साथ चौंका दिया: दुनिया का ये तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जक देश 2070 तक ‘नेट-जीरो’ (Net zero) के टारगेट तक पहुंच जाएगा.
जलवायु के फ्रंट पर भारत ने 2015 के पेरिस समझौतों में किए अपने वादों को समय से पहले पूरा करके एक उदाहरण पेश किया है. दुनिया को उम्मीद है धरती के स्वास्थ्य को सुधारने और बद से बद्तर होने से रोकने के लिए कि इस बार भी विश्व मंच पर किये अपने वादे को भारत निभाएगा.
ऐसे में भारत जैसा विकासशील देश 130 करोड़ से अधिक की आबादी की आर्थिक जरूरतों को पूरा करते हुए 2070 तक ‘नेट-जीरो’ के टारगेट तक कैसे पहुंचेगा, ये सवाल अहम है.
इस सवाल का जवाब योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और उत्कर्ष पटेल द्वारा सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस में प्रकाशित एक स्टडी में खोजने की कोशिश करते हैं.
लेकिन जवाब पर पहुंचने के पहले सवाल को समझने की कोशिश करते हैं- भारत ने 2070 तक जिस 'नेट जीरो' का लक्ष्य तय किया है उसका क्या मतलब है?
भारत का 2070 तक 'नेट जीरो' का लक्ष्य: क्या है इसका मतलब?
आसान भाषा में 'नेट जीरो' का मतलब है वातावरण में छोड़े गए ग्रीनहाउस गैसों और पेड़-पौधों या टेक्नोलॉजी द्वारा वातावरण से निकाले गए ग्रीनहाउस गैसों के बीच के अंतर को खत्म करना.
यानी वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2), मीथेन (सीएच 4), नाइट्रस ऑक्साइड (एन 2ओ), हाइड्रोफ्लूरोकार्बन (एचएफसी), परफ्लूरोकार्बन (पीएफसी), सल्फर हेक्साफ्लोराइड (एसएफ 6) जैसे ग्रीनहाउस गैस जितना छोड़े जाएं , उतनी ही मात्रा में उसका अवशोषण भी हो. ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने की यह प्रक्रिया प्राकृतिक कारकों, पेड़-पौधों की संख्या बढाकर या ग्रीन टेक्नोलॉजी की मदद से की जा सकती है.
'नेट जीरो' के लक्ष्य के लिए “कोयले से दूरी, है जरूरी”
भारत वर्ष 2065-70 तक 'नेट जीरो' कार्बन उत्सर्जन प्राप्त कर सकता है लेकिन शर्त है कि वह अगले 10 वर्षों में कोयले के उपयोग को सीमित कर दे. यह बात मोंटेक सिंह अहलूवालिया और उत्कर्ष पटेल ने अपनी स्टडी- Getting to Net Zero: An Approach for India at CoP-26- में लिखी है.
लेकिन उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि यह अमीर देशों पर भी निर्भर करेगा कि अगले कुछ वर्षों में वो पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किये गए वादे- प्रति वर्ष विकासशील देशों को 100 अरब अमेरिकी डॉलर- को दोगुना कर 200 अरब अमेरिकी डॉलर कर दें.
गौरतलब है कि भारत में कोयला आधारित पावर प्लांट्स की लगभग 210 GW क्षमता है, 39 GW निर्माणाधीन है और अन्य 25 GW अनुमोदन के विभिन्न चरणों में है. मोंटेक सिंह अहलूवालिया स्टडी का कहना है कि यदि कोई कोयला आधारित पावर प्लांट 40 वर्ष तक काम कर सकता है तो भारत में 2050 तक 200 GW बिजली उत्पन्न करने की क्षमता होगी और 2070 तक 'नेट जीरो' की स्थिति प्राप्त करना संभव नहीं होगा.
स्टडी के अनुसार इसके लिए भारत को कोयला आधारित पावर प्लांट की वर्किंग लाइफ को कम करके 25 साल तक करना होगा, इसी से उसे 'नेट जीरो' प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.
भारत की विशाल आबादी और उसकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्तमान में कोयला से बिजली उत्पादन भारत की मजबूरी है. भारत सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 60.2% जीवाश्म ईंधन से आता है, जिसमें से अकेले 51.9% कोयला आधारित पावर प्लांट्स से.
अगर भारत को नेट जीरो के टारगेट को पूरा करना है तो “कोयले से दूरी, है जरूरी”. लेकिन इसके लिए भारत को गैर जीवाश्म ऊर्जा के स्रोतों को अपनाना होगा, जिससे अभी भारत की 39.8% ऊर्जा आवश्यकता पूरी होती है. COP26 में पीएम मोदी के वादों में यह भी शामिल है.
COP26 में पीएम मोदी ने अपने 2070 तक 'नेट जीरो' के लक्ष्य को और अधिक आक्रामक शॉर्ट टर्म लक्ष्यों के साथ रखा. उन्होंने कम उत्सर्जन वाली ऊर्जा क्षमता के लिए भारत के 2030 के लक्ष्य को 450 GW से बढ़ाकर 500 GW कर दिया और अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके देश की आधी बिजली का उत्पादन करने का वादा किया है.
विकसित देशों के फाइनेंस के बिना 'नेट जीरो' संभव नहीं
29 सितंबर 2021 को छापे अपने स्टडी पेपर में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के करीबी सहयोगी मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने मजबूती से तर्क दिया कि भारत को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता में वृद्धि के बिना 'नेट जीरो' लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध नहीं होना चाहिए.
उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के 600 अरब डॉलर प्रति वर्ष के आकलन के रूप में अतिरिक्त निवेश की जरूरत है. अकेले भारत के लिए अनुमानित आवश्यकता कम से कम 150 अरब डॉलर प्रति वर्ष की है.
लेकिन अभी तक के अनुभव के बाद यह मदद मिलना मुश्किल लग रहा. COP26 समिट के उद्घाटन पर विकासशील देशों के नेताओं ने निराशा व्यक्त की है कि अमीर देश कार्बन को कम करने में मदद करने के लिए अधिक फंड देने के वादे को पूरा करने में बार-बार विफल रहे हैं.
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