चरमराते 'सिस्टम' को भरभराकर गिरते देखना हो तो शहर के किसी भी अस्पताल की दहलीज तक चले जाइए. संक्रमण की रफ्तार कुछ ऐसी है कि दिल्ली, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र के सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों में आपको आस में मरीज, बदहवास तीमारदार और उम्मीदों का भारी और बेहद जिम्मेदारी भरा बोझ ढो रहे हेल्थ वर्कर्स दिख जाएंगे.
जिस संख्या में मरीज सामने आ रहे हैं, बेड-अस्पताल-ऑक्सीजन की कमी दिख रही है. ऐसे में अपनों को अपनी आंख के सामने जाता देख मरीजों के परिवार वाले बेकाबू होते हुए भी दिख रहे हैं और निशाना बन रहे हैं हेल्थ वर्कर, जिन्हें कोरोना वॉरियर्स का नाम देकर खूब प्रचारित प्रसारित किया गया था.
हमने दशकों से आबादी के हिसाब से बेड नहीं रखे, अस्पताल नहीं बनवाए, डॉक्टर-नर्स नहीं तैयार किए, ये गलती आखिर किसकी है?
'सिस्टम की गलती है'. सिस्टम कौन है- हमें नहीं पता. तो फिर किससे जवाब मांगे- हमें नहीं पता. सरकारें जो हमने चुनी, उनसे जवाब कैसे मिलता है- हमें नहीं पता.
पता क्या है?- वो जो दिख रहा है.
दिख क्या रहा है - दिल्ली के अपोलो में मेडिकल स्टाफ और मरीज के परिवार वालों के बीच मारपीट. आगरा में नर्स की बुरी तरह पिटाई, रॉड से हॉस्पिटल स्टाफ को पीटते लोग. खुद अपने ही इलाज के लिए अपने ही अस्पताल में गुहार लगाता डॉक्टर. रायबरेली में बेड नहीं मिलने पर अपने को खो चुके लोगों का गुस्सा और डॉक्टर के साथ झड़प.
ये कुछ उदाहरण हैं. अलग-अलग राज्यों में लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है. जद में कोरोना वॉरियर डॉक्टर स्टाफ आ रहे हैं. क्योंकि ग्राउंड पर तो ये ही मिलते हैं. बाकी जिन लोगों की जिम्मेदारी है वो या तो ट्विटर पर मिल रहे हैं या वो आम आदमी की पहुंच से दूर हैं.
तो कुल मिलाकर अस्पताल में संक्रमण का डर झेलें स्वास्थ्यकर्मी, मरीजों के परिवारवालों का गुस्सा झेलें स्वास्थ्यकर्मी और अपने आंखों के सामने कई जान जाने का दर्द झेलें ये स्वास्थ्यकर्मी.
लेकिन क्या इस देश में महामारी का इस तरह बेकाबू हो जाना इनकी गलती है? कम से कम देश के अलग-अलग हाईकोर्ट्स को तो ऐसा नहीं लगता.
- मद्रास हाईकोर्ट 26 अप्रैल को कहता है कि चुनाव आयोग कोरोना की दूसरी लहर का एकमात्र कारण है. शायद आयोग के अफसरों पर हत्या का केस दर्ज होना चाहिए.
- इलाहाबाद हाईकोर्ट 19 अप्रैल को कहता है कि एक साल की महामारी के अनुभव के बाद भी सरकार इसका सामना करने में फेल कैसे हो गईं?
- 21 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट कहता है कि अगर आप खुद पर शर्मिंदा नहीं हैं तो हम इस बुरे समाज का हिस्सा होने पर शर्मिंदा हैं. आप मरीजों की उपेक्षा और अनदेखी कर रहे हैं.
इस बीच अस्पतालों में झड़प की जो खबरें आईं वो हैं-
अपोलो अस्पताल, दिल्ली
दिल्ली के अपोलो अस्पताल में एक 62 वर्षीय महिला की मौत के बाद नाराज रिश्तेदारों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया और मेडिकल स्टाफ के साथ मारपीट की. परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने मरीज को आईसीयू में भर्ती नहीं किया. दिल्ली के अपोलो अस्पताल में एक 62 वर्षीय कोरोना संक्रमित महिला को 26 अप्रैल की रात को भर्ती कराया गया था.इसके बाद मृतक महिला के रिश्तेदारों ने अस्पताल में हंगामा कर दिया. इस दौरान उन्होंने अस्पताल के मेडिकल स्टाफ के साथ मारपीट भी की.
लोटस अस्पताल, आगरा
आगरा के लोटस अस्पताल में एक व्यक्ति की मौत की अफवाहों को लेकर कुछ लोगों ने हंगामा किया और वहां मौजूद स्टाफ नर्स और अन्य कर्मचारियों पर हमला कर दिया. इस दौरान रॉड से भी हमले की बात और वीडियो सामने आए.
जिला अस्पताल, रायबरेली
गंभीर हालत में कोरोना पॉजिटिव महिला को डॉक्टर ने मरीज को बेड नहीं दिया. बाद में उनकी मौत हो गई. गुस्साए परिजनों और डॉक्टर के बीच हाथापाई हुई.
आरडी-गार्डी अस्पताल, उज्जैन
उज्जैन के इस अस्पताल में मेडिकल स्टाफ और मरीजों के बीच मारपीट की खबर सामने आई थी. वीडियो भी सामने आया था. कोरोना संक्रमित एक व्यक्ति की मौत के बाद ये हंगामा हुआ. परिजनों ने डॉक्टरों पर आरोप लगाए थे.
ये कुछ केस हैं. ऐसे ही कई केस अलग-अलग राज्यों के अस्पतालों से सामने आए हैं. कोरोना वॉरियर्स को ऐसे डर-डरकर महामारी से लड़ने नहीं दिया जा सकता. ‘सिस्टम’ को और लोगों को ये समझना होगा. इसके समाधान के लिए उपाय भी करने होंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)