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कोविड वैक्सीन की कीमत पर नियंत्रण,गांव में धीमा हो सकता है टीकाकरण

अगर सरकार को गरीबों की चिंता है तो वैक्सीन वाउचर ला सकती है

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(इस स्टोरी को सबसे पहले 9 मार्च 2021 को पब्लिश किया गया था. क्विंट के आर्काइव से इसे रीपोस्ट किया जा रहा है.)

शुरू में सरकार कह रही थी कि सिर्फ सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण होगा. लेकिन फिर जल्द ही सच्चाई सामने आ गई. टीकाकरण की स्पीड धीमी हो गई. अब सरकार ने निजी क्षेत्र को इस काम में लगाने का फैसला  किया है. लेकिन एक रुकावट अब भी है तो निजी क्षेत्र को खुलकर काम करने से रोकेगा, उन्हें शहरों तक सिकुड़े रहने को मजबूर करेगा. ये रुकावट है टीके की कीमत पर नियंत्रण.

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बिना निजी सेक्टर के टीकाकरण नहीं संभव

बाजार का फलसफा कहता है कि मूल्य नियंत्रण किसी समस्या का हल नहीं. टीके के मामले में भी यही सच है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुदूर इलाकों तक पहुंच बनाने के लिए सरकार को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए बल्कि इस समस्या के समाधान को ढूंढने की जिम्मेदारी मार्केट सिस्टम पर छोड़ देनी चाहिए. अगर सरकार हस्तक्षेप करना ही चाहती है तो उसके लिए वैक्सीन वाउचर सबसे अच्छा रास्ता है.

आज अगर हम टीकाकरण की प्रक्रिया को देखते हैं तो यह पूर्णत: शहरों के बड़े हेल्थकेयर सेंटर्स पर केंद्रित है. अगर इस प्रक्रिया की रीच कम होती है तो इससे टीकाकरण की दर में कमी आ सकती है. भारतीय हेल्थ केयर सेक्टर का एक बड़ा हिस्सा निजी हाथों में है.

कोविड-19 के हर स्तर पर हमने भारतीय प्राइवेट हेल्थ केयर सेक्टर की संभावना का अनुभव किया जब भी उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई. चाहे वह पीपीई किट हो, टेस्ट हो, दवाइयां हो या वैक्सीन. प्राइवेट फार्मेसी, डायग्नोसिक लैब, डॉक्टर्स और अस्पताल देशभर में मौजूद हैं और टीकाकरण की दर को 10 गुना तक बढ़ाने की क्षमता रखते हैं. कुछ लोग प्राइवेट फर्म्स द्वारा टीकाकरण के मूल्य को लेकर चिंतित हैं. इसलिए मूल्य नियंत्रण की बात की जा रही है.

पूरे देश को तेजी से टीका देना है तो निजी क्षेत्र की मदद चाहिए. लेकिन अगर कीमत तय कर देंगे तो कंपनियां शहरों तक सीमित रहना चाहेंगी, फिर गांव-गांव टीका कैसे पहुंचेगा?

गरीबों की चिंता है तो वाउचर दीजिए

किसी निजी व्यक्ति के लिए बड़े शहर में एक बिल्डिंग में संडे कैंप चलाना सस्ता और कारगर है. जबकि कोल्ड चेन का प्रबंधन और सुदूर इलाकों में जहां जनसंख्या घनत्व कम है वहां कुशल लोग उपलब्ध कराना ज्यादा खर्चीला है. ऐसे में मूल्य सीमा यह सुनिश्चित कर देगी कि भारत के गांव निजी टीकाकरण सेवाओं से लाभान्वित नहीं हो पाएंगे. अगर कीमतों पर बाजार के भरोसे छोड़ दिया तो प्रतियोगिता होगी.

निजी क्षेत्र नए आइडिया पर काम करेगा. एक उदाहरण के तौर पर रूप में, जॉनसन एंड जॉनसन वन-डोज़ वैक्सीन की कीमत वर्तमान में सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बेचे जा एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन से अधिक है. लेकिन दो-खुराक के टीके की लागत और जटिलता अधिक होती है, खासकर दूरदराज के स्थानों में. कुछ प्राइवेट हेल्थकेयर फर्म जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन को दूरदराज के इलाकों के लिए आयात करना बेहतर मान सकते हैं.

कीमतों में हस्तक्षेप न करना पब्लिक पॉलिसी में प्रोफेशनल क्षमता की पहचान है. जो नहीं खरीद पाए उनके लिए सरकार वैक्सीन वाउचर ला सकती है. इसके तहत सरकार सेवा प्रदान करने वाले निजी फर्मों को भुगतान कर सकती है.

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