सुप्रीम कोर्ट ने जब कोरोना वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्य आवश्यकता पर गंभीर चिंता व्यक्त की, तो भारत सरकार ने कहा कि गांवों में सामुदायिक सेवा केंद्र है, जहां जाकर लोग अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. लेकिन गांवों में ये इतना आसान है. हमने उत्तराखंड के कुछ गांवों में ये जानने की कोशिश की.
देश में “डिजिटल डिवाइड” पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “आप डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं, लेकिन आप जमीनी हकीकत से अवगत नहीं हैं.”
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा, "आप निश्चित रूप से रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं, लेकिन आप डिजिटल डिवाइड का जवाब कैसे देंगे? आप उन प्रवासी मजदूरों के सवाल का जवाब कैसे देते हैं, जिन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य जाना है? झारखंड के एक गरीब कार्यकर्ता को एक आम केंद्र में जाना पड़ता है."
हिंदी लाइव लॉ डॉट इन के अनुसार सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि किसी व्यक्ति को दी जाने वाली खुराक की संख्या, टीके के प्रकार और व्यक्ति की पात्रता मानदंड पर नजर रखने के लिए राष्ट्रीय पोर्टल में पंजीकरण कराना आवश्यक है. केंद्र ने यह भी कहा है कि बिना डिजिटल पहुंच वाले लोग टीके के पंजीकरण के लिए गांव के कॉमन सेंटर, दोस्तों, परिवार या गैर सरकारी संगठनों की मदद ले सकते हैं.
टीकाकरण पर जमीनी हकीकत
केंद्र सरकार के वक्तव्य की जांच के लिए हमने वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर उत्तराखंड में जमीनी स्तर पर कुछ सच्चाई परखी, जिससे हमें इतने हो-हल्ले के बीच चल रहे इस टीकाकरण के बारे में कुछ जमीनी हकीकत जानने के लिए मिली.
देहरादून के चकराता ब्लॉक स्थित गांव मशक के मातवर सिंह कहते हैं कि अभी तक गांव से छह सात किलोमीटर दूर कोटी कनासर में टीकाकरण कैम्प लग रहा था जहां खुद पंजीकरण न करा सकने वालों के लिए पंजीकरण की व्यवस्था थी. वहां दिन में 100-150 लोगों का ही टीकाकरण मुमकिन हो पा रहा था, जबकि 300-350 लोग टीकाकरण के लिए आ रहे थे.
अब आशा कार्यकर्ताओं की ओर से बताया जा रहा है कि हर ग्राम सभा में प्रतिदिन 100 लोगों का टीकाकरण होगा, जिसमें टीकाकरण केंद्र में ही पंजीकरण की सुविधा होगी.
काम न मिलने की वजह से उत्तर प्रदेश के खीरी के छोटूराम अपने दो साथियों के साथ हरिद्वार से वापस घर लौटते दिखते हैं. टीके और उसके लिए अनिवार्य पंजीकरण के बारे में सवाल करने पर वह अपना फोन दिखाते हुए कहते हैं कि वह सब टीका लगाना तो चाहते हैं पर उनके लिए इसकी ऑनलाईन प्रक्रिया समझनी मुश्किल है.
वहीं, रोशनाबाद का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अभी कोरोना परीक्षण से आगे ही नही बढ़ पाया है. वहां कंपनियों से आए श्रमिक कड़ी धूप में कोरोना परीक्षण के लिए लाइन में खड़े दिखे.
रोशनाबाद के सामुदायिक केंद्र पर पता लगा कि टीकाकरण कैम्प राजकीय प्राथमिक विद्यालय में लगा है. वहां पहुंचने पर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर निवासी राजेंद्र प्रसाद अपने साथी दलवीर सिंह के साथ विद्यालय के गेट पर ही मिल गए. दोनों टीका लगवाने आए थे. अपनी प्राइवेट कंपनी के जोर देने पर दोनों टीकाकरण के लिए आए तो थे पर दोनों के मन में सवाल भरे थे.
दोनों ने अपना टीका पंजीकरण कैम्प में ही उपलब्ध लैपटॉप पर करवाया था. आसपास पूछने पर पता चला कि बहुत कम लोग टीकाकरण के लिए सामने आ रहे हैं.
उत्तराखंड के भवाली में टीकाकरण की स्थिति जानने के लिए संजीव भगत से संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी मुश्किल है कि शिक्षित व्यक्ति को भी परेशानी हो रही है. संजीव का कहना है कि टीके के स्लॉट बुक करने में खासी समस्या आ रही है.
संजीव ने कहा, "जिनके पास मोबाइल है वह तो ठीक है, जिनके पास नही है वह कुछ दाम चुका कर किसी न किसी से विनती कर टीके का पंजीकरण करवा रहे हैं, कोरोना काल में किसी के संपर्क में आ पंजीकरण के लिए गिड़गिड़ाना कितना सुरक्षित है!!"
अगर सरकार अपनी जनता की सुरक्षा को लेकर वास्तव में गंभीर है, तो उसे यूनिवर्सिल टीकाकरण को अपनाना चाहिए. न कि लोगों और टीके के बीच दीवारें खड़ी करना चाहिए. हेपेटाइटिस बी, पोलियो जैसी बीमारियों को इंटरनेट युग से पहले बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चला खत्म किया जा चुका है.
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