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कोरोना से मौत 3 लाख के पार: इन चेहरों में देखिए हम क्या खो रहे

मरने वाले महज डेटा नहीं, जीते-जागते इंसान थे, संघर्ष था, कामयाबियां थीं, कहानियां थीं...

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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की साइट पर मौजूद कोरोना डैशबोर्ड में एक्टिव केस और डिस्चार्ज्ड लोगों का बॉक्स उम्मीद तो देता है, लेकिन नजर जब मौतों वाले बॉक्स पर जाती है तो कलेजा फट जाता है. कुल मौत 3 लाख के पार!!

जब श्रद्धांजलियों का एपिसोड निकाला पड़ जाए तो लिखते समय ऊंगलियां ठिठकने लगती हैं. स्क्रीन पर लिखा धुंधलाने लगता है, क्योंकि आंखें बार-बार भर आती हैं. हमारा देश हर दिन कुछ खो रहा है. 3 लाख लोग चले गए, उनमें से हर जिंदगी बेशकीमती थी, सबको श्रद्धांजलि. एक समाज,एक देश रूप में महामारी और लापरवाही ने हमसे क्या छीना है इसको समझने के लिए आपको कुछ चेहरे दिखाते हैं.
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सुंदरलाल बहुगुणा

देश और उत्तराखंड राज्य ने 93 वर्ष की उम्र में कोरोना के कारण सुंदरलाल बहुगुणा के रूप में पर्यावरण का एक सच्चा सिपाही खो दिया. भारत में जब भी पर्यावरण संरक्षण की बात होगी तो चिपको आंदोलन और सुंदरलाल बहुगुणा के बिना वह चर्चा अधूरी ही रहेगी. 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के सिल्यारा गांव में जन्में सुंदरलाल बहुगुणा ने सड़क बनाने के लिए चमोली में 1972 तक हजारों पेड़ों को काटने का विरोध किया. फिर शुरू हुआ भारत का अपना पर्यावरण आंदोलन. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मजबूरन वन संरक्षण कानून लाना पड़ा.

टिहरी बांध का आंदोलन हो या 1960 के दशक में पिछड़ी जातियों के मंदिर प्रवेश आंदोलन तथा शराब विरोधी आंदोलन का नेतृत्व, सुंदरलाल बहुगुणा आगे खड़े मिले. पर्यावरण संरक्षण के उनके इस काम के लिए उन्हें साल 2001 में पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

सुनील जैन

वरिष्ठ पत्रकार और फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील जैन की मृत्यु कोरोना के कारण 58 वर्ष की उम्र में हो गई. आजाद ख्याल के पत्रकार सुनील जैन ने कभी भी सरकार की सराहना और उसी ऊर्जा से आलोचना करने में संकोच नहीं किया.

प्रधानमंत्री ने उनकी मौत पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, “सुनील जैन आप जल्दी चले गए. मैं आपके कॉलम पढ़ने और तमाम मुद्दों को लेकर आपके विचारों को मिस करूंगा. आप अपने पीछे प्रेरक छाप छोड़ गए हैं. आप के दुखद निधन से पत्रकारिता आज कमजोर हुई है.” 1986 में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स करने वाले सुनील जैन ने तीन दशक से ज्यादा अर्थजगत की पत्रकारिता में सेवा दी.

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दिनेश मोहन

कोविड-19 के कारण रोड सेफ्टी पर वैश्विक स्तर के लीडिंग एक्सपर्ट दिनेश मोहन की मृत्यु 21 मई को 75 वर्ष की आयु में हो गई. दिनेश मोहन IIT दिल्ली में ऑनरर्री प्रोफेसर भी थे. IIT मुंबई और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन से पढ़ें दिनेश मोहन रोड सेफ्टी के ऊपर अपने रिसर्च के लिए याद रखे जाएंगे. उन्होंने एडवांस मोटरसाइकिल हेलमेट डिजाइन के ऊपर भी काम किया.

पी. नागाभूषणम्

तमिलनाडु स्थित डॉ. अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी की पहली वाइस चांसलर पी.नागाभूषणम् की मृत्यु कोविड-19 के कारण 4 मई को 78 वर्ष की उम्र में हो गई. वह मद्रास लॉ कॉलेज (अब डॉ अंबेडकर लॉ कॉलेज) में 1977 से 1988 तक लेक्चरर भी थी. इसके अलावा उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास के लीगल स्टडीज डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के तौर पर भी काम किया. तमिलनाडु से मास्टर डिग्री और कांस्टीट्यूशनल लॉ तथा इंटरनेशनल लॉ में M.L पाने वाली नागाभूषणम् जी को 1977 में डॉ.अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी का पहला वाइस चांसलर नियुक्त किया था.

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केके अग्रवाल

देश के बड़े डॉक्टरों में शुमार और पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल की मौत कोरोना के कारण 17 मई को 62 वर्ष की उम्र में हो गई. डॉक्टर अग्रवाल एक कार्डियोलॉजिस्ट थे और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चीफ भी थे .उन्हें 2010 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था. दिल्ली से ही अपनी स्कूली पढ़ाई करने वाले डॉक्टर अग्रवाल ने अपना MBBS नागपुर से किया था. कोरोनाकाल में भी यूट्यूब के जरिए लोगों को अपने मेडिकल एक्सपर्टीज की सेवा देते रहे.

लाल बहादुर वर्मा

प्रख्यात इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा की मौत भी कोरोना के कारण 83 वर्ष की उम्र में हो गयी. बिहार के छपरा में जन्में, पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे कस्बाई स्कूली शिक्षा से लेकर फ्रांस की राजधानी पेरिस तक उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रोफेसर वर्मा ने इतिहास लेखन को एक नई ऊंचाई दी. प्रोफेसर वर्मा की हिंदी ,अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई है. इसमें ‘यूरोप का इतिहास’, ‘इतिहास के बारे में’, ‘आधुनिक विश्व का इतिहास’ आदि शामिल है. उनकी कई किताबों का अंग्रेजी और फ्रेंच में भी ट्रांसलेशन हुआ है.

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डॉ एस.के भंडारी

दिल्ली में 58 वर्षों तक टॉप गायनोकोलॉजिस्ट के रूप में सेवा देने वाली डॉ एस.के भंडारी का निधन कोरोना के कारण 86 वर्ष की उम्र में हो गया. वर्ष 1962 से लगभग 58 वर्षों तक श्री गंगा राम हॉस्पिटल में गायनोकोलॉजिस्ट के रूप में काम करने वाली डॉ भंडारी भारत में इस क्षेत्र में अग्रदूत थी. गंगा राम हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर के मुताबिक, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (और उनके बच्चे) की डिलीवरी डॉक्टर भंडारी ने ही की थी.

एमके कौशिक

1980 मॉस्को ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट हॉकी खिलाड़ी तथा पूर्व हॉकी कोच एमके कौशिक का निधन 66 वर्ष की उम्र में कोरोना के कारण हो गया. 1998 में अर्जुन अवार्ड तथा 2002 में द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कौशिक ने सीनियर मेंस और वुमन दोनों टीमों को कोचिंग दी थी. उनकी कोचिंग में ही भारतीय मेंस टीम ने 1998 एशियन गेम्स, बैंकॉक में गोल्ड मेडल जीता था.

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जगन्नाथ पहाड़िया

राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया का निधन 89 वर्ष की उम्र में कोरोना के कारण हो गया. 13 महीने तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने वाले पहाड़िया बाद में बिहार और हरियाणा के राज्यपाल भी रहे. वह 1957, 1967, 1971 और 1980 में चार बार सांसद चुने गए, जबकि 1980,1985, 1990 और 2003 में विधायक भी निर्वाचित हुये. वह इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे. देश की दूसरी लोकसभा के दौरान वर्ष 1957 में 25 वर्ष की उम्र में चुनाव जीतकर सबसे युवा सांसद बने.

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कुंवर बेचैन

“इस वक्त अपने तेवर पूरे शबाब पर हैं, सारे जहां से कह दो हम इंकलाब पर है”

‘बेचैन’ का तखल्लुस रखने वाले प्रख्यात कवि कुंवर बेचैन का 78 वर्ष की आयु में कोरोना से निधन हो जाने पर हिंदी साहित्य जगत भी बेचैन हो गया. वर्ष 1942 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जन्में कुंवर बेचैन ने 4000 से भी ज्यादा कवि सम्मेलन में शिरकत की थी, और हिंदी फिल्मों के साथ-साथ टेलीविजन धारावाहिकों में भी गाने लिखें. उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश सरकारों से कई पुरस्कार मिलने के अलावा उन्हें दो बार ज्ञानी जैल सिंह से और शंकर दयाल शर्मा से राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला.

पंडित देवव्रत चौधरी

प्रख्यात सितार वादक पंडित देवव्रत चौधरी का निधन 85 वर्ष की आयु में कोरोना के कारण हो गया. सेनिया घराने के अग्रदूत पंडित देवव्रत चौधरी जी ने 6 दशकों से भी ज्यादा तक पूरे विश्व में परफॉर्म किया. उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित किया जा चुका था. बेजोड़ सितारवादक और 8 नये रागों के कंपोजर होने के अलावा वे शिक्षाविद और लेखक भी थे.

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तरन्नुम रियाज

उर्दू शायरा, क्रिटिक्स और लेखिका तरन्नुम रियाज का निधन कोरोना वायरस के कारण 61 वर्ष की उम्र में हो गया .1960 में जन्मी तरन्नुम पहले ऑल इंडिया रेडियो में न्यूजकास्टर भी रहीं. इसके अलावा उन्हें सार्क लिटरेचर अवॉर्ड भी मिला था. उर्दू फिक्शन के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने वाली तरन्नुम रियाज की 15 किताबें भी प्रकाशित हुई.

शंख घोष

प्रसिद्ध बांग्ला कवि, आलोचक ,शिक्षाविद और पद्म भूषण शंख घोष का निधन 89 वर्ष की उम्र में कोरोना के कारण हो गया. अपनी कृति ‘आदिलता गुलमोमय’ और ‘मूर्ख बारो समझिक नाय’ से उन्होंने अपने पाठकों के बीच लोकप्रियता हासिल की. ‘बाबरेर प्रार्थना’ के लिए 1977 में उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड मिला. 2011 में उन्हें पद्म विभूषण और 2016 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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उत्तर प्रदेश के 1621 शिक्षक

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के मुताबिक, राज्य में पंचायत चुनाव कराने में लगे 1621 शिक्षकों की मौत कोरोना के कारण हो गई, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार यह आंकड़ा मात्र 3 है. संघ के चुनाव से पहले सरकार तथा राज्य चुनाव आयोग को चुनाव टालने को लिखी गई चिट्ठियां किसी भी काम ना आयी.

1200 डॉक्टर्स

भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फ्रंटलाइन पर काम कर रहे करीब 1200 डॉक्टरों को खो दिया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर में 400 डॉक्टरों ने अपनी जान गंवा दी. वहीं, कोरोना की पहली लहर के दौरान करीब 748 डॉक्टरों की मौत हुई थी.

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कोरोना में और क्या खोया...

कोरोना ने हमसे केवल ये नामचीन हस्तियां नहीं छीनीं हैं, बल्कि ये लिस्ट काफी लंबी है. और किन-किन शख्सियतों का कोरोना से निधन हो गया, ये जानने के लिए ये खबर देखें:

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